टिड्डियों को लेकर जिस बात का था डर वही हुआ, हरियाणा में प्रजनन कर बढ़ा ली कई गुना संख्या
टिड्डियों को लेकर जिस बात का डर था और अंदेशा जताया गया था वहीं हुआ। प्रजनन करके अब टिड्डी दल कई गुना संख्या में हो गई हैं। भिवानी में टिड्डी मक्खियों की तरह भिनभिना रही हैं।
ढिगावा मंडी (भिवानी) [मदन श्योराण] टिड्डियों को लेकर जिस बात का डर था और अंदेशा जताया गया था, वहीं हुआ। प्रजनन करके अब टिड्डी दल कई गुना संख्या में हो गई हैं। भिवानी जिला में टिड्डी दल का खतरा अभी कम नहीं हुआ है। यह हरियाणा को भी अपनी जद में ले सकता है। पिछले दिनों ढिगावा क्षेत्र के कुछ गांवों में टिड्डी दल ने पड़ाव डाला था। उस दौरान यहां किए प्रजनन के बाद जमीन से करोड़ों की संख्या में फाका (टिड्डियों के बच्चे) निकल रहे हैैं। कृषि विभाग द्वारा इन पर दवा का छिड़काव किया जा रहा है, लेकिन इसमें दिक्कत यह है कि बहुत कम फाका की ही खोज हो पाई है। अब इनके छोटे बच्चे बाहर निकल सामने आने लगे हैं, वहीं जमीन में खोदने पर लारवा भी मिल रहा है। ऐसे में यह और भी ज्यादा फल फूल सकती हैं।
गौरतलब है कि 9, 10, 11 और 12 जुलाई को क्षेत्र के गांवों बिठण, अमीरवास, बुढेड़ा, चैहड़ और नकीपुर आदि में टिड्डी दल मंडराता रहा था। इन गांवों में उस दौरान टिड्डी दल ने जमीन के अंदर अंडे दिए थे। करीब 10 से 12 दिन बाद टिड्डी दल के अंडों से शुक्रवार और शनिवार को फाका निकालकर बाहर मंडराने लगे तो कृषि अधिकारियों ने दवा का छिड़काव किया। कृषि विभाग की टीम बिठण, चैहड़ और नकीपुर के क्षेत्र में फाका तलाश अभियान चलाया हुआ है।
करोड़ों की संख्या में जमीन के अंदर अंडों से निकल रहे फाका पर काबू पाना कृषि विभाग के लिए आसान नहीं है। यह फाका फसलों से रस चूसने लगा है। खंड कृषि अधिकारी चंद्रभान श्योराण के अनुसार अभी फाका जमीन से निकल रहा है, जिसकी खोज की जा रही है। जहां-जहां फाका दिखाई दिया है, वहां छिड़काव किया जा रहा है। अधिकारियों का दावा है कि दवा के संपर्क में आने वाला 70 से 80 फीसद तक फाका नष्ट हो रहा है। उन्होंने बताया कि कई जगह फसल बड़ी होने के चलते वहां पर ट्रैक्टर से दवा की छिड़काव करना मुश्किल है।
कृषि मंत्री जेपी दलाल के भी रविवार को क्षेत्र के गांवों का दौरा कर जायजा लेने की संभावना है। पंचकूला से अतिरिक्त कृषि निदेशक की टीम भी रविवार को क्षेत्र के गांवों मेंं निरीक्षण के साथ-साथ किसानों को टिड्डी के अंडे और फाका को नष्ट करने की जानकारी देगी।
खंड कृषि अधिकारी चंद्रभान ने बताया कि क्षेत्र में जहां-जहां टिड्डी दल ने पड़ाव डाला था, कृषि विभाग उस क्षेत्र में फाका का तलाशी अभियान चला रहा है। अगले दो दिनों तक फाका तलाशी अभियान जारी रहेगा। शनिवार को खंड कृषि अधिकारी रणङ्क्षसह, मनोज डाबला कृषि विकास अधिकारी, मनोज यादव कृषि विकास अधिकारी, विजय, मदनलाल, सतवीर ङ्क्षसह, बलवीर सरपंच, वीरेंद्र सरपंच, महिपाल सरपंच, विनोद, मांगे राम, रतन ङ्क्षसह, दिनेश, सुरेंद्र आदि मौके पर मौजूद रहे।
टिड्डी को कैसे मिलती है इतनी ऊर्जा
लगातार सफर करते रहने के लिए टिड्डियों को निरंतर खाना पड़ता है। इनका प्रमुख आहार नए और हरे पत्ते होते हैं। हरे पत्तों में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट ज्यादा मात्रा में होने के कारण इन्हें चट कर जाते हैं। सूखे पत्तों और मुरझाए पौधों को खाना ज्यादा पसंद नहीं करते हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि एक मादा टिड्डी तीन बार तक अंडे दे सकती है और एक बार में 95-158 अंडे तक देती हैं। टिड्डियों के एक वर्ग मीटर में एक हजार अंडे हो सकते हैं। इनका जीवनकाल तीन से पांच महीनों का होता है। नर टिड्डी का आकार 60-75 एमएम और मादा का 70-90 एमएम तक हो सकता है।
टिड्डी बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में जहां नमी एकत्र हो सकती है, में प्रजनन करती हैं। प्रजनन के लिए मादा कीट ऊर्जा को लिपिड के रूप में संग्रहित करती हैं, जिसमें पानी होता है। भारत में केवल चार प्रजातियां ही मिलती हैं। इसमें रेगिस्तानी टिड्डा, प्रवाजक टिड्डा, बंबई टिड्डा और पेड़ वाला टिड्डा शामिल हैं। इनमें रेगिस्तानी टिड्डों को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। ये टिड्डियां एक दिन में 35 हजार लोगों का खाना चट कर जाती हैं। कृषि अधिकारियों के अनुसार रेगिस्तानी टिड्डों की वजह से दुनिया की 10 फीसद आबादी का जीवन प्रभावित हुआ है।