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हिसार की दो घोडि़यों व बहादुरगढ़ के ईंट भट्ठे पर काम करने वाले खच्चर में मिला ग्लैंडर्स वायरस

लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) में करीब पांच दिन पहले एक खच्चर और एक घोड़ी और एक घोड़ी का बच्चा पशु चिकित्सालय में जांच के लिए आए थे। तीनों की संक्रामक रोगों से ग्रसित थे। जांच की तो तीन में ग्‍लैंडर्स वायरस मिला।

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 09 Apr 2021 11:50 AM (IST)Updated: Fri, 09 Apr 2021 11:50 AM (IST)
हिसार की दो घोडि़यों व बहादुरगढ़ के ईंट भट्ठे पर काम करने वाले खच्चर में मिला ग्लैंडर्स वायरस
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के विज्ञानियों ने जांच कर तीन केसों की ग्‍लैंडर्स पॉजिटिव रिपोर्ट दी है

हिसार, जेएनएन। हिसार में एक बार फिर से ग्लैडर्स बीमारी से ग्रसित पशु मिला है। लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) में करीब पांच दिन पहले एक खच्चर और एक घोड़ी और एक घोड़ी का बच्चा पशु चिकित्सालय में जांच के लिए आए थे। तीनों की संक्रामक रोगों से ग्रसित थे। पशु चिकित्सकों को शक हुआ तो उन्होंने राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई)के विज्ञानियों को इसकी सूचना दी। इसके बाद वरिष्ठ विज्ञानी डा. हरिशंकर सिंघा के नेतृत्व में टीम ने लुवास से इन तीनों पशुओं के सैंपल भर जांच शुरू कर दी। पांच दिन बाद अब रिपोर्ट लुवास को भेज दी गई है। इसमें खच्चर ग्लैंडर्स बीमारी से ग्रसित मिला है तो घोड़ी में स्ट्रेंगल्स बीमारी पाई गई है। एनआरसीई ने रिपोर्ट लुवास को भेज दी है।

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बहादुरगढ़ में ईंट भट्ठा पर काम करता है खच्चर

जिस खच्चर में ग्लैंडर्स पाया गया है वह बहादुरगढ़ के बामनौली गांव से हिसार के लुवास में चिकित्सकीय जांच कराने आया था। इसके संक्रमित मिलने के बाद खच्चर के संपर्क में आए दूसरे जानवरों में भी यह बीमारी मिल सकती है। इसके लिए सर्वे भी शुरू किया जाएगा। इसमें इस क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग, पशुपालन विभाग इंसानों व जानवरों के सैंपल लेंगे।

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क्या होती है जानवरों में स्ट्रेंगलर्स बीमारी

स्ट्रेंगल्स पशुओं में एक अत्यधिक संक्रामक ऊपरी श्वसन पथ का संक्रमण है। जो बैक्टीरिया स्ट्रेप्टोकोकस इक्वी के कारण होता है। यह सभी उम्र, नस्ल और लिंग के घोड़ों, गधों और टट्टू को प्रभावित करता है। बैक्टीरिया अक्सर जबड़े के आसपास लिम्फ नोड्स को संक्रमित करते हैं, जिससे वे सूजन हो जाते हैं। इसमें नाक बहना, गले में दर्द, फोड़े, पस बहना जैसे बहुत हल्के संकेत प्रदर्शित होते हैं। इसमें पशु को तनाव, भूख न लगना, खाने में कठिनाई, शरीर का तापमान बढ़ना, गले के चारों ओर सूजन आदि समस्याएं होती हैं। यह बीमारी एक पशु से दूसरे में फैल सकती है। इंसान अगर संपर्क में आते हैं तो उन्हें भी संक्रमण लग सकता है। आमतौर पर पशु को अलग थलग कर उपचार कर दिया जाता है। मगर कई बार छोटे पशु बच भी नहीं पाते।

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ग्लैंडर्स बीमारी क्या है

ग्लैंडर्स घोड़ों की प्रजातियों का एक जानलेवा संक्रामक रोग है। इसमें घोड़े की नाक से खून बहना, सांस लेने में दर्द, शरीर का सूखना, शरीर पर फोड़े या गाठें आदि लक्षण हैं। यह संक्रामक बीमारी दूसरे पालतू पशुओं में भी पहुंच सकती है। यह बीमारी बरखाेडेरिया मैलियाई नामक जीवाणु से फैलती है। ग्लैंडर्स होने पर घोड़े को वैज्ञानिक तरीके से मारना ही पड़ता है।

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मनुष्यों पर ग्लैंडर्स का प्रभाव

घोड़ों के संपर्क में आने पर मनुष्यों में भी यह बीमारी आसानी से पहुंच जाती है। जो लोग घोड़ों की देखभाल करते हैं या फिर उपचार करते हैं, उनको खाल, नाक, मुंह और सांस के द्वारा संक्रमण हो सकता है। मनुष्यों में इस बीमारी से मांस पेशियों में दर्द, छाती में दर्द, मांसपेशियों की अकड़न, सिरदर्द और नाक से पानी निकलने लगता है।

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ग्लैंडर्स नोटिफाई होने के बाद क्या होगा

ग्लैंडर्स बीमारी होने के बाद उस जिला का नोटिफाई जिला घोषित किया जाता है। पशुपालन विभाग सबसे पहले पशु चिकित्सकों की टीम बनाकर वहां तीन महीने तक जानवरों के खून के सैंपल लेगा। तीनों महीने टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई तभी ग्लैंडर्स नोटिफाई जिला का टैग हटेगा। इसके साथ ही घोड़ों की आवाजाही व पशु मेला लगाने पर रोक रहेगी।


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