14 की उम्र में अभिनय क्षेत्र में बिखरी चंदन की खुशबू, दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित
उम्र की सीमा शौक में बाधा नहीं बनती। उम्र छोटी या बड़ी हौसला बड़ा होना चाहिए। हिसार के बाल कलाकार चंदन शर्मा को दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया है।
जेएनएन, हिसार
उम्र की सीमा शौक में बाधा नहीं बनती। उम्र छोटी या बड़ी हौसला बड़ा होना चाहिए। हिसार के छोरे ने इसी बात को साबित करते हुए अभिनय जगत में अपनी छाप छोड़ दी है। महज 14 साल की उम्र में ही इस कलाकार को बेहतर अभिनय करने के लिए दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया है। ब्लूमिंग डेल्स स्कूल में पढ़ने वाले चंदन शर्मा के काम की खुशबू ने बड़े बड़े कलाकारों के दिमाग में दस्तक दी है। चंदन शर्मा अब इसी सफर को जारी रखते हुए भविष्य में मुंबई नगरी में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। चंदन की इस उपलब्धि को लेकर स्कूल प्रधानाचार्य रीटा शर्मा और स्कूल प्रबंधक हिमांशु शर्मा ने बधाई देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है। चंदन शर्मा ने बताया कि उन्हें ये अवार्ड बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ और भू्रण हत्या रोकने के विषय पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री के लिए दिया गया है। दिल्ली में आयोजित समारोह में देशभर से डॉक्यूमेंट्रियों को प्रस्तुत किया गया था जिसमें उनकी डाक्यूमेंट्री -मैं दीया - को बेस्ट चुना गया। बाल कलाकार के रूप में उनके अभिनय को बहुत सराहा गया। चंदन शर्मा के पिता राजीव शर्मा इंजीनियर है और माता रीटा शर्मा हाउस वाइफ हैं। चंदन ने बताया उन्हें एक्टिंग करने का शौक छोटी सी उम्र में ही हो गया। इससे पहले वो स्कूल कार्यक्रम में स्टेज प्रस्तुति देता था। मगर अब पिछले दो साल से वो एक्टिंग सीख रहा था। एक दिन रियाज करने के दौरान एक डायरेक्टर उनके पास आए और डाक्यूमेंट्री में अभिनय करने के लिए पूछा। इसके बाद उसने इस रोल के लिए हामी भर दी और उसकी मेहनत का फल दादा साहेब फाल्के अवार्ड के रूप में मिला।
ये है दादा साहब फाल्के अवार्ड, इसलिए है दिया जाता
आज भारतीय सिनेमा का नाम शिखर पर है. जिससे भारतीय सिनेमा में दादा साहब फाल्के पुरस्कार का नाम भी काफी मशहूर है। दादा साहब फाल्के इसके निर्माता, निर्देशक, कथाकार, सेट डिजाईनर, ड्रेस डिजाइनर, सम्पादक, वितरक, सभी कुछ थे। 30 अप्रैल, 1870 को नासिक में जन्मे दादा साहब ने भारतीय सिनेमा में को बसाने में विशेष भूमिका निभाई। इन्होंने 1913 में फिल्म राजा हरिचंद्र बनायी।
दादा साहब फाल्के अवार्ड की स्थापना भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के के नाम पर की गयी थी। इस अवार्ड में
इस अवार्ड की स्थापना 1969 में दादा साहब फाल्के की सौंवीं जयंती के अवसर पर की गई थी।
भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है, को कि किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है।