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आपातकाल में हिसार जेल में बंद रहते जार्ज ने जीता था मुजफ्फरपुर से चुनाव

जेपी आंदोलन के नायक जॉर्ज फर्नांडिस आपातकाल के दौरान करीब छह माह तक हिसार की जेल में बंद रहे थे। इसी जेल में रहते हुए उन्होंने बिहार की मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीता था।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 09:32 AM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 05:10 PM (IST)
आपातकाल में हिसार जेल में बंद रहते जार्ज ने जीता था मुजफ्फरपुर से चुनाव

हिसार [राकेश क्रांति]। जेपी आंदोलन के नायक जॉर्ज फर्नांडिस आपातकाल के दौरान करीब छह माह तक हिसार की जेल में बंद रहे थे। इसी जेल में रहते हुए उन्होंने बिहार की मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीता था। वह हिसार के अलावा हरियाणा की अंबाला जेल में भी रहे थे। उन्हें जेल से स्थानांतरित करने की सूचना भी सरकार छिपाती थी।

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खास बात यह है कि जॉर्ज के साथ हिसार जेल में राजनारायण भी बंद रहे थे, जिन्होंने रायबरेली से इंदिरा गांधी को हराया था। इनके साथ जेल में बंद रहे समाजवादी एवं पत्रकार मान सिंह वर्मा ने जॉर्ज की जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक किस्सों को साझा किया। वर्मा ने जॉर्ज के अखबार प्रतिपक्ष में बतौर पत्रकार भी कार्य किया है।

बकौल वर्मा- 'आपातकाल के दौरान जॉर्ज छिपते-छिपाते एक दिन हिसार पहुंचे। जाट कॉलेज रोड पर मुझे और गांव डोभी के रहने वाले समाजवादी चेतराम को मिले। तब उन्हें चंदा इकट्ठा करके दिया था। फिर जॉर्ज हिसार से किसी दूसरे शहर के लिए निकल लिए। इसके बाद जॉर्ज के भाई को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। परिवार पर दबाव बढ़ी तो उन्हें समर्पण करना पड़ा। 10 जून 1976 को गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उन्हें बड़ोदरा जेल में बंद कर दिया।'

वर्मा ने कहा, 'लंदन की एक मानवाधिकार संस्था को शक था कि जॉर्ज को सरकार मरवा सकती है तो उन्होंने जॉर्ज को अधिवक्ता मुहैया कराया। इसके बाद जॉर्ज को बड़ोदरा से दिल्ली की तिहाड़ जेल और फिर हिसार जेल में शिफ्ट कर दिया गया। इंदिरा के खिलाफ कानूनी और चुनावी जंग लडऩे वाले राजनारायण भी हिसार जेल में बंद थे। मैं खुद भी उन दिनों जेल में बंद था। आपातकाल हटने के बाद 16-17 जनवरी 1977 को जेल से आंदोलनकारियों की रिहाई शुरू हुई मगर जॉर्ज को रिहा नहीं किया।'

आधी रात को जॉर्ज बोले-रोटी नहीं तो पानी पिला दो
आपातकाल से पहले जॉर्ज फर्नांडिस कई बार हिसार आए। 1973 में शहर में सोशलिस्ट पार्टी का सम्मेलन था। उस दिन तीन कार्यक्रम थे। दोपहर को जिंदल फैक्टरी के कर्मियों और शाम को स्टेशन पर रेलवे कर्मियों को संबोधित किया। रात 9 बजे पारिजात चौक के पास सत्य भवन में कार्यक्रम था। उन्होंने ढाई घंटे भाषण दिया था। फिर आंदोलन के लिए झोली फैलाकर चंदा मांगा। चवन्नी-अठन्नी इकट्ठी की। रात करीब साढ़े 12 बजे जॉर्ज ने साथियों के बीच कहा-रोटी का इंतजाम नहीं है तो पानी ही पिला दो।

असल में यह चूक ऐसे हुई कि रेलवे कर्मियों ने सोचा कि सत्य भवन में उनके खाने का इंतजाम है और हम लोगों ने सोचा था कि वह स्टेशन पर खाना खाकर आए होंगे। खैर, मैंने और कामरेड भल्ले सिंह ने पारिजात चौक के पास से एक रिक्शा का इंतजाम किया। उन दिनों रात साढ़े 12 बजे तक फिल्म के शो चलते थे तो पारिजात सिनेमा के पास चौक पर रिक्शा खड़े रहते थे। फिर हम तीनों एक रिक्शा पर सवार होकर पुराने अड्डे पर दीनदयाल के ढाबे पर पहुंचे। वह ढाबे को बंद कर रहे थे। ढाबे वाले ने बताया कि सिर्फ दाल बची है, रोटी नहीं है। जब ढाबा मालिक ने जॉर्ज का नाम सुना तो रोटी बनाकर खिलाई। इसके बाद जॉर्ज रात डेढ़ बजे सिरसा से वाया हिसार होकर दिल्ली जाने वाली रेलगाड़ी से निकल लिए।

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