ड्यूटी पर लेट हुआ तो बॉस ने फटकारा, टेलर के बेटे ने शुरू की कंपनी, अब 7 करोड़ टर्न ओवर
हरियाणा के रोहतक के एक टेलर मास्टर के बेटे ने अपनी मेहनत से मुकाम बनाया और उद्योगपति बन गया। उसने रोहतक में नट-बोल्ट की कंपनी स्थापित की और उसे आगे बढाया। इसके माध्यम से उन्होंने खुद और अन्य लोगों की किस्मत बदली।
रोहतक, [अरुण शर्मा]। इरादे मजबूत हों तो चुनौतियां राह नहीं रोकती। इंसान हर बाधा से सबक लेता है और दोगुने उत्साह से मंजिल की तरफ बढ़ता जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है रोहतक के युवा उद्यमी चंद्रशेखर पाठक की जिनकी सफलता हर उस व्यक्ति को प्रेरित करने वाली है जो संसाधनों के अभाव में अपने मार्ग से विचलित हो जाते हैं।
1969 में काम के सिलसिले में मध्य प्रदेश के रतलाम से रोहतक आए थे ओमप्रकाश
चंद्रशेखर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन आर्थिक तंगी के कारण आइटीआइ मैकेनिकल की पढ़ाई करनी पड़ी। यहां से वे टॉपर बनकर निकले तो निजी कंपनी में नौकरी मिली गई लेकिन इसी बीच उनके पिताजी का निधन हो गया। इससे हादसे से वे अभी उबर भी नहीं सके थे कि एक दिन लेट पहुंचने पर अधिकारी ने जमकर फटकार लगा दी। इस वाक्ये ने इस कदर झकझोरा कि निजी कंपनी में नौकरी करने वाले चंद्रशेखर दूसरों को रोजगार देने वाले बन गए। अब इनकी कंपनी का दुबई, कनाड़ा, न्यूजीलैंड तक कारोबार फैला हुआ है। सालाना टर्नओवर भी सात-आठ करोड़ रुपये है।
माता-पिता के निधन के बावजूद चंद्रशेखर ने नहीं मानी हार, उधार लेकर शुरू किया काम, कई देशों में कारोबार
ओमेक्स निवासी चंद्रशेखर के पिता ओम प्रकाश पाठक 1969 में रतलाम (मध्य प्रदेश) से रोहतक पहुंचे थे। उन्होंने यहां सिलाई का काम शुरू किया। आठ संतानों वाला परिवार बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहा था। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए 44 वर्षीय उद्यमी चंद्रशेखर कहते हैं कि कभी एक दौर था जब परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का मन था, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते ऐसा संभव नहीं हुआ। मैंने 1995 में आइटीआइ मैकेनिकल (तत्कालीन तीन वर्षीय कोर्स ) में प्रवेश पा लिया और 1997 में हरियाणा टॉपर बनकर अपने इरादे भी जाहिर कर दिया। इसके बाद हिमाचल, फरीदाबाद और रोहतक की कंपनियों में कार्य किया। खुद का कारोबार शुरू करने के लिए साल 2000 में जिला उद्योग केंद्र में लोन के लिए आवेदन किया। करीब चार माह तक लगातार चक्कर काटने के बाद भी लोन नहीं मिला। ऊपर से कागजी कार्रवाई में दो-ढाई हजार रुपये खर्च हो गए।
1.32 लाख रुपये के कर्जे से शुरू किया कारोबार
चंद्रशेखर कहते हैं कि 1998 में मां कृष्णा और 1999 में पिताजी का निधन हो गया। परिवार की जिम्मेदारी भी बढ़ गई। मायूस था, लेकिन मुश्किल वक्त में दोस्तों का साथ मिला। दोस्तों से 1.32 लाख रुपये उधार लेकर काम शुरू किया। खुद की मशीनें नहीं थीं। किराए की दो मशीनों से काम करने लगे। धीरे-धीरे कंपनी विस्तार करने लगी। फिलहाल देश की नामी कंपनियों के साथ ही चंद्रशेखर दुबई, कनाड़ा, न्यूजीलैंड में भी तैयार नट-बोल्ट भेजते हैं।
चीन के आर्डर कराए रद
चंद्रशेखर कहते हैं कि मानेसर में यूरोप की एक कंपनी व्हीलचेयर तैयार करती है। संबंधित कंपनी चीन से नट-बोल्ट व अन्य कुछ पुर्जे खरीदती थी। हमने चीन से सस्ती दरों पर यूरोप की कंपनी को नट-बोल्ट व कल-पुर्जे मुहैया कराए। इसके बाद यूरोप की कंपनी ने चीन से दूरी बना ली है। भविष्य की योजना बताते हुए चंद्रशेखर कहते हैं कि सरकार मदद करे तो कुछ अन्य उद्यमियों की मदद से यहां खुद की नट-बोल्ट की सस्ती मशीनें तैयार कर सकते हैं। वैसे इसके लिए ताइवान से वार्ता चल रहीं हैं।