झज्जर की माटी का लाल बना कुश्ती के क्षितिज का सूरज
????? ?? ???? (???? ????) ?? ????? ?? ?? ??? ???? ?????? ?? ?????? ?? ??????? ?? ???? ???? ?? ???? ??? ???? ??? ?? ???? ?? ?????? ?? ??? ???? ?? ???? ?? ?????? ?? ??? ??? ??????? ?? ??? ?? ???? ?????? ??? ??? ??? ?? ????? ?? ???? ???? ?? ?? ???? ????? ?? ?? ????-???? ?? ?? ????? ?? ???? ???????? ????? ??? ?? ????? ????? ?? ???? ?? ????? ?? ??????? ?? ??????
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ :
झज्जर की माटी (छारा गांव) से निकला एक और लाल दीपक पूनिया कुश्ती के क्षितिज पर सूरज बनकर जा चमका है। पांच साल की उम्र से कुश्ती का शौक पड़ा और गांव के अखाड़े से शुरू हुआ कामयाबी का सफर आज पूरी दुनिया देख रही है। इस मुकाम के पीछे दीपक की जी तोड़ मेहनत है तो माता-पिता का वह पसीना भी जिसे उन्होंने रातों में भी जागकर बहाया और बेटे की मेहनत को शिद्दत से सींचा।
दीपक के पिता सुभाष खेतीबाड़ी और पशुपालन करते हैं। मां कृष्णा गृहिणी है। दीपक की दो बड़ी बहने मनीषा और पिकी शादीशुदा हैं। गांव के गरीब परिवार से निकले दीपक अब वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे हैं तो सबकी नजरें टिकी हैं। फिलहाल दीपक सेना में कार्यरत हैं। इससे पहले कई उपलब्धियां दीपक के नाम हैं। कम दूध हुआ तो हमने नहीं पीया, बेटे को ही दिया : सुभाष
पांच साल की उम्र थी दीपक की। जब मैं खेत में जाता तो पास में ही अखाड़े को देखता। वहीं से दीपक को प्रेरित किया। उसने भी जैसे यही सोच रखा था। गांव के लाला दीवानचंद अखाड़े में अभ्यास शुरू किया। दीपक को हम एक ही बाते कहते थे कि हमारी मेहनत को गवां न देना। हमारे पास करीब डेढ़ एकड़ जमीन है। घर में एक भैंस व गाय हैं। खेत से तो परिवार के गुजर-बसर का अनाज मिल पाता था। बाकी दूध बिक्री करके काम चलाया। किसी दिन दूध कम हुआ तो हमने नहीं पीया, दीपक को ही दिया। आधी रात को आंख खुलती तो मैं चुपके से अखाड़े में यह देखने पहुंच जाता कि दीपक क्या कर रहा है। आज गर्व होता है कि जैसा सोचा, वैसा ही दीपक बन गया। वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में दीपक को जीत मिले तो एक बड़ा सपना पूरा हो जाए। इधर, मां कृष्णा भी बेहद खुश है और दीपक की जीत की दुआ कर रही है। परिवार में दादी सरतो के अलावा चाचा व ताऊ भी खुश हैं। दीपक का लक्ष्य अर्जुन जैसा : कोच
दीपक पूनिया को बचपन से कुश्ती के दांव-पेंच सिखाने वाले झज्जर के गांव छारा के लाला दीवानचंद अखाड़े के संचालक वीरेंद्र पहलवान बताते हैं कि दीपक ने सिर्फ खाने, सोने और अभ्यास पर ही ध्यान दिया। उसकी सफलता इसी का नतीजा है। उसका लक्ष्य बिल्कुल अर्जुन जैसा है।