Move to Jagran APP

किसान आंदोलन : बारिश में ध्वस्त होते जा रहे हैं पुराने तंबू, बढ़ रही आंदोलनकारियों की मुश्किलें

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के बीच किसानों द्वारा बांस की टाटी से बनाए गए तंबू अब बारिश नहीं झेल पा रहे हैं। रोजाना कहीं न कहीं ऐसे तंबू ध्वस्त हो रहे हैं। ऐसे में किसानों की मुश्किलें बढ़ रही है।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 07:45 AM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 07:45 AM (IST)
किसान आंदोलन : बारिश में ध्वस्त होते जा रहे हैं पुराने तंबू, बढ़ रही आंदोलनकारियों की मुश्किलें
बारिश में आंदोलनकारियों के पुराने तंबू नहीं चल पा रहे हैं।

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के बीच किसानों द्वारा बांस की टाटी से बनाए गए तंबू अब बारिश नहीं झेल पा रहे हैं। रोजाना कहीं न कहीं ऐसे तंबू ध्वस्त हो रहे हैं। ऐसे में किसानों की मुश्किलें बढ़ रही है। उनके लिए लोहे के एंगलों से बने तंबुअों की दरकार बढ़ रही है। इसी के चलते यहां पर फाइव रिवर्स हार्ट एसोसिएशन ने टीकरी बार्डर आंदोलन के बीच काफी ऐसे लोहे के एंगल से बने तंबू वितरित किए हैं। लोहे के एंगल से ढांचा खड़ा कर दिया जाता है।

loksabha election banner

फिर उसके ऊपर तिरपाल लगा दिए जाते हैं। इस तरह के तंबू को इधर से उधर शिफ्ट करना भी आसान होता है। एसोसिएशन की कोशिश है कि यहां पर जितने भी आंदोलनकारियों के पास बांस की टाटी के बने तंबू हैं। वहां पर सभी लोहे के एंगलों से बने तंबू लगवाएं। ताकि बारिश का यह मौसम आसानी से कट सके। वैसे भी कोरोना की तीसरी लहर की संभावना के चलते इस तरह के तंबू की दरकार आंदोलन के बीच भी बढ़ेगी। खुद एसोसिएशन से जुड़े डा. सवाईमान सिंह का कहना है कि अगर तीसरी लहर आती है तो फिर आंदोलनकारियों के लिए भी आइसोलेशन तंबुओं की दरकार बढ़ेगी। भले ही ऐसे तंबुओं की जरूरत न पड़़े, लेकिन इंतजाम तो पहले से करने होंगे। उस सूरत में ये तंबू काफी मददगार साबित हो सकते हैं। कई दिनों से एसोसिएशन द्वारा इस तरह के तंबू बनवाए जा रहे हैं।

भारी मात्रा में मैटेरियल इसके लिए मंगवाया गया है। बारिश में पुराने तंबू नहीं चल पा रहे हैं। जुलाई में इस बार बारिश का नया रिकार्ड बन गया है। इस महीने में करीब 400 एमएम बारिश हुई है जो पहले कभी नहीं हुई। इसका भी आंदोलन पर व्यापक असर पड़ रहा है। आमतौर पर एक सीजन में बहादुरगढ़ के अंदर औसतन 250 से 300 एमएम बारिश होती थी, लेकिन इस बार तो एक महीने में ही 400 एमएम हो चुकी है। अभी सितंबर तक बरसात होनी है और आंदोलन को आठ महीने से ज्यादा समय हो चुका है। अब यहां पर पहले जितने ट्रैक्टर-ट्राली नहीं है। अधिकतर आंदोलनकारियों ने सड़कों के डिवाइडर या फिर साइड में तंबू लगा लिए हैं। मगर अब आंदोलन लंबा खिंचता देख ये तंबू और पुख्ता किए जा रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.