कपास में गुलाबी सुंडी को चौतरफा घेरेंगे देश के वैज्ञानिक
उत्तर भारत में गुलाबी सुंडी का प्रकोप रोकने के लिए हरियाणा के जींद और सिरसा में होगा
उत्तर भारत में गुलाबी सुंडी का प्रकोप रोकने के लिए हरियाणा के जींद और सिरसा में होगा काम -
कृषि मंत्रालय के प्रोजेक्ट पर देशभर के कपास व कीट वैज्ञानिक करेंगे काम संदीप बिश्नोई, हिसार :
उत्तर भारत में कपास में लंबे समय बाद पिछले वर्ष जब जींद जिले में करीब 10 एकड़ में गुलाबी सुंडी ने दस्तक दी तो किसानों और वैज्ञानिकों की नींद हराम हो गई थी। 90 फीसद तक कपास की फसल को बर्बाद कर देने वाली इस गुलाबी सुंडी की रोकथाम के लिए देश के कपास वैज्ञानिकों ने कमर कस ली है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक नागपुर के सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च के वैज्ञानिकों के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम करेंगे। इस प्रोजेक्ट के तहत हरियाणा के जींद और सिरसा में वैज्ञानिक गुलाबी सुंडी पर नजर रखेंगे और पूरा डाटा एकत्र करेंगे और दोबारा जीन में बदलाव कर इस समस्या का स्थायी समाधान करेंगे। नागपुर के सेंट्रल इंस्टिट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च के डायरेक्टर डा. वीएन वाघमारे के अनुसार देशभर के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने की योजना बनाई गई है। इसके लिए भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के तहत एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। हाल ही में एचएयू में हुई नॉर्थ जोन की बैठक में भी उत्तर भारत को गुलाबी सुंडी को बचाने के लिए मंथन हुआ।
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बीटी कॉटन की प्रतिरोधी हो गई गुलाबी सुंडी-
एचएयू के वैज्ञानिकों के अनुसार जब भारत में अमेरिकन सुंडी का प्रकोप शुरू हुआ तो उस समय मिट्टी में पाया जाने वाला जीन कॉटन के बीज में डाल दिया गया और बीटी कॉटन बीज बना। इस बीज से उपजे पौधे के सेल में भी वह जीन चला गया। यह जीन अमेरिकन सुंडी को खत्म करने वाला था। जब भी सुंडी इस पौधे के बीज या टींडे को खाती तो वह धीरे-धीरे मर जाती। सोने पर सुहागा रहा कि यह बीटी कॉटन तीनों तरह की सुंडी पर काम करने लगा और देशभर में कपास का बंपर उत्पादन हुआ। लेकिन अब धीरे-धीरे गुलाबी सुंडी प्रतिरोधी हो गई है। दूसरी तरफ वैज्ञानिकों ने भी फसल को इससे बचाने के लिए शोध शुरू कर दिए हैं। बता दें कि मध्य और दक्षिण भारत के राज्यों में पिछले 3 साल से गुलाबी सुंडी का सामान्य प्रकोप था।
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ये होती है गुलाबी सुंडी -
गुलाबी सुंडी का वैज्ञानिक नाम पैक्टीनीफोरा गोंसीपीला है। अपने जीवनकाल में यह चार अवस्थाओं से गुजरती है। आम तौर पर फल में कलियां व फूल आने के बाद ही इस सुंडी का प्रकोप शुरू होता है। कई बार गुलाबी सुंडी से ग्रस्त फूलों की पखुड़ियां आपस में मिल जाती है। यह दूर से देखने पर गुलाब की पखुड़ी की तरह ही दिखाई देती है। अंडे में निकली छोटी- छोटी सुंडियां फूल व छोटे बोल्स में सूक्ष्म छिद्र बनाकर उनके अंदर प्रवेश कर जाती हैं। इससे फूल, बोल्स गिर जाते हैं, जिससे फसल नष्ट हो जाती है।
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प्रदेश में साढ़े 6 लाख हैक्टेयर में होती है बुवाई -
एचएयू के कॉटन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. आरएस सांगवान के अनुसार प्रदेश में साढ़े 6 लाख हेक्टेयर में बुवाई होती है। फतेहाबाद, सिरसा जिलों में अपेक्षा अधिक कॉटन उगाई जाती है। प्रदेश में कपास का औसत उत्पादन 26 लाख बेलस (एक बेल में 170 किलो) होता है। कोट -
गुलाबी सुंडी की समस्या फसल में फल आने के काफी बाद आती है। ऐसे में पहली बात तो यही है कि किसानों को जितना जल्द हो सके बिजाई करनी चाहिए। हरियाणा में इसका कोई खास प्रभाव अब तक नहीं है। लेकिन हमने पूरे देश के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक प्लान तैयार किया है।
- डा. वीएन वाघमारे, निदेशक, सेंट्रल इंस्टिट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च।