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शर्त से शुरू हुआ था खेल, दो दोस्तों ने दो दिन में नाप दी माउंट फ्रेंडशिप की 5242 मीटर ऊंची चोटी

दोनों दोस्तों ने हिमाचल के मनाली स्थित माउंट फ्रेंडशिप की 5242 मीटर चोटी को सिर्फ दो दिन में नाप डाला। दीपक व आलोक ने 21 अक्टूबर को सुबह 10 बजे चढ़ाई आरंभ की और 22 की शाम 5 बजे फतह हासिल कर ली।

By Manoj KumarEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 09:33 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 09:33 AM (IST)
शर्त से शुरू हुआ था खेल, दो दोस्तों ने दो दिन में नाप दी माउंट फ्रेंडशिप की 5242 मीटर ऊंची चोटी
सिरसा के आलोक और हिसार के नारनौंद निवासी दीपक सैनी ने कमाल कर दिखाया है

हिसार [सुभाष चंद्र] करीब डेढ़ साल पहले सिरसा के खारिया निवासी आलोक हिमाचल में रोहतांग से आगे चीन बॉर्डर पर लाउस्पीदी गांव में दोस्तों के साथ घूमने गया था। वहां उनमें शर्त लग गई। एक दोस्त ने बर्फ की पहाड़ी के बीच स्थित महात्मा बुद्ध की मूर्ति को छूकर आने पर आलोक का सारा यात्रा खर्च भुगतने की बात कही। आलोक ने पहाड़ी पर चढ़ाई करते हुए 33 मिनट में महात्मा बुद्ध की मूर्ति को छू लिया। आलोक यहीं नहीं रुका, उसने एक घंटा 51 मिनट में पहाड़ी की चोटी के  नजदीक तक चढ़ाई कर दी।

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यहां से आलोक ने एवरेस्ट की चढ़ाई लक्ष्य बनाया। इसमें उसने नारनौंद निवासी दीपक सैनी को अपने साथ जोड़ा। दोनों दोस्तों ने हिमाचल के मनाली स्थित माउंट फ्रेंडशिप की 5242 मीटर चोटी को सिर्फ दो दिन में नाप डाला। दीपक व आलोक ने 21 अक्टूबर को सुबह 10 बजे चढ़ाई आरंभ की और 22 की शाम 5 बजे फतह हासिल कर ली।

लॉकडाउन में छिना रोजगार

आलोक ने बताया कि 12वीं कक्षा में पढऩे के दौरान हिसार में सेक्टर 15 में रह रहे थे। उस दौरान दीपक से दोस्ती हुई। आलोक ने बताया कि कुछ समय पहले जयपुर में रेस्टोरेंट व होटल का काम किया था। कोरोना के चलते लॉकडाउन होने पर वह काम बंद हो गया था। दोबारा काम करने की सोची, लेकिन वहां टूरिस्ट न आने के कारण काम नहीं हो सका।

वियतनाम में विदेशियों को सिखाया योगा

नारनौंद निवासी 26 वर्षीय दीपक ने योगा में ग्रेजुएशन की है। 2013 में साईं सेंटर में कुश्ती की कोङ्क्षचग ली थी। दीपक नेशनल कुश्ती प्रतियोगिता में भाग ले चुका है। करीब तीन साल पहले दिल्ली में योग सिखा। इसके बाद वियतनाम में विदेशियों को योगासन सिखाए। लॉकडाउन से पहले दो साल तक वियतनाम में रहा। आलोक से एवरेस्ट की तैयारी की बात हुई तो 12 मार्च को भारत वापस आ गया। दीपक के पिता रामनिवास हलवाई का काम करते हैं। दीपक व आलोक ने बताया कि वह माउंटेनियर रोहताश से ट्रेङ्क्षनग लेते हैं।

अंधेरा में भूल गए थे रास्ता

उन्होंने बताया कि 21 अक्टूबर सुबह माउंट फ्रेंडशिप की चढ़ाई शुरू की थी। शाम चार बजे सेकेंड कैंप में पहुंच गए थे। गाइड ने कहा कि रात 2 बजे आगे की समिट शुरू करेंगे। अगले दिन सुबह 8 बजे नींद खुली। सोचा कि अभी चलते है, लेकिन थोड़ा चलते ही आलोक की तबीयत खराब हो गई। गाइड ने आराम करने के लिए कहा, लेकिन आलोक ने कहा कि वह ठीक है, अभी समिट पूरा करेंगे। उसी दौरान बर्फ पडऩे लगी, पर उन्होंने हार न मानते हुए समिट जारी रखी। बर्फ में फिसलने से गाइड समेत दोनों को पांव में चोट भी आई। चलने में दिक्कत न हो, इसलिए एक बैग वहीं छोड़ दिया। आगे की चढ़ाई शाम पांच बजे तक कर समिट पूरा किया। उतरते समय अंधेरा हो गया। इसी दौरान रास्ता भूल गए।  किसी तरह गाइड ने रास्ता ढूंढा।


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