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Research : इंसानों की तरह ही मादा पशुओं के गर्भ में आहार और पानी से विकसित होता है भ्रूण

अल्ट्रासाउंड के आने के बाद मिथ खत्म शोध में पता चला खून से नहीं विकसित होते पशुओं के बच्चे। लुवास ने गर्भवती मादाओं का हर महीने टेस्ट कर रिकार्ड किया तैयार जिसमें हुए कई खुलासे

By Manoj KumarEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 04:05 PM (IST)Updated: Wed, 11 Dec 2019 10:17 AM (IST)
Research : इंसानों की तरह ही मादा पशुओं के गर्भ में आहार और पानी से विकसित होता है भ्रूण

हिसार [वैभव शर्मा] पशु वैज्ञानिक अक्सर मानते थे कि इंसानों और पशुओं में बच्चों के गर्भ में विकसित होने की अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं। जहां इंसानों में उनके आहार से भ्रूण विकसित होता है तो पशुओं में मादा पशु के खून से बच्चे का विकास होता है। मगर लुवास के वैज्ञानिकों के शोध ने इस मिथ को समाप्त कर दिया है। असल में इंसानों की तरह से पशुओं का बच्चा भी गर्भ में आहार से ही विकसित होता है। दरअसल एक मिथ थी कि मादा पशुओं के खून से उनके अजन्मे बच्चे का विकास होता है।

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पेट में जैसे-जैसे पशुओं का बच्चा बड़ा होता जाता है मादा का शरीर उतना ही खून उसे देता है। शोध में लुवास के वेटरनरी गाइनाकोलोजी डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों ने गर्भवती मादा पशुओं को मॉनीटर किया। अल्ट्रासाउंड तकनीक से हर माह गर्भवती मादाओं खासकर दुधारू पशुओं के पेट में बच्चे की स्थिति देखी गई। लुवास के वेटरनरी गाइनाकोलोजी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ आरके चंदोलिया बताते हैं कि शोध में उन्होंने देखा कि गर्भ में पशुओं का बच्चा खून से नहीं बल्कि मादा पशु के चारा खाने से विकसित हो रहा है।

मादा पशु जो चारा खा रही थी वही चारा एक नली के माध्यम से गर्भ में कटड़ा भी खाता मिला और वो भी बड़े पशुओं की तरह ही चबाकर। इसके साथ ही जिस झिल्ली में वह बैठा था उसी का पानी भी पी रहा था। यह देखकर पशु वैज्ञानिक भी हैरान रह गए। यह सब अल्ट्रासाउंड तकनीकी से संभव हो सका। यह सभी शोध कुलपति डॉ गुरदियाल ङ्क्षसह के नेतृत्व में की जा रही हैं।

दिल का साइज और धड़कन की तीव्रता का भी लगा पता

इंसानों में हर माह चैकअप में पता लगा लिया हाता है जच्चा बच्चा के हार्ट की क्या स्थिति है। क्या स्वास्थ्य ठीक है या हृदयगति अधिक तेज है। मगर पशुओं में ऐसा नहीं था। पहले पशु चिकित्सकों को यह नहीं पता लग पाता था कि गर्भवती मादा के बच्चे का दिल का क्या आकार है और वह कितनी तीव्रता से धड़क रहा है। मगर अल्ट्रासाउंड तकनीकी से मॉनीटङ्क्षरग की गई तो हर माह बच्चे के दिल का आकार और धड़कन की तीव्रता को भी दर्ज किया गया। अभी त यह प्रयोग गाय भैंसों में किया गया है। आगे चलकर लुवास अन्य पशुओं का भी ऐसा ही रिकार्ड शोध के लिए कर सकेगा।

जेनेटिक बीमारियों का लग सकेगा पता

कई पशुओं में जेनेटिक बीमारियां लगातार बढ़ती जा रही हैं, इसको रोकथाम के लिए बड़ी जद्दोजहद उठानी पड़ती है। कई बार पशुधन की हानि भी हो जाती है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड तकनीकी के माध्यम से अब मादा पशु के गर्भ में ही पता चल जाएगा कि बच्चे में क्या बीमारी है। क्योंकि जिन पशुओं को मॉनीटर किया जा रहा है उनका रिकार्ड भी लुवास तैयार कर रहा है। ऐसे में अगर किसी मादा पशु के बच्चे में बीमारी आती है तो इसका समय से पहले ही पता चल जाएगा। इस मॉनीटङ्क्षरग सिस्टम के तहत हर माह गर्भवती मादा का चैकअप किया जाता है। ऐसे में पशुधन हानि से बचा जा सकता है।


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