मुगल सम्राट अकबर के सिर चढ़कर बोलता था हिसार ए फिरोजा व हांसी के आमों व देसी घी का जादू
अकबर सर्दियों के मौसम में हिसार के जंगलों में शिकार करने आए थे। यही नहीं सम्राट अकबर हांसी के मिठास से भरे रेशेदार आमों व देसी घी के कायल थे। हांसी में स्थित सूफी संतों की पवित्र चारकुतुब दरगाह में अकबर ही नहीं उनके पिता हुमायूं भी आए थे
हांसी (हिसार) [मनप्रीत सिंह] हिसार ए फिरोजा व ऐतिहासिक शहर हांसी अपने अंदर समृद्ध इतिहास को समेटे हुए हैं। मुगल बादशाह अकबर का भी दोनों शहरों से गहरा संबंध रहा है। सम्राट अकबर सर्दियों के मौसम में हिसार के जंगलों में शिकार करने आए थे। यही नहीं शहंशाह अकबर हांसी के मिठास से भरे रेशेदार आमों व देसी घी के कायल थे। हांसी में स्थित सूफी संतों की पवित्र चारकुतुब दरगाह में अकबर ही नहीं उनके पिता हुमायूं भी कई बार इबादत करने पहुंचे। ये बातें जिले के इतिहास की किताबों के अलावा अकबरनामा में भी दर्ज हैं।
मुगल शासनकाल के इतिहास के कई रोचक किस्से शहर एक हिसार ए फिरोजा व हांसी से जुड़े हैं। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 1560 के नवंबर महीने में सम्राट अकबर हिसार व हांसी के जंगलों में शिकार करने आए थे। अकबर को चीतों का शिकार करना पसंद था। फिर वर्ष 1558 में अकबर नारनौंल में शेख निजाम नारनौली से मिलने के बाद वापस जाते वक्त हांसी की चारकुतुब दरगाह में आए थे। इसके बाद 1571 में एक बार फिर अकबर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाते वक्त हांसी में रुके थे और सूफी संतों की पवित्र चारकुतुब दरगाह पर मन्नत मांगी।
बताया जाता है कि हुमायूं भी कई बार चारकुतुब दरगाह में आए थे। इतिहासकार जगदीश सैनी के अनुसार ये बातें अकबनामा में भी दर्ज हैं। उन्होंने बताया कि शिकार करने आए अकबर ने बीकानेर के राजा राम सिंह (1573-1612) को हांसी का अधिकारी नियुक्त किया। वहीं हिसार को बसाने वाले फिरोजशाह तुग्लक के कारण ही हिसार का नाम हिसार ए फिरोजा पड़ा था।
हांसी में रहते थे मुगलों के रिश्तेदार
हांसी का देसी घी, अनाज व फलों को दिल्ली दरबार तक पहुंचाने के लिए यहां अधिकारी नियुक्त थे व मुगल शासकों के रिश्तेदार भी हांसी व हिसार में रहते थे जो खाद्य सामग्री दिल्ली पहुंचवाया करते। स्थानीय बागों के फलों को मुगल शासक बेहद पसंद करते थे। अकबर ने हिसार व हांसी की जिम्मेदारी अहमद बेग व सिकंदर बेग को सौंप रखी थी। एक समय मुगल सेना में बड़ा अधिकारी रहा अबुल मालिक ने जालौर में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया।
अहमद बेग व सिकंदर बेग ने उसका पीछा किया व नारनौल क्षेत्र में दोनों के गुटों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में दोनों मुगल अधिकारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। हालांकि बाद में विद्रोही अबुल माली को भी मुगल सेना ने गिरफ्तार कर लिया व मौत के घाट उतार दिया था।