कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बावजूद बार-बार करवा रहे टेस्ट, बढ़ गए डिप्रेशन के मरीज
कोरोना वायरस के कारण तनाव व डिप्रेशन के केस बढ़ गए हैं। मनोचिकित्सकों के पास रोजाना ऐसे केस आ रहे हैं। वहीं होम क्वारंटाइन में रहने वाले मरीजों व परिजनों के सामने इस तरह की समस्या आ रही है।
हिसार [चेतन सिंह] यदि आपकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव है और फिर भी आप बार-बार कोरोना टेस्ट करवा रहे हैं तो आप नुरोसिस के शिकार हो सकते हैं। ऐसे कई मरीज आजकल मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं। इसमें 20 से लेकर 60 वर्ष तक के लोग हैं। अधिकत महिलाएं इस रोग से पीडि़त हैं। कोरोना के कारण होम क्वांटाइन में रह रहे मरीजों के परिवार में इस तरह के केस ज्यादा मिल रहे हैं।
इसके अलावा आस-पड़ोस में भी कोरोना केस मिलने पर इस तरह की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। इस बिमारी को नुरोसिस कहा जाता है। इसमें डिप्रेशन व स्ट्रेस में मरीज चला जाता है और कई बार तो तनाव में इतना आ जाते हैं कि सुसाइड करने तक का मन बना लेते हैं। ऐसे में परिवारों में या आसपास इस तरह का कोई आपको दिखे तो तुरंत मनोचिकित्सक से इलाज की सलाह दें।
इस रोग से बचाव के लिए अपने आपको व्यस्त करने की कोशिश करनी चाहिए। सुबह-शाम योग व प्राणायम करना चाहिए। जो भी आपकी होबी है उसे करें ताकि इस बीमारी से दूर रहा जा सके। वहीं दूसरी ओर कोरोना के कारण कई लोगों के बिजनेस ठप हो गए हैं ऐसे लोग भी लगातार डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।
कहीं मेरे खिलाफ साजिश तो नहीं हो रही
मनोचिकित्सकों के पास दूसरे जो सबसे ज्यादा पेशंट आ रहे हैं वह साइकोसिस से पीडि़त हैं। इस बीमारी का लक्षण है बेवजह शक करना, वहम करना। इसमें मरीजों को ऐसा लगता है कि लोग उनके खिलाफ साजिश कर रहे हैं। कोरोना के कारण ऐसे कई मरीज हैं या उनके परिजन है वह दिनभर यही सोचते हैं कि लोग उनके खिलाफ साजिश कर रहे हैं। चाहे कोई व्यक्ति उनका भला कर रहा तो वह उसे नकारात्मक दृष्टि से ही देखते हैं।
यह करें उपाय
- अपने आपको व्यस्त रखें
- मरीज को अपनेपन का अहसार करवाएं
- मरीज क्वांरटाइन में भी है तो उससे फोन पर बातचीत करते रहें
- जो आपकी होबी है उसे करें
- सुबह शाम योग करें
- सकरात्मक सोचें, नकारात्मक विचार मन में ना आने दें
----कोरोना के कारण नुरोसिस और साइकोसिस के मरीज दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। रोजाना 25 से 30 लोग इसी रोग के आ रहे हैं। ऐसे में तत्काल मनोचिकित्सक का परामर्श लेना चाहिए।
- डा. अदिति पोपली, मनोचिकत्सक, सीएमसी अस्पताल