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रमजान के महीने में खुल जाते हैं जन्नत के दरवाजे, गुनाहों की मिलती है माफी

रमजान महीने में रोजे के बाद शुक्रवार की रात मुस्लिम समुदाय के लोगों ने चांद का दीदार किया। शनिवार को देशभर में ईद की नमाज अता की गई। इसी कड़ी में हिसार के क्रांतिमान पार्क में भी मुस्लिम समाज के लोग एकत्रित हुए।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Jun 2018 11:48 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jun 2018 11:48 AM (IST)
रमजान के महीने में खुल जाते हैं जन्नत के दरवाजे, गुनाहों की मिलती है माफी
रमजान के महीने में खुल जाते हैं जन्नत के दरवाजे, गुनाहों की मिलती है माफी

जेएनएन, हिसार :रमजान महीने में रोजे के बाद शुक्रवार की रात मुस्लिम समुदाय के लोगों ने चांद का दीदार किया। शनिवार को देशभर में ईद की नमाज अता की गई। इसी कड़ी में हिसार के क्रांतिमान पार्क में भी मुस्लिम समाज के लोग एकत्रित हुए। इस दौरान पूरे रस्मों रिवाजों के साथ नमाज अदा की गई और एक दूसरे के गले लग लोगों ने अमन चैन के लिए दुआ की। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बताया कि रमजान के महीने में ईद का और भी ज्यादा महत्व है। ईद उल जुलाहा यानि बकरीद और ईद उल फित्तर दो बार साल में ईद मनाई जाती है। इसमें रमजान महीने में वाली ईद को ईद उल फितर कहा जाता है। क्यों मनाते हैं रमजान?

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इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है। रमजान के महीने में कुरान नाजिल हुआ था। माना जाता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है। मुसलमानों के लिए रमजान महीने की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इन्हीं दिनों पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जरिए अल्लाह की अहम किताब 'कुरान शरीफ' (नाजिल) जमीन पर उतरी थी। इसलिए मुसलमान ज्यादातर वक्त इबादत-तिलावत (नमाज पढ़ना और कुरान पढ़ने) में गुजारते हैं। मुसलमान रमजान के महीने में गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं। कैसे रखते हैं रोजा ?

रोजा रखने के लिए सवेरे उठकर खाया जाता है इसे सेहरी कहते हैं। सेहरी के बाद से सूरज ढलने तक भूखे-प्यासे रहते हैं। सूरज ढलने से पहले कुछ खाने या पीने से रोजा टूट जाता है। रोजे के दौरान खाने-पीने के साथ गुस्सा करने और किसी का बुरा चाहने की भी मनाही है। कैसे खोलते हैं रोजा ?

शाम को सूरज ढलने पर आमतौर पर खजूर खाकर या पानी पीकर रोजा खोलते हैं। रोजा खोलने को इफ्तार कहते हैं। इफ्तार के वक्त सच्चे मन से जो दुआ मागी जाती है वो कूबुल होती है। रोजे से छूट किसे ?

बच्चों, बुजुगरें, मुसाफिरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोजे से छूट है। जो लोग रोजा नहीं रखते उन्हें रोजेदार के सामने खाने से मनाही है। रमजान और ईद

ईद के चाद के साथ रमजान का अंत होता है। रमजान की खुशी में ईद मनाई जाती है। ईद का अर्थ ही खुशी का दिन है। मुसलमानों के लिए ईद-उल-फित्र त्योहार अलग ही खुशी लेकर आता है। ईद के चाद के दर्शन के साथ हर तरफ रौनक हो जाती है।


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