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झज्‍जर की जेल में बंदी बनेंगे रेडियो जॉकी, तीनों अनुभव साझा कर सुनाएंगे प्रेरक कहानियां

कवायद जेल के अपने रेडियो स्टेशन के लिए हो रही हैं। जिसमें बंदी ही रेडियो जॉकी बने हैं। जी हां वे अपने अनुभव साझा करेंगे और प्रेरक कहानियां सुनाएंगे। यहीं नहीं अन्य कैदी पर्ची के माध्यम से फरमाइश कर अपने पसंद के गाने भी सुन सकेंगे।

By Manoj KumarEdited By: Published: Tue, 08 Jun 2021 10:19 AM (IST)Updated: Tue, 08 Jun 2021 10:19 AM (IST)
रेडियो जॉकी के लिए 1100 में से 60 का हुआ था ऑडिशन, तीसरे चरण में तीन बंदी हुए चयनित

झज्जर [अमित पोपली] दुलीना स्थित जिला जेल के तीन बंदियों की आवाज को अब नई पहचान मिलने वाली है। आजादी की कमी के बावजूद तीनों बंदियों का अपना आकाश होगा। रोजाना मिलने वाली असाइमेंट में तीनों बेहतर कार्य कर रहे हैं। दरअसल, यह सभी कवायद जेल के अपने रेडियो स्टेशन के लिए हो रही हैं। जिसमें बंदी ही रेडियो जॉकी बने हैं। जी हां, वे अपने अनुभव साझा करेंगे और प्रेरक कहानियां सुनाएंगे। यहीं नहीं अन्य कैदी पर्ची के माध्यम से फरमाइश कर अपने पसंद के गाने भी सुन सकेंगे। बंदियों को उनकी ही आवाज में रिकॉर्ड किया गया कार्यक्रम सुनाया जाएगा। कुल मिलाकर, पूरा प्रयास बेरंग से रहने वाली जेल की जिदंगी में रंग भरने का काम करेगी। तिनका तिनका फाउंडेशन की संस्थापक वर्तिका नंदा ने रेडियो स्टेशन के लिए तीन बंदियों का चयन कर लिया है।

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बता दें कि पिछले कई दिनों से चल रही पूरी प्रक्रिया में करीब 1100 बंदियों में से 60 के ऑडिशन हुए थे। जिसमें से 10 शॉर्ट-लिस्ट किए गए। अब 10 में से तीन के साथ दैनिक अभ्यास शुरु कर दिया गया है। एक प्रक्रिया के तहत शुरु होने वाले रेडियो की तैयारी जेल प्रबंधन के स्तर पर भी की जा रही है। वर्तिका नंदा के मुताबिक दुलीना जेल प्रबंधन ने भी बड़े बढ़िया ढंग से साथ दिया हैं। हर दौर के लिए हुए ऑडिशन में शामिल रहे बंदियों को प्रैक्टिस के लिए अतिरिक्त समय दिया गया। कुल मिलाकर, दुलीना जेल का यह रेडिया बेरंग जेल में नया रंग भरने का काम करेगा।

बंदी की नई पहचान आरजे

दरअसल, यह सिर्फ एक शुरुआत है। अंधेरे को चीरते हुए उजाले की ओर जाने की। जेल रेडियो की प्रक्रिया शुरु होने के बाद यहां काफी कुछ बदल गया है। वे तिनका तिनका के जेल पत्रकार हैं। सबके पास कलम, कागज और आवाज है। जिन तीनों बंदियों का चयन हुआ है, उनका अब डिप्रेशन लेवल भी कम हुआ है। तीन में से दो बंदी तो पहले भी वहां पर अच्छा काम कर रहे थे। सिलाई के काम में महारत रखने वाला एक बंदी जेल में मास्क बनाता था और दूसरा जेल के बंदियों को पढ़ाने का करता था।

तीसरे के पास कोई काम नहीं था। लेकिन, ऑडिशन के दौरान दी गई प्रस्तुति ने सभी को प्रभावित किया। जिसकी वजह से वह अब आरजे है। खास बात यह है कि तीनों लोकल संगीत की समझ रखते है। साथ ही लिखना और बोलना अच्छी तरह जानते है। रेडियो के हिसाब से प्रस्तुति कैसे देनी है, को लेकर इन दिनों ट्रेनिंग चल रही हैं। जेल में रेडियो स्टेशन तैयार होने के बाद वे अपनी आवाज से नई इबारत लिखने वाले हैं।


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