भागवत कथा : हो जाए गलती तो जरुर करें प्रायश्चित, गुरू के सामने नहीं करनी चाहिए चंचलता
- संकीर्तन करते हुए श्रद्धालुओं ने दिखाएं अपने भाव
जागरण संवाददाता, झज्जर : गुरू की महत्ता हमारे जीवन में अनुपम है। क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं। लेकिन, हमेशा इस बात का सदैव ही ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए और सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरू की वाणी का श्रवण करें। यह विचार नगर में चल रहे महायज्ञ में श्रीमदभागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास आचार्य पं. विमल कृष्ण पाठक जी महाराज वृन्दावन धाम वाले ने प्रवचन करते हुए कहें। उन्होंने कहा कि घर द्वार छोड़कर वन में चले जाने ही वैराग्य नहीं होता । बल्कि अपने अंत:करण की शुद्धता इसमें नितांत आवश्यक है। हमारे जीवन में विचारों का आदान प्रदान रोम-रोम से होता है इसके लिए सिर्फ नाक, कान और आखें ही नहीं होती हैं। संत महात्मा की ²ष्टि को दिव्य बताते हुए कहा गया कि हम उतना ही देख सकते हैं जितनी दूर तक हमारी ²ष्टि जाती है, लेकिन संत जन अनंत तक देखने की ²ष्टि रखते हैं। सत्संग से बदल जाती है जीवन की धारा : उन्होंने कहा कि सत्संग तो जीवन की धारा बदल देता है जिसमें आप ज्ञान और भक्ति की धारा में बहने लगते हैं, लेकिन यहां पर भी यदि कई बार लोग सत्संग करते हैं लेकिन उसका मूल नहीं समझ पाते, जिससे जीवन पर्यंत सत्संग करने के बाद भी अंत में उनको कुछ भी हासिल नहीं होता है। कथा के दूसरे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
इस मौके पर मुख्य रुप से तरुण गोंसाई, पूर्ण चंद सुनेजा, पंचनद के प्रधान ईश्वर शर्मा, पं. गुलशन शर्मा, सुभाष गुर्जर, अशोक गेरा, जगत नारायण, हरीश सैनी, मनोज तलवार, जग्गी गेरा, विनीत पोपली आदि मुख्य रुप से मौजूद रहे।