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गेहूं की फसल में किसान खरपतवार पर दें विशेष ध्यान, बढ़ने के अनुकूल बना है मौसम

गेहूं की फसल में सर्दी के इस मौसम में खरपतवार भी तेजी से बढ़ोतरी करते हैं। किसान दिसंबर माह में अगर समय पर खरपतवार नियंत्रण करेंगे। इससे गेहूं का उत्पादन भी होगा। जिससे किसानों को आर्थिक तौर पर लाभ होगा।

By Manoj KumarEdited By: Published: Mon, 29 Nov 2021 09:02 AM (IST)Updated: Mon, 29 Nov 2021 09:02 AM (IST)
गेहूं की फसल में किसान खरपतवार पर दें विशेष ध्यान, बढ़ने के अनुकूल बना है मौसम
इस मौसम में मंडूसी, जंगली जई की होती है गेहूं के साथ बढ़वार

जागरण संवाददाता, सिरसा। गेहूं की फसल की सभी जगह बढ़ोतरी हो रही है। इस बार मौसम में ठंड भी ज्‍यादा है। ऐसे में किसान खरपतवार पर विशेष ध्यान दें। खरपतवार पर ध्यान नहीं देने से उत्पादन काफी घट सकता है। कई दफा तो खरपतवार से गेहूं बिल्‍कुल भी नहीं होती है। वहीं जब मौसम खरपतवार की बढ़ोतरी की अनुकूल हो तो और भी ज्‍यादा नुकसान होता है। क्योंकि गेहूं की फसल में सर्दी के इस मौसम में खरपतवार भी तेजी से बढ़ोतरी करते हैं। किसान दिसंबर माह में अगर समय पर खरपतवार नियंत्रण करेंगे। इससे गेहूं का उत्पादन भी होगा। जिससे किसानों को आर्थिक तौर पर लाभ होगा। खरपतवार पर नियंत्रण के लिए कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक किसानों को जागरूक भी कर रहे हैं।

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किसान ऐसे करें रोकथाम

इस मौसम में गेहूं की फसल में मंडूसी, कनकी व जई खरपतवार तेजी से बढ़ता है। इनकी रोकथाम के लिए आइसोप्रोटूरान, 50 फीसद टोलकान, टारस, ग्रेमिलोन, नोसिलान, रक्षक दवा का प्रति एकड़ के हिसाब से 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। गेहूं की बिजाई यदि दिसंबर के प्रथम सप्ताह या बाद में हो तो आहसोप्रोटूरान 200 ग्राम प्रति एकड़ सिंचाई के तुरंत पहले करने से जंगली जई, कनकी व बथुआ का नियंत्रण हो जाता है। इसी के साथ किसान गेहूं की फसल में मृदाजनित रोगों से बचाव करें। किसान दीमक से बचाने के लिए क्लोरपाइफीस 20 ईसी य इथियॉन 50 ईसी का प्रयोग करें। दवाई में पानी मिलाकर 5 मीटर घोल बनाएं, इससे भूमि में दीमक की बीमारी कम होगी। वहीं किसान सिंचाई समय समय पर करें।

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इस मौसम में गेहूं की फसल में कई प्रकार के खरपतवार पैदा होते हैं। जो गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचते हैं। गेहूं की फसल में किसान समय पर खरपतवार का नियंत्रण करें। जिससे गेहूं का उत्पादन अच्छा हो सके।

डा. देवेंद्र जाखड़, सीनियर कोडिनेटर, कृषि विज्ञान केंद्र, सिरसा


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