गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए उर्वरक का विशेष योगदान :डा. कौशिक
जागरण संवाददाता बहादुरगढ़ उपमंडल में रबी सीजन में गेहूं एक मुख्य फसल है जो यहां के
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ :
उपमंडल में रबी सीजन में गेहूं एक मुख्य फसल है, जो यहां के किसानों द्वारा खाद्यान्न पूर्ति के लिए सदियों से उगाई जाती है। हरित क्रांति से पहले किसानों द्वारा पैदा किए जाने वाली गेहूं की फसल में ज्यादा पैदावार नही होती थी, जिसमें किसी प्रकार का कोई भी उर्वरक प्रयोग में नही लाया जाता था। मगर खाद्यान्न की पूर्ति के लिए हरित क्रांति के बाद यहां पर ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं की किस्मों का किसानों द्वारा प्रयोग किया जाने लगा। इससे फसल में रासायनिक उर्वरकों की आपूर्ति बढ़ने लगी है। इस प्रकार से गेहूं की अच्छी पैदावार लेने के लिए फसल में उर्वरक का विशेष योगदान है। उर्वरक की एक निश्चित मात्रा डालकर गेहूं की अच्छी पैदावार ली जा सकती है। उपमंडल कृषि अधिकारी डा. सुनील कौशिक ने बताया कि मिट्टी जांच के आधार पर ही उर्वरक की मात्रा गेहूं फसल में देनी चाहिए। यदि गेहूं दालों या परती छोड़ने के बाद बोई जाए तो नाइट्रोजन की मात्रा 25 फीसद कम कर देनी चाहिए तथा ज्यादा पोषक तत्व खींचने वाली फसलों जैसे बाजरा, ज्वार के बाद बोएं तो यह मात्रा 25 फीसद बढा़ए। हल्की मिट्टी में यूरिया को सिचाई के बाद बत्तर आने पर डाले तथा यूरिया को दो बार की बजाय तीन बार में डालें। डीएपी, पोटास, जिक की पूरी मात्रा बिजाई के समय ही डाले। खड़ी फसल में मैगनीज की कमी के लक्षण आने पर पत्तियां भूरे पीले रंग की धारियां पत्ती के सिरे से शुरू ही जाती हैं तथा नीचे तक जाती हैं। बालियां देरी से व मुडी-तुड़ी होकर निकलती हैं। उसके लिए 5 फीसद मैगनीज सल्फेट के घोल को 10-15 दिन के अंतराल पर 3-4 स्प्रे करें तथा लोहे की कमी में नीचे की पत्तियां हरी तथा नई निकलने वाली पत्तियां पीली धारीदार या पूरी पीली हो जाती हैं। इसके लिए 5 फीसद फैरस सल्फेट का घोल बना कर 8-10 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें। डा. सुनील कौशिक ने बताया कि गेहूं की फसल में जस्ते की कमी भी पाई जाती है जिसमें पौधे पर नीचे से तीसरी या चौथी पत्तियों के बीच में हल्के पीले रंग के अनियमित धब्बे आ जाते हैं जो कि बाद में बडे़ होकर मिल जाते हैं। इससे सफेद, पीली, हरी चित्तियां बन जाती हैं। अधिकतर ये लक्षण बिजाई के 25-30 दिन बाद दिखाई पड़ते हैं। इससे पत्तियां एकदम मुड़ जाती हैं तथा कमजोर होकर गिर जाती हैं। खड़ी फसल में जस्ते की कमी के लक्षण प्रकट होने पर 0.5 फीसद जिक सल्फेट व 2.5 फीसद यूरिया का घोल बनाकर 15-15 दिन के अंतराल पर दो स्प्रे करें।