World Cancer Day 2021: जानें, हरियाणा के साहसी लोगों की कहानी, किसी ने गो-मूत्र तो किसी ने जज्बे से पाया कैंसर पर काबू
कैंसर जानलेवा बीमारी से उभरना कोई आसान नहीं है। इसका इलाज तो है लेकिन बीमारी को कुछ समय के लिए नियंत्रित करने का बीमारी को पूर्ण रूप से ठीक करने का नहीं। शरीर में कोई विकार जरूर आता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो पूर्ण रूप से स्वस्थ हुए।
रोहतक [ओपी वशिष्ठ] कैंसर का नाम सुनते ही एक बार तो पैरों तले की जमीन खिसक जाती है। इस जानलेवा बीमारी से उभरना कोई आसान नहीं है। इसका इलाज तो है, लेकिन बीमारी को कुछ समय के लिए नियंत्रित करने का, बीमारी को ठीक करने का नहीं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने जज्बे से कैंसर को ही मात देने का काम किया है। उन्होंने न केवल बीमारी को बढ़ने से रोक दिया बल्कि बेहतर जिंदगी जी रहे हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही साहसी लोगों की कहानी।
केस नंबर - 1 : वेदपाल ने गोमूत्र से कैंसर को हराया
जिला के सांघी गांव निवासी 67 वर्षीय वेदपाल सिंह पीजीआइएमएस रोहतक में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। गले में दर्द रहने लगा, जब इसकी जांच करवाई तो कैंसर बताया। वेदपाल एक बार तो कैंसर का नाम सुनते ही सुन्न हो गया। लेकिन फिर थोड़ा संभला और इलाज कराना शुरू किया। कैंसर का पता 2004 में लगा। एक बार तो उनको लगा कि परिवार को कौन संभाल पाएगा। एक बार तो सोचा स्वेच्छा से सेवानिवृत्त ले ले। लेकिन बाद में पीजीआइ के चिकित्सक व परिवार के सदस्यों के साथ विचार-विमर्श किया और कैंसर विभाग में इलाज शुरु करवाया। गले का आपरेशन हुआ, थोड़ी आवाज तो चली गई, लेकिन धीरे-धीरे इस बीमारी से उभरना शुरू हो गए। उन्होंने बताया कि कैंसर रोग विभाग के प्रोफेसर डा. अशोक चौहान ने इलाज के साथ-साथ उनको हौसला भी दिया।
गोमूत्र के सेवन से मिला लाभ
वेदपाल ने बताया कि वैसे तो पीजीआइएमएस में इलाज चला। लेकिन किसी ने उसे गोमूत्र के सेवन की सलाह दी। गोमूत्र का लंबे समय से सेवन किया, जिससे कैंसर की बीमारी से उभरने में मदद मिली। वह न केवल घर के बल्कि खेत में भी काम कर लेते हैं। दोनों बेटों को कामयाब कर दिया। एक बेटा पुलिस में भर्ती कराया जबकि दूसरा बेटे विनोद की गांव में ही खाद-बीज की दुकान करवा दी। वेदपाल के बेटे विनोद ने बताया कि एक बार तो कैंसर का पता चला तो परिवार पूरी तरह से टूट गया था। लेकिन पिता के हौसले को देखते हुए धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। थोड़ा आवाज में तो बदलाव आया, लेकिन वैसे पूरी तरह से स्वस्थ है।
केस नंबर-2 : मास्टरजी के हौंसले से कैंसर ने टेके घुटने
सोनीपत के गांव बुटाना निवासी 78 वर्षीय करण सिंह को वर्ष 2004 में गले में कैंसर हो गया था। करण सिंह शिक्षा विभाग में जेबीटी अध्यापक थे और 2001 में सेवानिवृत हो गए। सेवानिवृति के तीन साल बाद ही कैंसर ने उनके गले को जकड़ लिया। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और पीजीआइएमएस रोहतक के कैंसर रोड विभाग में इलाज शुरू कराया। डा. अशोक चौहान ने इलाज किया। गले का आपरेशन हुआ और आवाज चली गई। लेकिन बाद में धीरे-धीरे आवाज वापस लौट आई। अब वे पूरी तरह से ठीक हैं और गोहाना में खुद दुकान चलाते हैं।
ऐसे किया कैंसर पर नियंत्रण
करण सिंह ने बताया कि गले में कैंसर का आपरेशन कराने के बाद उन्होंने एहतियात बरतना शुरू किया। उन्होंने हुक्का, बीड़ी, सिगरेट को पूरी तरह से तौबा बोल दिया। शराब का सेवन भी नहीं किया। धूल और धुएं से दूरी बनाई। धूम्रपान और शराव के लिए कई बार साथियों ने दबाव भी बनाया, लेकिन अपने संकल्प पर कायम रहा। धूल और धुएं के पास भी नहीं जाते। इन छोटी-छोटी बातों पर गौर करने से ही कैंसर की बीमारी को मात देकर अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं। परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे और दो बेटियां हैं, सभी घर-गृहस्थी वाले हो गए हैं। परिवार की सभी जिम्मेदारियां पूरी कर चुके हैं और टाइमपास के लिए गोहाना में दुकान चलते हैं।