स्वदेशी डोर से मजबूत हो रहा प्रेम का बंधन
जहां रक्षाबंधन पर हर रेहड़ी व दुकान में चाइनीज राखियां सजी मिलती थीं। वहीं इस बार भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते को मजबूत करने का काम स्वदेशी डोर करेगी।
जागरण संवाददाता, झज्जर : जहां रक्षाबंधन पर हर रेहड़ी व दुकान में चाइनीज राखियां सजी मिलती थीं। वहीं इस बार भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते को मजबूत करने का काम स्वदेशी डोर करेगी।
ग्राहक ही नहीं विक्रेताओं ने भी चाइनीज राखियों का बहिष्कार करते हुए स्वदेशी राखियों को ही खरीदना आरंभ कर दिया है। अब रेहड़ियों और दुकानों पर स्वदेशी राखियां ही नजर आ रही हैं। पिछले वर्षों की बात करें तो बाजार में बिकने वाली 25-30 फीसद राखियां चाइनीज होती थीं। इनमें खासकर बच्चों की खिलौनों वाली राखियां शामिल थीं। इस बार बाजार से चाइनीज राखियां गायब हैं। इधर, बाजार में जहां लोगों ने चाइनीज राखियों का बहिष्कार किया है, वहीं झज्जर में बनी राखियों का चलन भी एकाएक बढ़ गया है। पहले के मुकाबले इस बार अधिक विक्रेता झज्जर से बनी राखियां बेच रहे हैं। साथ ही अधिकतर चाइनीज राखियां दिल्ली से ही आती हैं। संकट की इस घड़ी के चलते लोग दिल्ली से भी दूरी बना रहे हैं। राखी विक्रेता झज्जर में र्निमत राखियों को ही खरीदना अधिक पसंद कर रहे हैं। - इस बार विक्रेता भी चाइनीज राखियों का बहिष्कार कर रहे हैं। स्वदेशी राखियां ही बेची जा रही हैं। बहनें भी स्वदेशी राखियों अधिक पसंद कर रही हैं। पहले जहां बाजार में 25-30 फीसद राखियां चाइनीज होती थीं। इस बार चाइनीज राखियां गायब हैं।
संजय, राखी विक्रेता, झज्जर। - चाइनीज राखियों के बहिष्कार व कोरोना वायरस के चलते दुकानदार दिल्ली से राखी नहीं खरीद रहे। इसलिए पिछले वर्षों के मुकाबले लोकल ग्राहक स्थानीय उत्पादों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। लेकिन, राखियों की डिमांड केवल 50 फीसद से कम रह गई है।
संतोष जैन, राखी निर्माता, झज्जर।