बैंक मैनेजर की ईमानदारी से इतने प्रभावित हुए थे देवीलाल, दे दिया लोकसभा का टिकट
चौ. हेतराम ने बताया कि यह उनका पहला चुनाव था। इससे पहले राजनीति के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं रही। सिरसा से दो बार सांसद रहे चौधरी हेतराम बैंक मैनेजर के पद पर नियुक्त थे।
सिरसा [सुधीर आर्य] टिकट के लिए पैसा देने की बात होती है। अपने खर्चे पर चुनाव लड़ने की ऑफर भी पार्टियों को देते हैं। बस टिकट मिल जाए। इन सबके विपरीत चौधरी देवीलाल ने 1988 के उप चुनाव में बैंक में सीनियर मैनेजर रहे हेतराम को टिकट देकर मैदान में उतार दिया। उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं था। न ही चुनाव लड़ने की कोई लालसा। एक महीने पहले तक देवीलाल परिवार के साथ किसी प्रकार के राजनीतिक संबंध भी नहीं रहे। फिर भी उन्हें चुनाव में उतार दिया गया। इस चुनाव में वह कुमारी सैलजा को हराकर एक लाख से ज्यादा वोटों से विजयी रहे।
साहुवाला द्वितीय के हेतराम बताते हैं कि उन्हें आज तक पता नहीं चला कि चुनाव में पैसा कहां से आया। मेरे तो लगे नहीं। वह बताते हैैं, 1988 में इंडियन ओवरसिज बैंक की मानसा शाखा में सीनियर मैनेजर थे। पहले एक थानेदार उनके गांव में गया, पूछताछ की। वहीं से उसे पता चला कि मैं मानसा में तैनात हूं। सुबह 7 बजे थानेदार मानसा पहुंच गया। बैंक खुलने में टाइम था। बैंक के पास दुकानदार से पूछताछ की और वह दुकानदार ही थानेदार को मकान पर ले आया। तब थानेदार बताया कि चौ. देवीलाल ने आज ही बुलाया है और चंडीगढ़ चलना होगा। थानेदार को भी नहीं पता था कि क्या बात होनी है लेकिन मैं उसके साथ चल दिया।
चौ. देवीलाल बोले इलेक्शन लड़वाना है, कुछ पैसे का इंतजाम है क्या
चौ. हेतराम ने बताया कि चंडीगढ़ पहुंचे शाम को मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल से बात हुई। वह बोले, इलेक्शन लड़वाएं तो कुछ पैसा इकट्ठा किया है, उसकी जरूरत पड़ेगी। खुद बोले, बैंक में हो कुछ तो लगा दोगे। लेकिन मैंने ना में सिर हिला दिया। कहा-ईमानदारी से नौकरी कर रहा हूं, पैसा तो नहीं है। लड़ने के बारे में तो सोचा ही नहीं। कुछ मिनट की बात थी और इसके बाद कह दिया चलो अब जाओ जरूरत होगी तो बुला लेंगे।
दिल्ली बुलाया और टिकट फाइनल
चौ. हेतराम ने बताया कि इसके बाद वे बैंक से एलटीसी लेकर घूमने के लिए निकल गए लेकिन बेटी की तबीयत खराब हो गई तो वापस आ गए। सिरसा पहुंचे ही थे कि चौ. देवीलाल के दिल्ली बुलाने का संदेश किसी व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ। अगले दिन सुबह मानसा से पहले सिरसा और फिर दिल्ली के लिए निकल गया। चौ. देवीलाल से मुलाकात से कुछ देर पहले शरद यादव और सुरेंद्र मोहन चौ. देवीलाल से मिलकर निकल रहे थे। तब तक मन था कि चुनाव न लड़ूं। हार गया तो परिवार कैसे पालूंगा बड़ी द्वंद्व की स्थिति में था। तभी सुरेंद्र मोहन ने कहा कि ईमानदार होकर भी डरते हो ये सही नहीं है, कैसे देश आगे बढ़ेगा। थोड़ा लगा कि जरूरत पड़ी तो नौकरी छोड़ देंगे और लड़ना चाहिए। अंदर जाते ही चौ. देवीलाल ने कहा कि चुनाव लड़वा रहे हैं इस्तीफा दे दो। पैसे की बात आई तो बोले यह मैं देख लूंगा।
एक लाख से अधिक वोट से जीते
चौ. हेतराम ने बताया कि यह उनका पहला चुनाव था। इससे पहले राजनीति के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं रही। वहां से आने के बाद इस्तीफा दे दिया। चौ. दलबीर्र सिंह के निधन के कारण उनकी पुत्री कुमारी सैलजा मैदान में उतरीं लेकिन वे यह चुनाव एक लाख से अधिक वोटों से जीतने में सफल रहे। कुल तीन चुनाव लड़े जिनमें से 1988 व 89 के चुनाव वे जीत गए लेकिन 1991 में महम कांड के बाद वे चुनाव हारे और पूरे प्रदेश में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।