आपातकाल पीडि़त बोले : नसबंदी का टारगेट पूरा करने को ना युवाओं को छोड़ा और ना बुजुर्गों को
द्वितीय वर्ष का दाखिला लेकर कॉलेज से वापस आए श्रवण कुमार को कुलाना से अपने साथ ले गई थी पुलिस। आरएसएस से जुड़ाव के चलते रेवाड़ी की जेल और महेंद्रगढ़ के किले में निर्मल को रखा गया थ
झज्जर [अमित पोपली] आपातकाल के दौर में इससे ज्यादा शर्म की कोई बात नहीं हो सकती कि जीप जब गांव में चक्कर लगाती थी तो एक बेटी को यह कहना पड़ता था कि बापू छिप जा, नसबंदी करने वाले आ रहे हैं। दरअसल, जनता के अधिकार पहले से ही छीने जा चुके थे। फिर नसबंदी ने घर-घर तक दहशत फैलाने का काम किया। रात को लोग अपने घर में सोने की बजाय फसलों के बीच में सो जाया करते थे। रिश्तेदारियों में लोगों का आना-जाना तक बिल्कुल छूट गया था।
कारण उस दौरान गली-मौहल्लों में आपातकाल के सिर्फ एक ही फैसले की चर्चा सबसे ज्यादा थी और वह भी नसबंदी। सिर्फ टारगेट पूरा करने के लिए गांव में आने वाले टीम जबरदस्ती करती थी, उस दौरान ना तो युवाओं को छोड़ा गया और ना ही बुजुर्गों को। रेवाड़ी की जेल और महेंद्रगढ़ के किले में अपनी जवानी का करीब एक साल बिताने वाले श्रवण कुमार उर्फ निर्मल को आज भी एक-एक बात याद है।
- फिलहाल, पेशे से वकालत करने वाले कोका गांव निवासी निर्मल चौहान अपने प्राध्यापकों से प्रभावित होकर आएसएस से जुड़े थे। सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह कॉलेज से सीधा रेवाड़ी स्थित आरएसएस कार्यालय में जाया करते थे। सिलसिला कुछ दिन में इतना बढ़ा कि वह रात को भी वहां पर ही ठहरने लगे। आपातकाल जिस दौरान लगा, उससे कुछ दिन पहले प्रथम वर्ष का उनका परिणाम घोषित हुआ था। द्वितीय वर्ष में दाखिला लेने के बाद वह कुलाना स्थित बस स्टैंड पर अभी पहुंचे ही थे कि करीब 50 से अधिक पुलिस कर्मी उन्हें पकडऩे के लिए वहां पर आ गए। करीब 18 साल की उम्र में उन्हें रेवाड़ी पुलिस थाना में ले जाया गया। निर्मल बताते है कि वे रोहतक से लेकर नारनौल तक इकलौते छात्र थे, जिन्हें आरएसएस में सक्रियता के कारण जेल में भेजा गया था।
थानेदार की पत्नी ने पहले दिन थाने में भिजवाई थी रोटी : रेवाड़ी के जिस पुलिस थाना में निर्मल को ले जाया गया। वहां पर सोनीपत के निरीक्षक की बतौर थाना प्रभारी ड्यूटी थी। छोटी उम्र और सामान्य कद काठी होने के कारण जब उन्हें हवालात में रखा गया तो उस दौरान थानेदार की पत्नी भी आई हुई थी। निर्मल को देखने के बाद वह काफी भावुक हो उठी। रात का खाना और घर से सोने के लिए बिस्तर भी लेकर आई। साथ ही जेल में जल्द भिजवाए जाने की व्यवस्था भी उसी ने करवाई थी। निर्मल के मुताबिक अगर उस रात वह महिला नहीं आती तो पता भी नहीं लगता कि उन्हें कहां पर ले जाया गया। क्योंकि, आरएसएस से जुड़े लोगों को अधिक परेशान किए जाने के स्पष्ट निर्देश सरकार की ओर से दिए गए थे।
एक माह के बाद पहली दफा जेल में हुई थी परिवार ेस मुलाकात : बचपन से ही देश सेवा और संस्कारों की बात करने वाले निर्मल का नाम श्रवण कुमार उनकी दादी ने ही रखा था। दो नाम होने की वजह से पुलिस उनके पास एक दिन बाद पहुंची थी। हालांकि, जिस दौरान उन्हें कुलाना से पुलिस अपने साथ ले जा रही थी, उस समय उन्होंने वहां पर मौजूद एक व्यक्ति को घर तक सूचना पहुंचाने के लिए बोल दिया था। क्योंकि, जनता के अधिकार काफी सीमित हो चुके थे। इसीलिए करीब एक माह का समय परिवार को सिर्फ जेल में मुलाकात करने में लग गया।