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जीवन में गुरु जरूरी, बेशक मिट्टी के द्रोणाचार्य ही क्यों न हों : अचल मुनि

चातुर्मास के अंतिम सप्ताह में अचल मुनि ने विभिन्न स्थानों से आए श्रद्धालुओं से कहा कि कौन किसका रोना सुनता है। आज रोने वाले ज्यादा हैं और सुनने वाले कम हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 12:08 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 12:08 AM (IST)
जीवन में गुरु जरूरी, बेशक मिट्टी के द्रोणाचार्य ही क्यों न हों : अचल मुनि
जीवन में गुरु जरूरी, बेशक मिट्टी के द्रोणाचार्य ही क्यों न हों : अचल मुनि

संवाद सूत्र, उचाना : चातुर्मास के अंतिम सप्ताह में अचल मुनि ने विभिन्न स्थानों से आए श्रद्धालुओं से कहा कि कौन किसका रोना सुनता है। आज रोने वाले ज्यादा हैं और सुनने वाले कम हैं। सुनने में दुखी इंसान को मानसिक राहत मिलती है। रोने की कला भी हर इंसान में नहीं होती। दुनिया में इन प्रकार के इंसान दूसरे का रोना सुनते है।

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करुणाशील ही दूसरे का रोना सुनता है। उसके दिल में करुण का भाव होता है, वह इंसान कभी दूसरे के आंखों में आंसू नहीं देख सकता, दया भाव वाला भी दूसरे का रोना सुनता है। पत्थर दिल वाला निर्दयी इंसान कभी दूसरे को सुख नहीं दे सकता है। दया ही धर्म का मूल है। जैन संत ने कहा कि संसार में एक मात्र गुरु ही है जो अपने भक्तों का सृष्टि मात्र का रोना सुनते है। जीवन में एक गुरु तो होना चाहिए क्योंकि मां-बाप सिर्फ जन्म देते है। जीवन तो गुरु से ही मिलता है। गुरु के बिना जीवन अधूरा है। जीवन में एक गुरु जरूर होना चाहिए फिर वह चाहे मिट्टी का द्रोणाचार्य क्यों न हो। गुरु क्या है। एक फेमिली डॉक्टर जो हमारे मन के रोगों का उपचार करते हैं। किसी भी शिष्य के लिए गुरु का द्वार मंदिर, मस्जिद की चौखट से अधिक महत्वपूर्ण होता है। जिस तरह एक मां की अंगुली पकड़कर चलने वाला बच्चा कभी मेले में गुम नहीं होता ठीक उसी तरीके से गुरु की अंगुली पकड़ कर चलने वाला शिष्य भी संसार सागर में कभी गुम नहीं होता, बल्कि पार हो जाता है। अतिशय मुनि ने कहा कि जीवन एक रेलवे स्टेशन की तरह होता है। जहां हजारों लोग हैं, लेकिन हर कोई अनजान है। संसार का सम्मान झूठा है। समाज की निगाहें बदलने को वक्त नहीं लगता।


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