गाजर की खेती के एक्सपर्ट छोटूराम, किसान प्रशिक्षण लेने आते हैं इनके पास
ईक्कस गांव के 42 वर्षीय छोटूराम को गाजर की खेती का विशेषज्ञ कहते हैं। आसपास व दूसरे जिलों से किसान उनके पास गाजर की खेती के लिए प्रशिक्षण लेने आते हैं।
बिजेंद्र मलिक, जींद
ईक्कस गांव के 42 वर्षीय छोटूराम, को गाजर की खेती का विशेषज्ञ कहते हैं। आसपास व दूसरे जिलों से किसान उनके पास गाजर की खेती के लिए प्रशिक्षण लेने आते हैं। छोटूराम ने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। गाजर की खेती कर छोटूराम हर साल खुद तो लाखों रुपये कमा ही रहे हैं, साथ ही दूसरे किसानों को भी प्रशिक्षण देकर उनकी आमदनी बढ़ाने का काम कर रहे हैं। गाजर की बिजाई और देखभाल कैसे करनी है, इसकी उन्होंने वीडियो बनाई हुई हैं, जो किसानों के पास भेजते हैं। छोटूराम के पिताजी भी गाजर की खेती करते थे। बचपन में वे पिता को गाजर की खेती करते देखते थे। उसके बाद खुद खेती करनी शुरू कर दी और आधुनिक तरीके अपनाए। छह साल पहले छोटूराम 85 हजार रुपये की गाजर की बिजाई करने वाली मशीन लेकर आए। खुद के खेत में बिजाई करने के साथ आसपास के गांवों में बिजाई करने जाते हैं। प्रति एकड़ मशीन से बिजाई का दो हजार रुपये लेते हैं। इस मशीन से बिजाई जल्दी होती है। जिले में ईक्कस गांव की पहचान गाजर की खेती के लिए बन चुकी है। किसान गांव में ही सड़क किनारे गाजर रख कर बेचते हैं। उन्हें मंडी जाना नहीं पड़ता।
खुद तैयार करते हैं बीज
छोटूराम हर साल 50 से 60 किलो बीज तैयार करते हैं। एक एकड़ में चार से पांच किलो बीज डाला जाता है। इस सीजन में 400 से 600 रुपये किलो गाजर का बीज बिक रहा है। गाजर की बिजाई अगस्त से अक्टूबर माह में होती है और जनवरी से मार्च तक गाजर की खोदाई होती है। प्रति एकड़ सवा लाख से डेढ़ लाख रुपये की आमदनी होती है और 40 से 50 हजार रुपये की लागत आती है।
परंपरागत खेती में समय ज्यादा, बचत कम
छोटूराम ने बताया कि परंपरागत खेती करते हैं, तो साल में दो ही फसल ले पाते हैं। जिसमें आमदनी भी सीमित है। जबकि गाजर की फसल तीन महीने की है और इसमें बचत भी काफी अच्छी है। इसकी विशेषता ये है कि ये हर तरह की मिट्टी में हो जाती है। जो किसान गाजर की खेती करना चाहते हैं, वे किसी भी समय उनसे मिल सकते हैं।