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जानें जमातियों को हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने क्‍यों दिया 'शहीद हसन खां' का वास्ता

हरियाणा सरकार इन मेवातियों मुल्ला-मौलवियों और धर्मगुरुओं को महान शासक शहीद हसन खां मेवाती का भी वास्ता दे चुकी है ताकि उन्हें अपना आदर्श मानकर तब्लीगी जमात के लोग बाहर निकलें

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 14 Apr 2020 04:10 PM (IST)Updated: Tue, 14 Apr 2020 06:29 PM (IST)
जानें जमातियों को हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने क्‍यों दिया 'शहीद हसन खां' का वास्ता
जानें जमातियों को हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने क्‍यों दिया 'शहीद हसन खां' का वास्ता

हरियाणा, अनुराग अग्रवाल। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटा एक इलाका है मेवात। अब यह नूंह जिला कहलाता है। भौगोलिक विषमताओं से भरे इस इलाके की गिनती हरियाणा के बेहद पिछड़े जिलों में होती है। विकास परियोजनाओं के लिए राज्य सरकार जब अपना बजट बनाती है, तब मेवात के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए अलग से पैसों का बंदोबस्त किया जाता है। कृषि के बाद यहां के लोग सबसे ज्यादा डेयरी उद्योग से जुड़े हैं। कट्टरता और निरक्षरता के ऐसे बिंदु हैं, जो मेवात को पिछड़ा बनाते हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि यहां का लिंग अनुपात एक हजार लड़कों पर 900 से ज्यादा लड़कियां हैं। यानी यहां कोख में बच्चियां नहीं मारी जाती।

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आखिर मेवात का जिक्र क्यों : आखिर हम मेवात का जिक्र क्यों कर रहे हैं? यह वही मेवात है जिसकी वजह से हरियाणा में कोरोना ने अपने पांव इस कदर पसार लिए कि सार्वजनिक मंच से मुख्यमंत्री मनोहर लाल को शहीद हसन खां मेवाती का वास्ता देकर यहां के लोगों से सहयोग मांगना पड़ा है। निजामुद्दीन मरकज से हरियाणा में जो 1,606 तब्लीगी लौटे हैं उन्होंने अपना केंद्र बिंदु काफी दिनों तक मेवात को ही बनाए रखा। करीब सात सौ तब्लीगी अकेले मेवात से मिले हैं और सरकार को अंदेशा है कि अभी भी सैकड़ों लोग यहां छिपे हुए हैं, जो कोरोना वायरस की जांच के भय से अथवा अपनी किसी गुप्त रणनीति पर चलते हुए सामने नहीं आ रहे हैं।

तब्लीगी जमाती अपने अड्डों से नहीं निकल रहे बाहर : हरियाणा में करीब पौने दो सौ लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं जिनमें से बीस लोग ठीक हो चुके और 120 के आसपास अकेले तब्लीगी जमाती हैं। हरियाणा की चिंता का कारण यही तब्लीगी जमाती हैं जो छिपे हुए हैं और बाहर नहीं निकल रहे। तमाम मौके देने के बावजूद जब तब्लीगी जमाती अपने अड्डों से बाहर नहीं निकले तो सरकार को मजबूरी में यह फरमान सुनाना पड़ा कि उनके खिलाफ हत्या के प्रयास की धाराओं में मुकदमे दर्ज होंगे। राज्य में नौ लोगों के खिलाफ एफआइआर हो भी चुकी है।

हसन खां मेवाती का भी वास्ता दे चुकी है हरियाणा सरकार : हरियाणा सरकार इन मेवातियों, मुल्ला-मौलवियों और धर्मगुरुओं को महान शासक शहीद हसन खां मेवाती का भी वास्ता दे चुकी है ताकि उन्हें अपना आदर्श मानकर तब्लीगी जमात के लोग बाहर निकलें और राज्य में कोरोना वायरस फैलने का कारण बनने से रुक सकें। शहीद हसन खां मेवाती वर्ष 1527 में शहीद हो गए थे। मेवात के मुस्लिम खानजादा राजपूत शासक के तौर पर उनकी पहचान है। उनके खानदान ने मेवात पर दो सदियों तक राज किया। फिरोज तुगलक के समय में बहुत से राजपूत खानदानों ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था। उनमें सरहेटा राजस्थान के राजकुमार समरपाल भी थे।

समरपाल की पांचवीं पीढ़ी में 1492 में हसन खां के पिता अलावल खां मेवात के राजा बने। इसलिए हसन खां जादू गोत्र से ताल्लुक रखते हैं और मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद खान जादू एवं खानजादा कहलाने लगे। हसन खां 1505 में मेवात के राजा बने। 1526 में जब मुगल बादशाह बाबर ने हिंदुस्तान पर हमला किया तो इब्राहिम लोदी, हसन खां मेवाती व अन्य राजाओं ने मिलकर पानीपत के मुकाम पर बाबर से हुए मुकाबले में राजा हसन खां के पिता अलावल खां शहीद हो गए। पानीपत की विजय के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर तो अपना अधिकार जरूर कर लिया, लेकिन सम्राट बनने के लिए मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह और मेवात के हसन खां बाबर के लिए कडी चुनौती के रूप में सामने खड़े थे। बाबर ने हसन खां मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिए उन्हें इस्लाम का वास्ता दिया तथा एक लडाई में बंधक बनाए गए राजा हसन खां के पुत्र को बिना शर्त छोड दिया, लेकिन राजा हसन खां की देशभक्ति के सामने धर्म का वास्ता काम नहीं आया।

16 मार्च 1527 को राजा हसन खां राणा सांगा के साथ मिलकर खानवा के मैदान में बाबर की सेना से लड़े। राणा सांगा के घायल होने के बाद सेनापति का झंडा खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाल लिया और बाबर की सेना पर हमला बोल दिया। इसी युद्ध में हसन खां मेवाती का 17 मार्च 1527 को अंत हो गया। शहीद राजा हसन खां को अलवर शहर के उत्तर में दफनाया गया। यहां इनके नाम पर एक यादगार छतरी बनाई गई। नूंह में आज भी शहीद हसन खां की निशानियां हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल को आखिरकार सार्वजनिक मंच से शहीद हसन खां मेवाती की शहादत का वास्ता देकर मौलवियों व धर्मगुरुओं से यह कहना पड़ा कि संकट की इस घड़ी में वे सरकार का इसी तरह से साथ दें जिस तरह से शहीद हसन खां ने अपनी देशभक्ति के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था। अब देखने वाली बात यह है कि आखिर इस आह्वान का तब्लीगी जमातियों व घरों में छिपे कोरोना वायरस के वाहकों पर कितना असर पड़ता है।

[स्टेट ब्यूरो चीफ, हरियाणा]


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