भीख मांगते देखा तो 'बाबा का ढाबा' किस्से की तर्ज पर 10 युवाओं ने बदल दी दिव्यांग परिवार की जिंदगी
दिव्यांग सुशील को रोटी के लिए भीख मांगते देखा तो डबवाली के युवा उसका पीछा करते हुए घर पहुंच गए। परिवार में बेटे बंटी तथा पत्नी को दिव्यांग देखा तो आंखे नम हो गई। युवाओं ने दिव्यांग परिवार को आत्मनिर्भर बनाने की ठान ली।
डबवाली (सिरसा) [डीडी गोयल] हाल के दिनों में दिल्ली के मालवीय नगर में हुआ बाबा का ढाबा किस्सा खूब सुर्खियों में रहा। एक यू ट्यूबर द्वारा बाबा के ढाबे का लाइव करना और मदद मांगने पर देशभर के लोग मदद के लिए उमड़ पड़े। कोई खाना खाने पहुंचा तो किसी ने खाते में रुपये डाले। मगर ऐसे ही और भी बहुत से किस्से हैं। जिससे आम आदमी की जिंदगी बदल रही है। हरियाणा के सिरसा जिले के क्षेत्र डबवाली में भी ऐसा ही एक किस्सा सामने आया है। यहां सुंदर नगर के दिव्यांग सुशील को रोटी के लिए भीख मांगते देखा तो शहर के युवा उसका पीछा करते हुए घर पहुंच गए।
परिवार में बेटे बंटी और सुशील की पत्नी को भी दिव्यांग पाया तो युवाओं की आंखे नम हो गई। परिवार ने आर्थिक सहायता मांगी तो युवाओं ने दिव्यांग परिवार को आत्मनिर्भर बनाने की ठान ली। सवाल उठा कि क्या करें? उन दिनों दिल्ली के मालवीय नगर में ढाबा चलाने वाले बुजुर्ग दंपती की दशा को सोशल मीडिया के जरिए पूरा विश्व देख रहा था। दंपती की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ रहे थे तो घटना से प्रेरित होकर डबवाली के युवाओं ने दिव्यांग परिवार के लिए किरयाना स्टोर बनाने की पहल कर दी। स्टोर में करीब एक लाख रुपये का सामान चाहिए था।
सहयोग किरयाना स्टोर पर बैठे थम्स अप करते बंटी व सहयोग किरयाना स्टोर का बोर्ड लगाते हुए युवा।
डबवाली डाकघर में कार्यरत पोस्टल सहायक मनीष शर्मा ने फेसबुक पर मदद की पोस्ट शेयर की थी। वरदान झांब, रोहताश वर्मा, खुशी मोहम्मद कुरैशी, योगेश शर्मा, खुशवंत शर्मा, अजय छाबड़ा, अविनाश छाबड़ा तथा साइक्लोजिस्ट लवनिश मित्तल का सहयोग मिला। उपरोक्त 10 युवाओं को 5 दिन में करीब 40 हजार रुपये का सहयोग मिला। इसके अलावा लोगों ने हजारों रुपये का सामान दिया। फिर क्या था 11 अक्तूबर 2020 को उपरोक्त युवा सामान के साथ सुंदर नगर पहुंचे। दिव्यांग बंटी का किरयाना स्टोर खोल दिया।
अब जब स्टोर के लिए सब लोगों का सहयोग मिला हो तो नाम दिया सहयोग किरयाना स्टोर। अब बंटी खुद को दिव्यांग नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर समझता है। हर रोज एक हजार रुपये का सामान बेच रहा है। वहीं बंद पड़े एक वाहन को ठीक करवाकर युवाओं ने सुशील को सौंप दिया। जिसकी मदद से दिव्यांग सुशील शहर से कबाड़ जुटाकर दुकान पर बेच देता है। ऐसे में युवाओं की मदद से दिव्यांग परिवार आत्मनिर्भरता की कहानी गढ़ रहा है।
--------------दिव्यांग बोला-महसूस होता है पैरों पर खड़ा हूं
बंटी के अनुसार वह मैरिज पैलेस में शादी समारोह के दौरान वेटर का कार्य किया करता था। छत से गिरने के कारण उसकी रीढ की हड्डी टूट गई थी। इसी वर्ष सिरसा के एक अस्पताल से उसका ऑपरेशन हुआ था। डॉक्टर ने कहा कि वह जिंदगी भर चल-फिर नहीं सकता था। उसकी दिव्यांगता अभिशाप बन चुकी थी। चूंकि उसके माता-पिता भी दिव्यांग हैं। पत्नी तथा दो छोटे-छोटे बच्चों को देखकर आंखों में आंसू आ जाते थे। सहयोग किरयाना स्टोर ने जीवन में फिर से खुशियों का उजियारा किया है। अब कमाने लगा हूं तो महसूस होता है कि पैरों पर खड़ा हूं।
----परिवार में मेरा बेटा बंटी ही कमाने वाला था। हादसे में रीढ की हड्डी टूट गई तो पूरा परिवार अपाहिज हो गया। आमदनी के सब द्वार बंद हो गए तो मैं अपने पौतों के साथ कटोरा लेकर शहर में भीख मांगने जाता था। मैं यह कार्य नहीं करना चाहता था, लेकिन खुद अपाहिज होने के कारण इसके अलावा कुछ कर नहीं कर सकता था। शहर के युवाओं ने सहयोग किरयाना स्टोर बना दिया, मेरा वाहन ठीक करवाकर मुझे फिर से चलने के काबिल बना दिया।
-सुशील कुमार (बंटी के पिता), निवासी सुंदर नगर, डबवाली
------लवनीश मित्तल को सुशील ने दुखड़ा सुनाया था। उसके पास बंटी की ऑपरेशन फाइल भी थी। केस स्टडी करने के बाद हम सब पीडि़त परिवार के घर गए थे। वहां हालात काफी बुरे थे। सभी ने सहमति बनाई कि आर्थिक मदद न देकर किरयाना स्टोर खोल जाएगा। ताकि बंटी आराम से दुकानदारी कर सकें। एक माह से ज्यादा समय हो गया है। हम निरंतर सहयोग किरयाना स्टोर का फॉलोअप कर रहे हैं। महसूस होता है कि दिव्यांगता का उपचार आत्मनिर्भरता है।
-मनीष शर्मा (सहयोग करने वाली टीम के सदस्य)