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खिलौनों से खेलने की उम्र में बच्‍चों के हाथों में किताबें थमा रहे अभिभावक, छिन रहा बचपन

असर ग्रामीण शिक्षा रिपोर्ट के अनुसार 4 साल की जिस नाजुक उम्र में बच्चों को प्री-नर्सरी कक्षा में होना चाहिए था उस उम्र में प्रदेश के 16.8 फीसद नौनिहाल पहली कक्षा में पहुंच गए

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 01:33 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jan 2020 02:46 PM (IST)
खिलौनों से खेलने की उम्र में बच्‍चों के हाथों में किताबें थमा रहे अभिभावक, छिन रहा बचपन
खिलौनों से खेलने की उम्र में बच्‍चों के हाथों में किताबें थमा रहे अभिभावक, छिन रहा बचपन

हांसी [मनप्रीत सिंह] बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में अभिभावकों के सपनों का भार बच्चों को झेलना पड़ रहा है। जिस उम्र में बच्चों को घर में मां-बाप व दादा-दादी की गोद में खेलना चाहिए, उस उम्र में बच्चों के कंधों पर बस्तों का बोझ डाला जा रहा है। असर ग्रामीण शिक्षा रिपोर्ट के अनुसार 4 साल की जिस नाजुक उम्र में बच्चों को प्री-नर्सरी कक्षा में होना चाहिए था, उस उम्र में प्रदेश के 16.8 फीसद नौनिहाल पहली कक्षा में पहुंच गए। बच्चों पर शिक्षा के बढ़ते तनाव का असर सीधा उनकी पढऩे-लिखने क्षमताओं पर पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार फर्स्‍ट स्टैंडर्ड के 29 फीसद बच्चे अपनी ही कक्षा की पुस्तकों को नहीं पढ़ पाए। यही नहीं, ये बच्चे सामान्य गणित के प्रश्नों को भी सॉल्व नहीं कर पाए व मानव इमोशनल की पहचान करने में 4 साल की उम्र के 15 फीसद बच्चे नाकाम रहे।

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एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशनल रिपोर्ट असर फाउंडेशन हर साल देश की शिक्षा व्यवस्था पर रिपोर्ट जारी करती है। इस बार संस्था ने ग्रामीण शिक्षा के आंकड़ों को रिपोर्ट में शामिल किया है। सर्वे हेतु पूरे प्रदेश में हिसार जिले का चयन किया गया। जिले के 59 गांवों में वालंटियर्स ने 1205 घरों में जाकर 1415 बच्चों से बातचीत की। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण बच्चों को अभिभावक तय उम्र सीमा से पहले ही स्कूलों में भेज रहे हैं। शिक्षा नीति के अनुसार प्री-नर्सरी में दाखिले के लिए 4 साल की न्यूनतम उम्र तय मानी गई है। लेकिन रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों से अभिभावकों में अपने बच्चों को आगे रखने की प्रतिस्पर्धा की होड़ दिखाई दे रही है।

प्राइवेट स्कूलों के बोझ को नहीं झेल पाते अभिभावक

शिक्षा रिपोर्ट में यह अहम तथ्य निकलकर सामने आए हैं कि प्रतिस्पर्धा के दौर में अभिभावक अपने नौनिहालों को आगे रखने के लिए प्री-नर्सरी से निजी स्कूलों पढ़ाने की शुरुआत करते हैं। 4 साल की उम्र के 66 फीसद बच्चे प्राइवेट व 33 फीसद सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए मिले जबकि 8 साल की उम्र के 53 फीसद बच्चे प्राइवेट व 45 फीसद निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। आंकड़ों से साफ है कि अभिभावक प्री-नर्सरी में बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने को प्राथमिकता दे रहे हैं, लेकिन बाद में धीरे-धीरे अधिकतर अभिभावक महंगी प्राइवेट शिक्षा के कारण सरकारी स्कूलों की तरफ रुख कर लेते हैं।

तय उम्र से पहले ही स्कूलों में पहुंचे बच्चों का ग्राफ

आयु वर्ग   प्री-नर्सरी    फस्र्ट स्टैंडर्ड

4 साल     82.8       16.9

6 साल     29.8       36.4

(आंकड़े फीसद में)

असर रिपोर्ट में शिक्षा व्यवस्था के कई अहम तथ्य सामने आए हैं। 4 साल की उम्र के 15 फीसद व 8 साल की आयु वर्ग के 46 फीसद बच्चे मानव भावनाओं के चित्रों को सही से नहीं पहचान पाए। इसके अलावा फस्र्ट स्टैंडर्ड के 26 फीसद बच्चे सामान्य पजल सॉल्व ही नहीं कर पाए। इसी आयु वर्ग के 21 फीसद बच्चे भाषा संबंधित प्रश्नों का भी सही जवाब नहीं दे सके। थर्ड स्टैंडर्ड के भी 17 फीसद बच्चे पजल सॉल्व नहीं कर पाए।

इतने फीसद बच्चे नहीं कर पाए अक्षरों व संख्याओं की पहचान

शिक्षा लेवल     अक्षर पहचान       शब्द पहचान       घटा करने में नाकाम

फर्स्‍ट स्टैंडर्ड  -    23.5                       22.6                 48

सेकंड स्टैंडर्ड -    15.0                       58.3                 44

थर्ड स्टैंडर्ड   -     6.8                           10.8           20

बच्चों से ना छीनें बचपन

बच्चे की स्कूल में जाने की उम्र कम से कम 4 साल होनी चाहिए। कम उम्र में बच्चों पर शिक्षा का दबाव होने पर माता-पिता से लगाव कम होने की संभावना रहती है। 3-4 साल के बच्चों को माता-पिता का भरपूर साथ मिलना चाहिए, जिससे उनका मानसिक व सामाजिक विकास हो सके। इस उम्र के बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना चाहिए।

- डा. नरेंद्र रोहिला, मनोरोग विशेषज्ञ।


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