उपले थापने और पशुओं के काम से करती प्रेक्टिस, अर्जुन अवार्डी बन राष्ट्रपति भवन पहुंची पूजा
गांव की बेटी पूजा कादियान ने भारत को उस वुशु विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल दिलाया जिसमें देश अभी तक यह उपलब्धि हासिल नहीं कर सका था,अब वह विश्व चैंपियनशिप की तैयारी में जुटी है
झज्जर [अमित पोपली] गुस्सा सेहत और दिमाग के लिए नुकसानदायी होता है, यह बात सौ फिसदी सच है। मगर इसी गुस्से को जुनून बना अगर लक्ष्य की ओर से बढ़ा जाए तो सफलता कदम चूमती है। हरियाणा के झज्जर की बेटी ने भी यह साबित कर दिखाया। 6 साल की उम्र में ही मां की मौत होने से अकेली रह गई पूजा कादियान ने जीवन में ऐसा संघर्ष किया कि हर कोई इनकी मिसाल दे रहा है।
नानी शांति देवी के साए में पली बढ़ी पूजा ने भारत को उस वुशु विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल दिलाया जिसमें देश अभी तक यह उपलब्धि हासिल नहीं कर सका था। महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूजा को जब अर्जुन अवार्ड से नवाजा तो नानी की आंखें छलक गई। मगर कस्बा बेरी की गलियों से राष्ट्रपति भवन तक का सफर यूं ही तय नहीं हुआ। घर पर गोबर के उपले थापते वक्त प्रैक्टिस करने वाली पूजा ने अपने गुस्से और संघर्ष की ताकत की ऐसी ढाल बनाया कि आज वह विश्व चैंपियनशिप की तैयारी में जुटी है।
दरअसल, एक छोटे से गांव की रहने वाली लड़की अगर देश के लिए गोल्ड मेडल जीतकर आए ये हर परिवार के लिए गर्व की बात होगी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि खेल के लिए शुरुआत में पूजा के परिवार के लोग बिल्कुल राजी नहीं हुए थे। ताइक्वांडो की शिक्षा लेने के लिए उन्होंने छिपकर प्रैक्टिस करना शुरू किया। बाद में जब धीरे - धीरे उनका खेल लोगों के सामने आया तो नाराजगी भी झेलनी पड़ी। लेकिन नानी का पूरा स्पोर्ट मिलने के कारण वह आज इस मुकाम पर पहुंच पाई है। बगैर किसी नियमित कोच एवं सड़कों पर ही जुनून के साथ खेलते हुए बड़ी हुई पूजा ने वुशू वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारतीय इतिहास का पहला स्वर्ण जीता था। कजान में आयोजित हुई प्रतियोगिता के फाइनल में उन्होंने रूस की इव्वियाया स्टेपानोवा को हराया था।
नानी संग गई राष्ट्रपति भवन अवार्ड लेने
अर्जुन अवार्ड के रुप में मिले सम्मान को नानी शांति देवी के साथ राष्ट्रपति भवन के लिए गई पूजा का कहना है कि मुझे हमेशा अच्छा खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। हर उस जगह पर स्पोर्ट किया, जहां भी मुझे खालीपन या अधूरा सा लगता था। कभी ऐसा नहीं लगने दिया कि मां आस-पास नहीं है। साधारण परिवार की पृष्ठभूमि से जुड़ी पूजा ने जो तरकीब उपले थापते सीखीं, उन्हीं तरकीबों को अपनाते हुए वुशू विश्व चैंपियनशिप में अपनाकर इतिहास रच दिया था। झज्जर जिले की वुशू खिलाड़ी पूजा कादियान 2008 से लगातार नेशनल चैंपियन रही हैं।
संघर्ष से सफलता तक का दौर
- 6 साल की उम्र में मां की मौत के बाद नानी शांति देवी की तपस्या ने ही दिया नया जीवन
- मां की मौत के बाद नानी ले गई अपने साथ, पढ़ाया और खेल खेलने के लिए किया प्रोत्साहित
- रूस के कजान में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतकर किया देश का नाम रोशन
- घर पर उपले थापते वक्त ही प्रैक्टिस किया करती थीं, जो तरकीब उपले थापते सीखीं वहीं तरकीब वुशु विश्व चैंपियनशिप में अपनाकर इतिहास रच दिया
- अपने गुस्से और संघर्ष को ताकत बनाते हुए पहुंची जीवन के इस मुकाम पर
पशुओं की देखभाल, पढ़ाई, वुशु सब एक साथ
बेरी से दिल्ली तक पहुंची पूजा, नानी के घर पर भी काम में पूरा हाथ बंटाती थी। ग्रामीण परिवेश से जुड़ा होने के कारण गाय-भैंस की देखभाल करना वहां भी रूटिन का हिस्सा रहा। पढ़ाई के साथ घर के काम और जीवन में कुछ खास हासिल करने के लिए खेल का सहारा, यह सोच नानी ने दी। पूजा बताती है कि नानी प्रतियोगिता में मेरे साथ जाती थी, प्रैक्टिस के दौरान साथ रहती थी, अच्छा करने पर हौंसला बढ़ाना और बेहतर नहीं हो पाने पर अच्छा करने का हौंसला देना, आज भी आंखों के सामने तैरता है। जैसे कि मानो कल की ही बात हो। बस यहीं साथ मुझे हमेशा ऊर्जा प्रदान करता है। सपना है कि सितंबर में होने वाली प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करते हुए ओलंपिक का टिकट हासिल करूं।