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Kargil vijay Diwas: युद्ध की वो रात... करगिल में पहाड़ी पर संभाले थे मोर्चा, अचानक दुश्मन ने बोला धावा

करगिल की जंग में रोहतक के रिटायर्ड कैप्टन प्रताप सिंह ने भी बहादुरी दिखाई थी। रोहतक के खरावड़ के रहने वाले हैं। प्रथम विश्व युद्ध से कारगिल विजय तक इस परिवार ने बहादुरी दिखाई है। अब चौथी पीढ़ी देश सेवा कर रही है।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 11:08 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 11:08 AM (IST)
Kargil vijay Diwas: युद्ध की वो रात... करगिल में पहाड़ी पर संभाले थे मोर्चा, अचानक दुश्मन ने बोला धावा
कैप्टन प्रताप सिंह जाट रेजीमेंट में तैनात थे। बम फटने के कारण सिर का ऑपरेशन करना पड़ा था।

रतन चंदेल, रोहतक। करगिल विजय दिवस यानि 26 जुलाई। 1999 में हुए इस युद्ध में शहीद हुए जवानों के शौर्य की खूब मिसाल दी जाती है। सोमवार को कारगिल विजय दिवस है। कारगिल की विजय गाथा को याद कर देश हर साल गौरवान्वित होता है। कारगिल युद्ध में फतह हासिल करने वाले जवानों से प्रेरित होकर अब भी उनके परिवारों से अनेक युवा सेना में भर्ती हैं।

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रोहतक में एक परिवार ऐसा भी है जिसमें देश सेवा का जज्बा है और लगातार चौथी पीढ़ी सेना में गई है। इस परिवार के लोगों ने प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल तक में बहादुरी दिखाई है। यहां हम बात कर रहे हैं खरावड़ गांव निवासी कारगिल युद्ध में शामिल रिटायर्ड कैप्टन प्रताप सिंह की। जिनके परिवार की चौथी पीढ़ी अब सेना में है। कैप्टन प्रताप मलिक के भाई कैप्टन जगबीर मलिक ने बताया कि पहली बार उनके दादा हवलदार चौ. कूडेराम सेना में रहे और प्रथम विश्व युद्ध में शामिल रहे। उसके बाद उनके पिता सिपाही चौधरी राम सिंह भी सेना में रहे। उनके बाद प्रताप मलिक व उनके अलावा उनके छोटे भाई सूबेदार अनूप सिंह भी सेना में रहे। अब उनके छोटे भाई अनूप के बेटे संदीप नौसेना में हैं।

करगिल में पहाड़ी पर संभाले हुए थे मोर्चा

कारगिल युद्ध के विषय में रोहतक के खरावड़ के रहने वाले जाट रेजीमेंट के रिटायर्ड कैप्टन प्रताप सिंह ने बताया कि 1999 में तीन-चार जून की रात करगिल में पहाड़ी पर मोर्चा संभाले हुए थे। अचानक दुश्मन ने हमला कर दिया। दोनों ओर से दनादन गोलियां चलनी शुरू हो गई। हमने भी दुश्मन पर जमकर प्रहार किया। भारतीय सैनिकों के हौसले बुलंद थे और वे आगे बढ़ रहे थे। अचानक दुश्मन की ओर से गोला फेंका गया। उसका एक टुकड़ा उनके सिर में आकर धंस गया। वे बेहोश हो गए।

ऑपरेशन कर सिर से निकाले गोले के टुकड़े

गंभीर अवस्था में उन्हें श्रीनगर अस्पताल में भर्ती कराया गया। 3 दिन हालत में सुधार नहीं हुआ तो दिल्ली में बेस अस्पताल लाया गया। यहां भी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। अगले दिन आरआर अस्पताल दिल्ली रेफर कर दिया। न्यूरो सर्जन ने तीन दिन बाद हालत को स्थिर देखते हुए सिर का आपरेशन किया। गोले के टुकड़ों काे सिर से निकालने के बाद हालत में सुधार हुआ। तीन माह बाद डिस्चार्ज किया गया। शरीर का बायां हिस्सा एक साल तक पैरालाइज रहा। आज भी कम सुनाई देता है।

भतीजा सुनता था कारगिल युद्ध के किस्से

जब वे घायल हुए, तब भतीजा संदीप 11 साल का था। उनके पास बैठकर युद्ध के किस्सों को गौर से सुनता था। तभी उसने फैसला किया कि एक दिन वह सेना में जाएंगे। उसे कोचिंग दिलवाई और सेना के लिए शारीरिक रूप से तैयार किया। संदीप जुलाई 2009 में नौसेना में भर्ती हो गए। अब पेटी आफिसर के तौर पर मुंबई में तैनात है।

भारतीय सैनिकों के साहस और कुर्बानी की याद

आज से 22 साल पहले दुश्मन ने जम्मू-कश्मीर में कारगिल, द्रास, बटालिक की चोटियों पर बुरी निगाह डाली। तब भारत के जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर इन चोटियों की रक्षा की और उन्हें पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराया। भारतीय सेना के सैनिकों के इस अदम्य साहस और कुर्बानी को याद करने के लिए हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।

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