असल जिंदगी में भी हैप्पी एंडिंग, 6 साल बाद बेटे से मिली बिछुड़ी कश्मीरी मुस्लिम महिला, हिंदू बने सहारा
2014 में एक कश्मीरी मुस्लिम महिला श्रीगंगानगर पहुंच गई थी। 4 वर्ष पहले सिरसा के आश्रम में लाई गई पर उसे कुछ याद नहीं था पर जो भी बताया उसके आधार पर उसके परिवार को खोज निकाला
सिरसा [आनंद भार्गव] भावुक दृश्य था। भाई कन्हैया आश्रम में मौजूद हर व्यकित की आंखें नम थीं। लेकिन खुशी की चमक के साथ। छह वर्ष पहले बाढ़ के कारण अपने परिवार से बिछड़ी मंजू से उसका बेटा गले लग रहा था। वह बेटे को बेतहाशा चूमे जा रही थी। मां के सीने से लगकर उसका बेटा एक बार फिर बच्चा हो गया था। वह बेटा जिसे मंजू ने 14 की उम्र में देखा था, अब 20 का युवा हो चुका है। वैसे मंजू का नाम आश्रम वालों का ही दिया हुआ है, है तो वह मुस्लिम। उसका परिवार श्रीनगर के भाग मेहताब इलाके स्थित गवर्नमेंट हाउस कॉलोनी में रहता है। सन 2014 में आई विकाराल बाढ़ के दौरान तबाही का मंजर था। मकान डूब रहे थे। लोग बह जा रहे थे।
परिवार उजड़ रहे थे। ऐसे में मंजू के साथ क्या हुआ था, उसे कुछ याद नहीं। बस याद आता तो पानी। हर तरफ पानी ही पानी। वह न जाने कैसे सिरसा के पड़ोसी जिले राजस्थान के श्री गंगानगर में पहुंची थी। विक्षिप्त अवस्था में भटकती रहती थी। कोई कुछ खाने को दे देता तो खा लेती। जहां छाया मिलती सो जाती। चार साल पहले किसी ने इसकी सूचना सिरसा के भाई कन्हैया आश्रम में दी। मानव सेवा के लिए विख्यात इस आश्रम ने उसे अपना लिया। सबको अपनाता है।
आश्रम में सेवा देने वाले डॉक्टर अमित नारंग इलाज करने लगे। शुरुआती दो वर्ष तो उसकी हालत में खास सुधार नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद वह धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी। स्वस्थ होने के बाद भी दिक्कत यह थी कि उसे अपने बारे में कुछ याद ही नहीं आता था। पर आश्रम के मुख्य सेवादार गुरविंदर सिंह और डा अमित नारंग ने हार नहीं मानी। आखिरकार एक दिन मंजू को याद आ गया कि उसके बेटे का नाम अजीज है। पता फिर भी नहीं याद कर पा रही थी। बाद में श्रीनगर की कुछ जानकारी दी। आश्रम की तरफ से श्रीनगर पुलिस से संपर्क किया गया।
पुलिस ने लगभग साल भर की कोशिशों के बाद चार दिन पहले 14 सितंबर को मंजू का घर खोज लिया। उसके परिवार वालों जानकारी दी। बेटे अजीज से मंजू की फोन पर बात कराई गई। बस सेवा न होने के कारण अजीज अपने चचेरे भाई और भतीजे के साथ हवाई जहाज से चंडीगढ पहुंचा और वहां से सिरसा। मंगलवार को अपनी मां का अजीज मां के सामने था। वह रोने लगा। मां पहचान नहीं पाई।
कैसे पहचान पाती। जब आखिरी बार देखा था तो 14 का था। अब जवान हो चुका था। लेकिन जब बेटे ने कश्मीरी लहजे में कहा-अम्मी तो मंजू दौड़कर उससे लिपट गई और इसके साथ ही उसकी दुखभरी कहानी की हैप्पी एंडिंग भी हो गई। वह बेटे और परिवार के अन्य दोनों सदस्यों के साथ श्रीनगर के लिए वीरवार को रवाना हो चुकी है।