मार्क्स से प्यारे हैं वो : आइपीएस शशांक कुमार सावन ने बताया कैसे पाया जीवन में खास मुकाम
जागरण संवाददाता झज्जर आइपीएस शशांक कुमार सावन की सफलता की कहानी के पीछे रिश्तों
जागरण संवाददाता, झज्जर : आइपीएस शशांक कुमार सावन की सफलता की कहानी के पीछे रिश्तों का मर्म, प्रेरणा का प्रकाशपुंज, संघर्षो की साधना और काबिलियत, सब कुछ है। जी हां, छोटी सी उम्र में खास मुकाम पर पहुंचे आइपीएस शशांक कुमार सावन का कहना है कि रेलवे विभाग में उच्च अधिकारी पिता शैलेंद्र सिंह सावन हमेशा से ही पढ़ाई के प्रति गंभीर थे। बुक शॉप पर जाकर घंटों वहां बैठकर किताबों की तलाश करना और ज्ञान वर्धन के लिए उन किताबों का सदुपयोग हो पाए। इसका बेहतर ढंग से मार्गदर्शन करना। यह उन्हें विरासत में मिला है। पढ़ाई के दौरान मार्क्स ज्यादा आए। इस बात पर को लेकर कभी भी त्वज्जो नहीं दी जाती थी। त्वज्जो इस बात की रहती थी कि संस्कारों का पोषण भी उसी के अनुरूप हो। घर को बनाने वाली मां सरिता सिंह परिवार के सभी सदस्यों का ध्यान रखने के साथ-साथ सख्ती से इस बात का ध्यान रखती थी कि लक्ष्य को मद्देनजर रखकर की जा रही तैयारी में कहीं कोई भटकाव तो नहीं हो रहा। ---खेल के लिए निकालते थे दो घंटे समय आइपीएस शशांक कुमार सावन बेशक ही आज सफलता की ऊंची आसंदी पर बैठे हों, लेकिन उनकी मेहनत और अभिभावकों का सहयोग प्रेरक प्रसंग से कम नहीं हैं। वे बातचीत में बताते हैं कि मैं और मेरे छोटे भाई की सोच और लक्ष्य अलग-अलग थे। लेकिन हम दोनों को अपनी रूचियों को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा ही प्रोत्साहित किया गया। पारंपरिक किताबों से जोड़े रखते हुए हमें हमेशा रोजाना दो घंटे तक खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। ताकि शारीरिक रूप में भी स्वस्थ रहे। पिता द्वारा मिलें मार्गदर्शन में हमेशा समझाया जाता था कि हमें अपनी ताकत को पहचानना चाहिए और अपनी कमियों को तलाशते हुए उनपर काम करना चाहिए। चूंकि प्रत्येक व्यक्ति में बहुत सी खासियत होती है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम स्वयं इस बात समझ और परख पाए। समय रहते हुए अपनी कमियों को सुधारने की दिशा में मेहनत करें। बेशक ही यह सौभाग्य है कि अभिभावकों का मिलने वाला मार्गदर्शन और उनके अनुभवों की सीख जीवन को एक नई गति प्रदान करने का काम करती है। --- कभी भी परीक्षा के अंकों पर ध्यान नहीं दिया आइपीएस शशांक कुमार सावन का कहना है कि परीक्षाओं के दौरान आने वाले अंक एकबारगी अहसास कराते हैं कि हम कक्षा में कहां पर खड़े हैं। लेकिन वास्तविक जीवन में हमें क्या करना हैं और कैसे करना है। इसके लिए अभिभावकों का मार्गदर्शन बहुत अहम रोल अदा करता है। वहां पर इन अंकों का कोई महत्व नहीं होता। अभिभावकों की कड़ी मेहनत और उनका हमारे प्रति समर्पण बेशक ही सहज प्रक्रिया के रूप में दिखाई नहीं दे। लेकिन छोटी से छोटी जरूरतों को समय पर पूरा करना और स्वयं की इच्छाओं को दरकिनार करना। यह अभिभावक ही कर सकते है। इसलिए सभी युवाओं को आह्वान हैं कि वह समय रहते हुए अपने अभिभावकों की बातों को ध्यान पूर्वक सुनें, समझें और उसका अनुसरण करें।
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