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एक माह से डटे हरियाणवीं गबरू सीख गए रोटी बेलना और जलेबी बनाना

जागरण संवाददाता बहादुरगढ़ किसान आंदोलन में एक माह से डटे हरियाणवी गबरू यहां पर र

By JagranEdited By: Published: Sun, 27 Dec 2020 05:21 AM (IST)Updated: Sun, 27 Dec 2020 05:21 AM (IST)
एक माह से डटे हरियाणवीं गबरू सीख गए रोटी बेलना और जलेबी बनाना
एक माह से डटे हरियाणवीं गबरू सीख गए रोटी बेलना और जलेबी बनाना

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़:

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किसान आंदोलन में एक माह से डटे हरियाणवी गबरू यहां पर रोटी बेलना, जलेबी पकाना, आटा गूंथना जैसे रसोई के काम बारीकी से सीख गए हैं। किसी से पूछा तो वे खुद हंसते हुए कह देते हैं घर पै तै हमने कदे पानी का गिलास भी ना पकड़या, इब सारे काम करने पड़रे सैं।

दरअसल, रसोई का कार्य पंजाब के किसान तो चाहे युवा हो या फिर बुजुर्ग मिलकर कर लेते हैं लेकिन हरियाणा में एक परंपरा रही है कि यहां पर बुजुर्गो को रसोई के कार्य नहीं करने दिया जाता। इसे सामाजिक और संस्कारिक परंपरा माना जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि हुक्के पर मंडली बैठी हो और उसमें बुजुर्ग और युवा दोनों हो तो कभी भी चिलम भरकर लाने का काम बुजुर्ग से नहीं करवाया जाता है। कहने का अर्थ यह है कि जब बड़े बैठे हो तो छोटों को ही ऐसे कार्य करने पड़ते हैं। अब रसोई के कामकाज का जहां तक सवाल है तो यह महिलाओं से जुड़ा विषय है। ऐसे में इस कार्य को हरियाणवीं बुजुर्ग करें, यह तो हो नहीं सकता। आंदोलन में खाने के साथ जलेबी भी बनाई जा रही है। सुबह-शाम खूब सारा आटा गूंथना पड़ता है। कई घंटे तक रोटियां बनाई जाती है। सब्जी तैयार की जाती है। ऐसे में जितनी भी किसान मंडली प्रदेश के दूरे के जिलों से आई हुई हैं, उनमें ये सारे कार्य युवा किसानों को करने होते हैं। मगर खास बात तो यह है कि इन हरियाणवी गबरुओं ने कभी ऐसा कामकाज किया ही नहीं था। अब वे चकला-बेलना से रोटी बले रहे हैं। हाथों में लेकर उसे फैला रहे हैं। सब्जी भी काट रहे हैं। यह सारे काम एक महीने से कर रहे हैं और इसमें अब पारंगत भी नजर आ रहे हैं। दिल्ली अस्पताल के पास जलेबी बना रहे ढाबी टेक सिंह गांव के मोनू हो या फिर चकला-बेलन पर रोटी बेल रहे हिसार के डट्टा मसूदपुर के विक्रम, किसी ने पहले ये कार्य नहीं किए।


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