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भारतीय संस्कृति में गीता का स्थान सर्वोच्च : स्वामी ज्ञानानंद

गीता मनीषी स्वामी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गीता का स्थान सर्वोच है व गीता नीति नियमों का ज्ञान देती है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 08:00 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 08:00 AM (IST)
भारतीय संस्कृति में गीता का स्थान सर्वोच्च : स्वामी ज्ञानानंद
भारतीय संस्कृति में गीता का स्थान सर्वोच्च : स्वामी ज्ञानानंद

संवाद सूत्र, सफीदों : श्री कृष्ण कृपा परिवार के तत्वावधान में महाराजा शूरसैन धर्मशाला में दिव्य गीता सत्संग समारोह का आयोजन किया। इसमें गीता मनीषी स्वामी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गीता का स्थान सर्वोच्च है व गीता नीति नियमों का ज्ञान देती है। गीता को लाखों बार भी पढ़े तो कम है। गीता जीने का मार्ग दिखाती है और बड़ों का सम्मान कैसे करना है यह गीता सिखाती है। भारतीय संस्कृति में प्रतीकों का महत्व है और उन प्रतीकों का भगवान ने गीता में वर्णन किया है। हमें गीता के मार्ग पर चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य को सत्संग, सेवा व सुमिरन अपनाकर अपने जीवन को आदर्श बनाना चाहिए। सत्संग से हमें जीवन की व्यवहारिक प्रेरणा के साथ हमें ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है। जिसके जीवन में सत्संग है, उसे जीवन में कभी भी कोई निराशा नहीं होती। सोए हुए विवेक को जगाने के लिए सत्संग में आना होगा। उन्होंने कहा कि शरीर जब रोगी होता है तो हम डाक्टर के पास जाते हैं। इसी तरह मन को रोगों से बचाने के लिए हमें संतों के संगत में जाना होगा।प्रभु सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। हमें सच्चे मन से प्रभु के नाम का सिरमन करना चाहिए। जो सुख व शांति प्रभु के चरणों में मिलेगी, वो कहीं नहीं मिलती। जब हम धर्म की ओर अग्रसर होंगे तो रास्ते में कई बाधाएं आएंगी। जिस व्यक्ति ने उन बाधाओं की परवाह नहीं की, उसे अवश्य ही प्रभु भक्ति की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि जिस परमात्मा से जीवन और जीवन मे सबकुछ मिला है, उस परमात्मा को भूलने की भूल न करें। हमारा सबसे पहला काम प्रभु का नाम, फिर हर काम प्रभु के नाम, करते जाएं। इस कलयुग में आपका काम भी होता जाएगा और प्रभु का सिमरन भी। जिस तरह अर्जुन के रथ का सारथी भगवान कृष्ण बड़ी कुशलता से रथ हांकते हैं और विषम परिस्थितियों से भी रथ को निकाल कर ले जाते हैं। उसी तरह हमारे शरीर का सारथी हमारी बुद्धि है, हम कुशाग्र बुद्धि से जीवन की नैया इस संसार मे रहते हुए सांसारिक कार्य करते हुए विषम परिस्थितियों से निकाल कर ले जा सकते हैं।

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