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जुनून ऐसा कि मजाक को मंजिल की सीढ़ी बना डाला, दूसरों के लिए बने नजीर, कमा रहे लाखों

गांव मग्गावाली के प्रगतिशील किसान रमेश चौहान की देखादेखी करीब सौ से अधिक किसानों ने की पराली जलाने से तौबा, धान का अवशेष खेतों में ही मिलाकर मिट्टी की उर्वरकता बढ़ा ले रहे दोहरा लाभ

By manoj kumarEdited By: Published: Mon, 15 Oct 2018 07:28 PM (IST)Updated: Tue, 16 Oct 2018 11:02 AM (IST)
जुनून ऐसा कि मजाक को मंजिल की सीढ़ी बना डाला, दूसरों के लिए बने नजीर, कमा रहे लाखों
जुनून ऐसा कि मजाक को मंजिल की सीढ़ी बना डाला, दूसरों के लिए बने नजीर, कमा रहे लाखों

फतेहाबाद [राजेश भादू] ... मत चूको चौहान। कोई आठ सौ साल पहले पृथ्वीराज के संदर्भ में बताई गई यह पंक्ति पराली प्रबंधन के लिहाज से प्रेरणा-पुंज बन गई है। गांव मग्गावाली के किसान रमेश चौहान ने तो इसे बाकायदा अपने व्यावहारिक जीवन में ही उतार लिया। उनके सामने भी समस्या पराली प्रबंधन की थी। कृषि विज्ञानियों ने उन्हें इस फसली अवशेष की महत्ता बताई। बात जंच गई। लेकिन शुरुआती दौर में विशेषज्ञों की कही बातों पर अमल की तो अपने व आसपास के गांवों के लोगों ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। पर, रमेश ने तो पराली नहीं जलाने की ठान ही ली थी। सो, उन्होंने अपना निश्चय दृढ़ किया। पहले ही साल फायदा मिला। भरपूर। जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ गई। सोने पर सुहागा यह कि जो लोग कभी उनका मजाक उड़ाते थे, वही अब उन्हें वक्त के चौहान कहते हैं।करीब सौ किसनों ने उनकी देखादेखी खेतों में पराली जलाकर प्रदूषण फैलाने से खुद का रुख मोड़ लिया।

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दरअसल, इस प्रगतिशील किसान के परिवार के पास 40 एकड़ जमीन है। खेती लायक। इस जमीन में वह वर्षों से धान की फसल करते रहे हैं। आसपास के किसान धान की पराली में आग लगा देते थे। देखादेखी थी। सो, पहले वह भी उन्हीं लोगों में शामिल थे। लेकिन फिजा में फैलता जहरीला धुआं उनके मन को कचोटता था। बकौल रमेश, यह उन्हें अच्छा नहीं लगता था। इसलिए कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क साधा। थोड़ी-बहुत जानकारी जुटाई। मंथन किया। पराली न जलाने का विश्वास जागा।विश्वास को वैज्ञानिक आधार ने दृढ़ बनाया। पिछले चार साल से वह पराली का एक कतरा भी नहीं जला रहे हैं। हालांकि जब उन्होंने अपने निश्चय को आगे बढ़ाया तो लोगों ने यह कहकर मजाक उड़ाना शुरू कर दिया कि उपज देख लेना।

टोकाटाकी ने इरादा कर दिया मजबूत

रमेश बताते हैं कि इस टोकाटोकी की वजह से पराली न जलाने का उनका इरादा और मजबूत हुआ। हुआ यूं कि इससे गेहूं व धान का उत्पादन बढ़ गया। वह बताते हैं कि जितनी उनकी खुद की जमीन है उतनी ही वह ठेके पर लेकर काश्त करते हैं। खुद की जमीन के साथ ठेके पर ली गई जमीन पर भी उन्होंने फसलों के अवशेष नहीं जलाए। धान के अवशेष पहले जमीन में मिला देते थे। अब हैप्पी सीडर से बिजाई करते हैं। गेहूं के अवशेष भी नहीं जलाते। कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आने के बाद ढांचा लगाकर खेत को हरी खाद देते हैं। उनका कहना है कि ये अब उसकी जमीन का कार्बनिक पदार्थ भी बढ़ रहा है।

उनसे मैने भी ली प्रेरणा

पड़ोसी गांव हसंगा के किसान कृष्ण ने कहा कि रमेश भाई के जज्बात ने मुझे इस कदर प्रेरित किया कि मैंने भी पराली नहीं जलाने की जिद पकड़ ली। उनकी राह पर चला। उपज तो बढ़ी ही, लागत भी कमतर हो गई। अब यह सोच रहा हूं कि कुछ पराली का सदुपयोग गत्ता फैक्टरी में भेजकर करूं। इस दिशा में परिवार के लोग भी सोच रहे हैं।

इस बार 200 एकड़ का लक्ष्य

रमेश चौहान ने बताया कि पहले धान के फसल अवशेष खेत में मिला देता था, लेकिन गत वर्ष हैप्पी सीडर से गेहूं की बुआई की। इस मशीन से धान के अवशेष खेत में पड़े होने पर भी बिजाई हो जाती है। इसका परिवार के लोगों ने विरोध किया। कहने लगे कि इससे गेहूं का उत्पादन भी नहीं होगा।चूहे गेहूं का खराब कर देंगे। उसके बाद भी उसने किसी तरह गत वर्ष 110 एकड़ में हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई की। जो प्रति एकड़ 59 मण का उत्पादन हुआ। इस बार 200 एकड़ में हैप्पी सीडर से बिजाई करने का लक्ष्य रखा है।

विभाग से सीखी उन्‍नत तकनीक

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग एसडीओ डा. राजेश सिहाग ने कहा किसान रमेश चौहान ने कृषि विभाग से तकनीक सीख कर उन्नत खेती को अपनाया है। अब वे फसलों के अवशेष नहीं जलाते, बल्कि उन्हें जमीन में मिलाकर उपजाऊ शक्ति को बढ़ावा दे रहे हैं।


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