आपातकाल : जबरन करवाई महिला की नलबंदी, उसी दिन मर गया इकलौता बेटा, दो दिन बाद पति
इमरजेंसी के बाद चौ. देवीलाल को पत्र लिख महिला ने अपना दर्द बयान किया था। आपातकाल के 43 वर्ष बाद अग्रोहा के गांव सारंगपुर की महिला की चिट्ठी सामने आई। भावुक कर देगी ये घटना।
डबवाली (सिरसा) जेएनएन। आपातकाल में पुरुषों पर ही नहीं, महिलाओं पर भी जुल्म ढहाए गए थे। एक महिला ऐसे ही जुल्म की साक्षी थी और इस दर्द को बयां करती वो पाती यानि पत्र जिसे बेबस महिला के द्वारा ताऊ देवीलाल को करीब 43 साल पहले लिखा गया था। महिला ने यह पाती 28 मई 1977 को पूर्व उपप्रधानमंत्री चौ. देवीलाल को लिखी थी। इस पाती को देवीलाल के पौत्र अनिरुद्ध देवीलाल संभाले हुए हैं। पाती के एक-एक शब्द जुल्म की कहानी बयां कर रहे हैं।
पाती हिसार के अग्रोहा तहसील के गांव सारंगपुर (उस वक्त गांव फतेहाबाद तहसील में होता था) से भेजी गई थी। इसमें महिला ने नवंबर-दिसंबर 1976 की घटना का जिक्र किया था। महिला ने कहा था कि उसके ससुराल में सदलपुर की पुलिस और गांव का सरपंच ढाणी में आए। कहा, तीन दिन के भीतर नलबंदी करवाओ वरना गिरफ्तार किया जाएगा। वह अपने पति तथा बीमार बच्चे के साथ हिसार के सिविल अस्पताल में चली गई। उसके इकलौते बेटे को निमोनिया था। अस्पताल में उसका नलबंदी ऑपरेशन कर दिया गया पर दुर्भाग्य से उसी दिन उसका बेटा अस्पताल में मर गया। उसे दो दिन बाद इसकी जानकारी दी गई।
महिला ने चौ. देवीलाल को पाती के जरिए बताया था कि उसके बेटे की मौत की बात सुनकर उसके पिता भी चल बसे। उसके भाइयों ने उसे पुन: हिसार के एक नर्सिंग होम (पाती में डॉक्टर का नाम लिखा है) में उसे पुन: एडमिट करवाया। उसका नलबंदी का ऑपरेशन पुन: खुलवाया, परमात्मा जाने क्या होगा।
सांसद ने नहीं की थी मदद
पाती में महिला ने एक पूर्व सांसद का नाम लिखा हुआ है। महिला के मुताबिक, उसने इस संबंध में सांसद को शिकायत दी थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। महिला ने देवीलाल से मदद मांगी थी। अनिरुद्ध देवीलाल का कहना है कि चौ. देवीलाल पाती मिलने पर एक्शन लेते थे। संभव है कि उन्होंने संबंधित परिवार की मदद जरूर की होगी।
शादी को हुआ था एक साल, नसबंदी के लिए उठा ले गई थी टीम
सिरसा। हरबेल सिंह खैरपुर निवासी ने बताया मैं बैलगाड़ी से अनाज मंडी में अनाज उठाने का कार्य करता था। आपातकाल के दौरान किसी को भी बाहर निकलने से डर लगता था। मेरी शादी को उस समय एक साल ही हुआ था। घर से जब अनाज मंडी की तरफ जा रहा था। मेरे को पुलिस ने उठा लिया। मैं तो प्रदर्शनकारी भी नहीं था। इसके बाद नसबंदी करने के लिए अस्पताल ले गये। इसके बाद जब इस बारे में सरपंच को पता लगा। सरपंच गांव से अस्पताल में पहुंचा। इसके बाद चिकित्सकों व पुलिस कर्मचारियों को इस बारे में बताया। उसे छोड़ दिया गया। इसके बाद वह अपने घर खैरपुर पहुंच गया। लेकिन इसके बाद घर से निकालने में भी डर लगने लगा।