मरणोपरांत भी समाज सेवा का जज्बा, पिता ने की देहदान, पूरे परिवार ने लिया नेत्रदान का संकल्प
हिसार में एक परिवार ऐसा है जो चाहता है कि उनके दुनिया से चले जाने के बाद भी समाज सेवा होती रही। इस समाज सेवा में मरने के बाद भी वो भागीदार बनें रहें।
हिसार, जेएनएन। समाज सेवा के लिए बहुत से लोग विभिन्न तरीकों से समाजहित करते हैं। तन, मन और धन से बहुत से लाेग इसी काम में जुटे भी रहते हैं। मगर हिसार में एक परिवार ऐसा है जो चाहता है कि उनके दुनिया से चले जाने के बाद भी समाज सेवा होती रही। इस समाज सेवा में मरने के बाद भी वो भागीदार बनें रहें। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे संभव है, मगर इस परिवार ने अंगदान करने का निश्चय किया है। ताकि किसी मजलूम को फिर से दुनिया देखने का अवसर मिले।
हिसार के टिब्बा दानाशेर एरिया निवासी 90 वर्षीय हरिराम तुरकिया का शुक्रवार रात को निधन हो गया। वह रिटायर्ड टीचर थे। उन्होंने अपने जीवित रहते परिजनों के सामने मरणोपरांत देहदान करने की इच्छा जताई थी। परिजनों ने शनिवार को एक वाहन में शव अग्रोहा मेडिकल कॉलेज में ले जाकर प्रबंधन के सुपुर्द कर दिया। वहीं उनके तीन बेटे और उनकी पत्नियों ने मरणोपरांत आंखे दान करने को लेकर आवेदन किया हुआ है।
टिब्बा दानाशेर एरिया निवासी सतपाल तुरकिया ने बताया कि उनके पिता हरिराम का जन्म गांव जमावड़ी में हुआ था। वह साल 1952 से 1986 तक शिक्षा विभाग में प्राइमरी टीचर रहे थे और फिलहाल घर पर रहते थे। वह साल 1986 में मिर्जापुर के कन्या विद्यालय से सेवानिवृत हुए थे। उन्होंने बताया कि पिता जी कहते थे कि मैंने जिंदा रहते बच्चों को शिक्षा दी है। वह चाहते थे कि मरणोपरांत उनका शरीर दान कर दिया जाए। उन्होंने साल 2010 में अग्रोहा मेडिकल कॉलेज में शरीर दान करने का आवेदन भरा था। रात को उनका निधन हो गया। हमने निधन की सूचना फोन पर अग्रोहा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को दी थी। बाद में एक वाहन में शव अग्रोहा मेडिकल कॉलेज में ले जाया गया और वहां स्टाफ सदस्यों को सौंप दिया गया।
दिवंगत मास्टर हरिराम का फाइल फोटो
तीनों बेटों और उनकी पत्नियों ने भी किया नेत्रदान के लिए पंजीकरण
मृतक के बेटे सतपाल ने बताया कि वे तीन भाई हैं। उससे बड़ा जयप्रकाश और छोटा विजय है। उन्होंने बताया कि हम तीन भाइयों और तीनों की पत्नियों ने पिता की इच्छा अनुसार नेत्रदान के फार्म भर रखे हैं। हम चाहते हैं कि पिता की प्रेरणा से मरणोपरांत हमारी आंखें किसी जरूरतमंद के काम आ सकें।