इलाज करते- करते खुद हो गए थे कोरोना संक्रमित, ठीक हो फिर ड्यूटी पर लौटे डॉ. धुव्र चौधरी
18 दिन खुद को किया आइसोलेट ठीक होने के बाद फिर से ड्यूटी पर लौटे। घर से चिकित्सकों दिया मार्गदर्शन खुद दिखाई हिम्मत दूसरों को दिया हौसला
रोहतक, जेएनएन। चिकित्सक का भगवान के बाद दूसरा स्थान है। यह स्थान इसलिए मिला है कि चिकित्सक भी मरीज की जिंदगी बचाकर उसे नया जीवनदान प्रदान करते हैं। समाज में ऐसे चिकित्सक हैं, जो अपने पेशे को सार्थक भी साबित करते हुए समाज में मिसाल बन जाते हैं। इस महामारी में दुनिया में काफी चिकित्सक ऐसे हैं, जिनकी जिंदगी खतरे में पड़ गई। लेकिन अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे। इनमें से एक हैं पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस के प्लमोनरी क्रिटीकल केयर डिपार्टमेंट के एचओडी एवं कोविड-19 के स्टेट नोडल अधिकारी सीनियर प्रोफेसर डा. ध्रुव चौधरी।
डा. ध्रुव चौधरी जहां कोरोना मरीजों को इलाज करने में जुटे हैं, वहीं, विभाग के चिकित्सक व अन्य स्टाफ को प्रोत्साहित भी करते हैं। अपनी ड्यूटी देते हुए वे खुद भी कोरोना संक्रमित हो गए। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। खुद को घर में आइसोलेट किया। साथ ही, कोविड-19 सेंटर को भी संभालते रहें। एक बार भी उन्होंने कोरोना संक्रमण को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यहीं बात है कि 18 दिन में कोरोना को मात देकर वे पूरी तरह से स्वस्थ हुए। स्वस्थ ही नहीं हुए बल्कि वापस ड्यूटी भी संभाली।
मरीज के ठीक होने पर मिलता है सुकून
डा. ध्रुव चौधरी का कहना है कि चिकित्सक का पेशा ऐसे है कि उनको केवल मरीज के इलाज पर फोकस होता है। प्रत्येक चिकित्सक मरीज के इलाज में अपना सौ फीसद लगाता है। जब मरीज स्वस्थ होकर घर लौटता है तो चिकित्सक को बड़ा सुकून मिलता है। कोरोना काल में तो चिकित्सक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जब इस तरह से संक्रमण का खतरा रहता है। लेकिन चिकित्सक का पेशा ही ऐसी परिस्थितियों से लडऩे का है। मैं कोरोना से संक्रमित हो गया। अगर मैं ऐसे समय में हौसला तोड़ता तो अन्य चिकित्सकों का आत्मविश्वास भी कम होता। इसलिए खुद को संक्रमण से स्वस्थ किया और टीम को सकारात्मक संदेश देने का काम भी किया।
जब आपरेशन करते मरीज ने कर दी उल्टी
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गुरुग्राम विश्वविद्यालय गुरुग्राम के कुलपति एवं आंखों के वरिष्ठ चिकित्सक डा. मारकंडेय आहूजा 32 साल के करियर में 30 लाख मरीजों की आंखों की जांच कर चुके हैं। दो लाख से अधिक लोगों की आंखों का आपरेशन कर उनकी जिंदगी में रोशनी कर चुके हैं। डा. मारकंडेय ने एक घटना का जिक्र करते हुए अनुभव को साझा किया। उन्होंने बताया कि बाबा मस्तनाथ मठ का राजस्थान का हनुमानगढ़ में भी आंखों का अस्पताल है। 1991 की बात है, वे 45 मरीजों के आंखों के आपरेशन करने गए थे। एक मरीज की आपरेशन के लिए आंख खोल रखी थी। इसी दौरान मरीज को जोर से उल्टियां लग गई। वह बिना बताए की दूध पीकर आ गया था। सिर नीचे किया तो उसकी आंख भी उल्टी से पूरी तरह से भर गई। बाद में आंख को अच्छे से साफ किया और आपरेशन कर दिया। लग रहा था कि आंख में संक्रमण हो जाएगा। लेकिन उनके प्रयास सफल हुए और जितने भी मरीजों के आपरेशन किए थे, उनमें सबसे अच्छा उसी मरीज का हुआ।
यह उनके जीवन में खास तरह की घटना थी। आंख का सफल आपरेशन होने के बाद उसे जो खुशी हुई, उसे बयां नहीं कर सकता। इसी तरह कच्ची खराब पीने से जींद के नरवाना में कई लोग अंधे हो गए थे, जिन्हें आपरेशन के लिए बाबा मस्तनाथ मठ अस्थल बोहर लाया गया। नौ मरीजों में से आठ के सफल आपरेशन हुए। कोरोना महामारी में जब सरकार ने अस्पताल खोलने की अनुमति दी तो उन्होंने अपने घर पर ही ओपीडी शुरू कर दी। रोजाना घर पर ही मरीजों की जांच की जाती है। विश्वविद्यालय के कार्यों की व्यस्तता के बावजूद वे मरीजों की आंखों की जांच के लिए समय जरूरत निकालते हैं।