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जिस महान शख्सियत की प्रतिमा अनावरण के लिए आ रहे पीएम, जानें उनके बारे में ये अद्भुत बातें

क्‍या था चौधरी छाेटूराम का असलीनाम, कैसे बने किसानों के मसीहा, किसानों के लिए बनाए कौन से पांच कानून, कौन-कौन से पदों पर रहे आसीन, कौनसी लिखी किताबें, आइए जानें

By manoj kumarEdited By: Published: Mon, 08 Oct 2018 03:31 PM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 03:31 PM (IST)
जिस महान शख्सियत की प्रतिमा अनावरण के लिए आ रहे पीएम, जानें उनके बारे में ये अद्भुत बातें
जिस महान शख्सियत की प्रतिमा अनावरण के लिए आ रहे पीएम, जानें उनके बारे में ये अद्भुत बातें

जेएनएन, हिसार : रोहतक के सांपला में मंगलवार नौ सितंबर को जिस महान शख्सियत की प्रतिमा के अनावरण के लिए खुद देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी आ रहे हैं। क्‍या आप उनके द्वारा दिए गए योगदान के बारे में जानते हैं। आखिर किस तरह से उन्‍हें किसानों का मसीहा माना गया ताे साथ ही उन्‍हें दी जाने वाली उप‍ाधियों के पीछे की कहानियां क्‍या रही। इस जानकारी से आप जान पाएंगे कि किस तरह चौधरी छोटूराम एक महज नाम ही नहीं रहा बल्कि उन्‍हें एक प्रेरणा के रूप में याद किया जाने लगा। जिन्हें दीनबंधु और सर जैसी उपाधियां भी मिली।

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इस तरह से बदला उनका नाम

सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में रोहतक के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। इतिहासकारों की मानें तो बचपन के राय रिछपाल यानि सर छोटूराम अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे, इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे। स्कूल रजिस्टर में भी इनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा रामरत्‍न के पास 10 एकड़ बंजर व बरानी जमीन थी। छोटूराम जी के पिता सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे। छोटूराम के अपने ही शब्दों में कि सांपला के साहूकार से जब पिता-पुत्र कर्जा लेने गए तो अपमान की चोट जो साहूकार ने मारी वो छोटूराम को एक महामानव बनाने के दिशा में एक शंखनाद था। जब राय रिछपाल पिता के साथ साहूकार के यहां गए तो उन्होंने बालक रिछपाल की तरफ डोरी फेंक पंखा झलने को कहा। इसी बात से छोटूराम के अंदर का क्रान्तिकारी जाग चुका था।

इस तरह से लिया था पहली हड़ताल में हिस्‍सा

क्रिश्‍चियन मिशन स्कूल के छात्रावास के प्रभारी के विरुद्ध छोटूराम के जीवन की पहली विरोधात्मक हड़ताल थी, जिसके संचालन को देखते हुए स्कूल में ‘जनरल रोबर्ट’ के नाम से पुकारा जाने लगा। 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री करके आगरा में मेरठ और आगरा डिवीजन की सामाजिक दशा का गहन अध्ययन किया। 1912 में चौधरी लालचंद के साथ वकालत आरंभ कर दी और उसी साल जाट सभा का गठन किया। प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय में चौधरी छोटूराम जी ने रोहतक से 22,144 जाट सैनिक भरती करवाए। चौ. छोटूराम ने एक अंग्रेजी समाचार पत्र सहित कई का संपादन एवं संचालन भी किया, वहीं 1916 में रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया तो कमेटी के पहले प्रधान बने।

देश भक्ति कार्यों को देख देश निकाले की हुई सिफारिश

इनके लेखों और देशभक्ति कार्य से खार खाए रोहतक के डिप्टी कमिश्‍नर ने तत्कालीन अंग्रेजी सरकार से चौधरी छोटूराम को देश-निकाले की सिफारिश कर दी। पंजाब सरकार ने अंग्रेज हुकमरानों को बताया कि चौधरी छोटूराम अपने आप में एक क्रांति हैं, उनका देश निकाला गदर मचा देगा, खून की नदियां बह जाएंगी तो कमिश्‍नर की सिफारिश को रद्द कर दिया गया।1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में किसानों का हित दिखाई नहीं दिया तो चौधरी छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के किसानों को एक मंच पर लाने के लिए उन्होंने स्वामी श्रद्धानन्द और बठिंडा गुरुकुल के मैनेजर चौधरी पीरूराम से संपर्क साध वह कानूनी सलाहकार बन गए। बाद में भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत 1920 में आम चुनाव कराए गए तो कांग्रेस के बहिष्कार के बावजूद अंग्रेजों को चौधरी छोटूराम की तरफ से गठित जमींदारा पार्टी के उम्मीदवार के जीतने से उनके कद का अहसास हो गया।

आग उगलती थी छोटूराम की लेखनी

चौधरी छोटूराम की लेखनी जब लिखती थी तो आग उगलती थी। ‘ठग बाजार की सैर’ और ‘बेचारा किसान’ के लेखों में से 17 लेख जाट गजट में छपे। 1937 में सिकन्दर हयात खान पंजाब के पहले प्रधानमंत्री बने और झज्जर के ये जुझारू नेता चौ. छोटूराम विकास व राजस्व मंत्री बने और गरीब किसानों के मसीहा बन गए। यही था वह वक्त, छोटूराम के पिता सुखीराम के कर्ज और मुकद्दमों में परेशान होने की टीस को छोटूराम ने निकाला। अनेक समाज सुधारक कानूनों के जरिए किसानों को शोषण से निजात दिलवाई। बाद में 1924 से 1945 तक पंजाब की राजनीति के अकेले सूर्य चौ. छोटूराम का 9 जनवरी 1945 को देहावसान हो गया।

किसानों और मजदूराें के लिए बनवाए पांच कानून, सतलुज का पानी हरियाणा को दिलाया

2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुए साहूकार पंजीकरण एक्ट के अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पाएगा। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया।

- 9 सितंबर 1938 को प्रभावी  गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी और 37 सालों से गिरवी चली आ रही थी, वो सारी जमीनें किसानों को वापस दिलवाई गई। इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुणा धन साहूकार प्राप्‍त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।

- 5 मई 1939 से प्रभावी कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम के तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। इससे पहले किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपए में से 60 पैसे ही मिल पाता था। इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना।

- 11 जून 1940 को लागू व्यवसाय श्रमिक अधिनियम से छोटूराम ने बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्‍ताह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान व व्यावसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी। इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी।

– कर्जा माफी अधिनियम 1934 दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा।

– पहले और दूसरे महायुद्ध में चौधरी छोटूराम द्वारा कांग्रेस के विरोध के बावजूद सैनिकों की भर्ती से अंग्रेज बड़े खुश थे, जिन्होंने हरियाणावासियों को भाखड़ा पर बांध बनाकर सतलुज का पानी देने का वचन दिया। सर छोटूराम ने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था। सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा का था। झज्जर के महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।


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