शिक्षक वेतनभोगी न बनकर काम के प्रति ईमानदार रहे: द्विवेदी
अध्यापक अतुलनीय है। विद्यार्थियों से हारकर भी वह खुद को गौरवान्वित महसूस करता है। यही विजय है कि विद्यार्थी गुरु का आदर सत्कार करता है। शिक्षक अपने कार्य को लेकर सत्य रहे, वेतनभोगी बनकर न रहे तो शिक्षण से बढ़कर दुनिया में कोई कार्य नहीं।
जागरण संवाददाता, जींद : अध्यापक अतुलनीय है। विद्यार्थियों से हारकर भी वह खुद को गौरवान्वित महसूस करता है। यही विजय है कि विद्यार्थी गुरु का आदर सत्कार करता है। शिक्षक अपने कार्य को लेकर सत्य रहे, वेतनभोगी बनकर न रहे तो शिक्षण से बढ़कर दुनिया में कोई कार्य नहीं। सीआरएसयू में सात दिवसीय कार्यशाला स्वास्थ्य, प्रसन्नता और समरसता के लिए वैश्विक मानवीय मूल्य और समग्र शिक्षा विषय पर दूसरे दिन के दूसरे सत्र में महर्षि वाल्मीकि संस्कृति विश्वविद्यालय कैथल के कुलपति डॉ. श्रेयांश द्विवेदी ने यह बात कही।
डॉ. श्रेयांश द्विवेदी ने अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा का मतलब संस्कारपूर्ण होना चाहिए। शिक्षा है, संस्कार है, नैतिकता है, तो मानवता स्वयं आपके अंदर होगी। इंसान बनना सबसे कठिन कार्य है। इंसान का मृत्यु के अलावा कोई भय नहीं है। अगर मनुष्य को सही गलत का भय हो जाए तो वह हर कार्य बेहतर तरीके से करें। डॉक्टर द्विवेदी ने कहा कि धर्म का मतलब दायित्व है। धर्म की किसी परिभाषा में जाने की जरूरत नहीं है। अगर हम अपना दायित्व मान लें, नैतिक जिम्मेदारी लें, दुनिया में सबसे बेहतर होंगे। शिक्षक की भावना ज्ञान बांटने की होती है। चलते-चलते भी शिक्षक को ज्ञान बांटना चाहिए, इससे बेहतर समाज का निर्माण होता है। हमारी कक्षा हमारी जिम्मेवारी है, यह हमारा संकल्प होना चाहिए। कक्षा में एक ऐसा वातावरण बनाएं, जिससे विद्यार्थी कक्षा की ओर खींचा चला आये। दंड देना विद्यार्थी को कभी उचित नहीं होता। शिक्षक में ऐसी खूबी हो कि शिक्षक कक्षा में ना आए तो विद्यार्थी और शिक्षक को याद करें।
--शिक्षक पर संपूर्ण विकास की जिम्मेदारी: जागलान
कार्यशाला के प्रथम सत्र में मनोवैज्ञानिक डॉ. नरेश जागलान ने शिक्षकों को शिक्षा एवं शिक्षण को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि शिक्षक का दायित्व सिर्फ शिक्षा तक सीमित नही है, विद्यार्थी के सम्पूर्ण विकास की जिम्मेदारी शिक्षक की है। विद्यार्थी शिक्षक को देखकर अपनी जीवनशैली अपनाता है। डॉ. जागलान ने कहा कि अपनी जीवनशैली को बेहतर करें। हमेशा खुश रहें। विद्यार्थियों को नित्य नया दें। विद्यार्थी आपका गुणगान करेंगे। इस दौरान सीआरएसयू के कुलगुरु प्रो. आरबी सोलंकी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।