बिगड़ते पर्यावरण से भारत में 15 फीसद बच्चे प्री-मेच्योर डिलीवरी से हो रहे पैदा
भारत में पर्यावरण की बिगड़ती हालत के कारण कई समस्याएं पैदा हो रही है। इस कारण प्री मेच्योर डिलीवरी हो रही है। देश में 15 फीसद बच्चे प्री मेच्योर डिलीवरी से पैदा हो रहे हैं।
हिसार, जेएनएन। बदलता वातावरण इंसान के लिए खतरा बन रहा है। कुछ दशकों से पर्यावरण में आए बदलाव और प्रदूषण के कारण हमारा डीएनए भी प्रभावित हो रहा है। सांस के जरिए प्रदूषण हमारे खून में समा गया है। यही कारण है कि दुनियाभर में 10 फीसद बच्चे प्री-मेच्योर डिलीवरी से पैदा हो रहे हैं। भारत की स्थिति इससे भी खराब है।
भारत में 15 फीसद बच्चे प्री-मेच्योर डिलीवरी से पैदा होते हैं। जर्मनी की द पीफ्रोहेम आर्गेनाइजेशन के शोध में ये सामने आया है। यह संस्था कनाडा, चीन, जर्मनी, घाना और भारत में शोध किया जा रहा है। संस्था से जुड़े कनाडा के वैज्ञानिक प्रो. डेविड ओलसन शिशु मृत्यु दर पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भ्रूण में बदलाव आ रहा है।
उन्होंने कहा कि इसी कारण मेंटल डिस्ऑर्डर, दुबले-पतले, दिव्यांग या आंखों की समस्याओं के साथ बच्चे पैदा हो रहे हैं। ऐसे में हमें पर्यावरण में सुधार करने के साथ साथ स्वयं का ख्याल रखना होगा। प्रो. डेविड मंगलवार को हिसार के गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर चल रहे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे।
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माइग्रेशन के कारण भी महिलाओं पर पड़ रहा प्रभाव
प्रो. डेविड के अनुसार बच्चों की प्री-मेच्योर डिलीवरी के कई कारण हैं। पौष्टिक आहार, जनसंख्या वृद्धि, खेतों में केमिकल, कुपोषणता, महिलाओं में तनाव, प्रदूषण, तापमान, रेडियोएक्टिव, प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ माइग्रेशन यानी एक जगह से दूसरी जगह (जहां की जलवायु और मौसम अलग तरह का है) जाने से भी महिलाओं पर असर हो रहा है।
उन्होंने कहा कि खान-पान का ध्यान रखकर, समय पर मेडिकल ट्रीटमेंट, सरकार की इससे संबंधित योजनाएं लोगों तक पहुंचाकर, भ्रूण बनना शुरू होने से डिलीवरी तक उसका ख्याल रखकर और रसायनिक पदार्थों का सेवन न करके इस प्री-मेच्योर डिलीवरी की समस्या को काफी हद तक खत्म किया जा सकता है।
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मां के फेफड़ों के साथ जाता है प्रदूषण
प्रेग्नेंसी एंड बच्चों के स्वास्थ्य सुधार पर काम कर रहे यूनिवर्सिटी ऑफ ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक प्रो. रिचर्ड शैफरी ने कहा कि जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनका डीएनए प्रभावित हो रहा है। मां सांस लेती है तो प्रदूषण फेफड़ों के माध्यम से खून में चला जाता है। प्लेसेंटा (यानी गर्भ और भ्रूण को जोडऩे वाला) को रक्त के माध्यम से ही भ्रूण के लिए पोषण मिलता है।
उन्होंने कहा कि प्रदूषण या पौष्टिक आहार की कमी सहित विभिन्न कारणों से बच्चे का डीएनए बदल जाता है। प्रो. रिचर्ड के अनुसार वे प्लेसेंटा के रक्त का सैंपल लेकर एंबाइल कोड के माध्यम से डीएनए की स्टडी की जाती है। उन्होंने मेलबर्न में अलग-अलग सत्र की एक हजार महिलाओं पर भ्रूण बनने से लेकर बच्चा पैदा होने तक शोध किया था।
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पिता में तनाव या स्मोकिंग करना भी बदल देता है बच्चे का डीएनए
प्रो. रिचर्ड के अनुसार नवजात में किसी भी तरह के डिस्ऑर्डर की जिम्मेदार मां के शरीर में जाने वाले पर्यावरण सहित विभिन्न कारक ही नहीं होते हैं। अगर पिता तनाव में रहता है या स्मोङ्क्षकग करता है तो भी बच्चे में जेनेटिक डिस्ऑर्डर हो सकता है। उनकी संस्था ऑप्टीमिजम प्रेग्नेंसी एनवायरमेंट रिस्क असेस्मेंट नेटवर्क भारत में इस पर शोध करने के लिए विभिन्न संस्थाओं से बात कर रही है। इसके लिए उन्होंने मंगलवार को जिले के दो बड़े शिशु अस्पतालों का दौरा भी किया।