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नगरपरिषद भवन में बैठकर 59 साल तक 30 प्रधानों ने चलाई शहर की सरकार

कर्मपाल गिल, जींद शहर के बीचों-बीच टाउन हाल पर 1959 में बना नगरपरिषद भवन अब अतीत की य

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 12:42 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 12:42 AM (IST)
नगरपरिषद भवन में बैठकर 59 साल तक 30 प्रधानों ने चलाई शहर की सरकार
नगरपरिषद भवन में बैठकर 59 साल तक 30 प्रधानों ने चलाई शहर की सरकार

कर्मपाल गिल, जींद

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शहर के बीचों-बीच टाउन हाल पर 1959 में बना नगरपरिषद भवन अब अतीत की यादों का हिस्साभर रह जाएगा। इस दफ्तर में बैठकर 59 साल तक नगरपरिषद के 30 प्रधानों ने शहर की सरकार चलाई है। अब यह इमारत पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। इसलिए नगरपरिषद कार्यालय को यहां से लघु सचिवालय में शिफ्ट करना शुरू कर दिया है। सोमवार को पूरा कार्यालय डीसी आफिस के नीचे पुराने ई-दिशा केंद्र में काम करना शुरू कर देगा।

हर भवन का अपना इतिहास होता है, जो अपने अंदर बहुत कुछ समेटे होता है। नगरपरिषद भवन का इतिहास भी काफी रोचक है। यहां बैठकर शहर की सरदारी करने वाले प्रधानों के किस्से भी काफी रोचक है। 1959 में महावीर स्वरूप भटनागर जब नगरपरिषद के प्रधान थे, तब पंजाब सरकार के स्थानीय निकाय मंत्री मोनहलाल ने इसका उद्घाटन किया था। दो साल बाद 1961 में महावीर स्वरूप के घर में पानी की एक टूंटी रिकॉर्ड से ज्यादा पाई गई थी, इसलिए उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था। तब पेयजल व सीवर का काम कमेटी देखती थी। हर घर में पानी की जितनी टूंटी होती थी, उसका रिकॉर्ड नगरपरिषद में होता था। उनके सस्पेंड होने पर 1961 में लाला बलदेव शरण प्रधान बने और 1964 तक रहे। जब 1964 में चुनाव हुए तो डॉ. ¨बदलिश प्रधान बने और 1968 तक रहे। लाला बलदेव शरण 1968 में हुए चुनाव में फिर प्रधान बने और 1972 तक इस पद रहे। खास बात यह थी कि 1968 में वार्ड 14 से दो पार्षद बनते थे। एक पार्षद जनरल और एक रिजर्व कैटेगरी से बनता था। 1968 के बाद 17 साल तक सरकार ने कमेटी भंग कर दी थी। इस दौरान प्रशासक ही काम संभालते थे। इसके बाद 1987 में हुए चुनाव में इंद्रसैन गोयल प्रधान बने थे। वर्ष 1968 में भी पार्षद रहे रामचंद्र को भी कमेटी की जमीन पर अतिक्रमण करने पर डिसक्वालिफाई कर दिया था। हालांकि तब उनकी टर्म पूरी हो गई थी, उन पर अगले पांच साल तक चुनाव लड़ने और वोट डालने पर प्रतिबंध लगा दिया था। नगरपरिषद प्रधान पूनम सैनी के दफ्तर में टंगे प्रधानों के कार्यकाल के बोर्ड पर पहले नंबर पर इंद्रसैन गोयल का नाम है। इससे पहले के प्रधानों का जिक्र नहीं है। दैनिक जागरण ने जो रोचक जानकारियां जुटाईं, उसके बारे में नगरपरिषद के कई पुराने प्रधानों और पार्षदों को भी जानकारी नहीं है। -- 1987 में 15 वार्ड थे, अब 31

वर्ष 1959 में जब कमेटी भवन का उद्घाटन हुआ, तब 6 पार्षद थे। प्रधान महावीर स्वरूप भटनागर, रामकरण दास उपप्रधान, सदस्यों में राम ¨सह सैनी, लखीराम सैनी, बलदेव शरण दास और मुंशी राम छाछिया शामिल थे। इसके बाद शहर में 1987 में हुए नगरपरिषद चुनाव में 15 वार्ड थे। इसके बाद यह बढ़कर 21 हुए, फिर 27 और अब 31 वार्ड हैं। नगरपरिषद रहते हुए अधिकतम 31 वार्ड ही बन सकते हैं। शहर की आबादी ज्यादा बढ़ने पर नगर निगम का दर्जा मिलता है, जिसके तहत वार्डों का गठन नए सिरे से होता है। --तब कई पार्षद सस्पेंड हुए

1968 में म्यूनिसिपल कमेटी के सदस्य रहे पंडित श्यामलाल नंबरदार कहते हैं कि तब कमेटी की जमीन पर अतिक्रमण करने या अन्य अनियमितताएं मिलने पर काफी पार्षद सस्पेंड हुए थे। तब शहर भी बहुत छोटा था और पार्षदों में अब से ज्यादा इमानदारी भी थी। वह जनसंघ के चुनाव चिह्न दीपक के निशान पर चुनाव जीते थे। चुनाव के बाद उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का आफर मिला था, लेकिन दो टूक मना कर दिया था।


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