सूखा पड़ने पर भी होगी गेहूंं की फसल, पोलैंड और एचएयू के वैज्ञानिक तैयार करेंगे ऐसी किस्में
पोलैंड के वैज्ञानिकों ने एमओयू के लिए एचएयू के प्रतिनिधियों को बुलाया पोलैंड। एक साथ एक प्रोजेक्ट पर रिसर्च कर तैयार करेंगे किस्में। किसानों को मिलेगी बीमारी रहित गेहूं की फसल।
हिसार [वैभव शर्मा] भारत में जलवायु परिवर्तन फसलों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। पर्याप्त पानी नहीं मिलने या बारिश नहीं होने पर सूखे व विभिन्न रोगों के कारण किसानों की हर साल गेहूं की फसल बर्बाद हो जाती है। अब ऐसे ही हालात पोलैंड में ही बनने लगे हैं। इस मसले पर पोलैंड की द प्लांट ब्रीडिंग एंड एक्लामाइजेशन नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि आइएचएआर में वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. हैब एडवर्ड अरसेनिक ने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं अनुभाग में वैज्ञानिकों से समीक्षा की।
इन हालातों से निपटने के लिए दोनों ही संस्थानों ने एक साथ आने का फैसला लिया है। इसके लिए दोनों संस्थानों के वैज्ञानिक एक एमओयू साइन कर रिसर्च भागीदारी करेंगे। इस एमओयू का उद्देश्य गेहूं की ऐसी किस्में तैयार करना है, जो सूखा व रोगों को झेलने की शक्ति रखती हों। भारत और पोलैंड एक ही प्रकार की समस्या से गुजर रहे हैं।
पोलैंड में भी पीला रत्वा जैसी बीमारी सूखे के दौरान गेहूं में आ रही है। ऐसे में दोनों संस्थानों का एक साथ आना जरूरी बन गया है। डा. हैब एडवर्ड ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत करते हुए बताया कि हमने आगामी कांफ्रेंस के लिए कुलपति प्रो. केपी ङ्क्षसह को पोलैंड आने का आमंत्रण दिया है, इसके साथ ही हमने उनसे इस काम से जुड़ी समिति में बतौर चेयरमैन शामिल होने का प्रस्ताव भी दिया है।
तीन दिन की कांफ्रेंस पोलैंड में होगी आयोजित
वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. हैब एडवर्ड अरसेनिक ने बताया कि जल्द ही वह पोलैंड में एक कांफ्रेंस आयोजित करेंगे, जिसमें एचएयू के वैज्ञानिकों को भी बुलाया गया है। एचएयू की तरफ से एमओयू के दौरान वैज्ञानिक डा. ओपी बिश्नोई की भी मुख्य रूप से भागीदारी रहेगी। इस कांफ्रेंस के माध्यम से दोनों ही संस्थानों के वैज्ञानिक व शोधार्थी अपनी-अपनी रिसर्च के अनुसार मत रख सकेंगे, ताकि गेहूं को लोगों के लिए उपयुक्त व अधिक पैदावार वाली फसल बनाया जा सके।
गेहूं में यह रोग हैं
समस्यारत्वा रोग- यह पत्तियों में होता है। पीला रत्वा व भूरा रत्वा ट्रिटी में ज्यादा आता था, मगर वर्ष 2000 के बाद भारत में गेहूं में भी इसकी शुरुआत हो गई। यह समस्या पहले पोलैंड में थी ही नहीं मगर अब क्लाइमेंट चेंज होने से वहां भी दिक्कत हो रही है।
सेप्टोरिया बीमारी- भारत में सेप्टोरिया बीमारी अभी कम है। मगर वैज्ञानिक मानते हैं कि आने वाले समय में यह भारत में भी बढ़ेगी, क्योंकि क्लाइमेट चेंज हो रहा है।