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महासागरों के तापमान में लगातार बढ़ोतरी से ज्यादा आ रहे भीषण चक्रवात, बदल रहा हरियाणा-पंजाब में मौसम चक्र

महासागरों के तापमान में बढ़ोतरी हरियाणा और पंजाब के मौसम चक्र पर भी असर पड़ रहा है। इसी वजह से मई माह में दो भीषण चक्रवात आए। इन चक्रवातों की वजह से फसलों पर भी प्रभाव पड़ रहा है। नए-नए कीट व रोग फसलों में देखने को मिलते हैं।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 12:41 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 12:41 PM (IST)
तापमान बढ़ने से समुद्री जीव जंतुओं और मछलियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।

हिसार, जेएनएन। महासागरों के तापमान में पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। आम तौर पर समुद्र का तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से नीचे पाया जाता है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का ही उदाहरण लें तो हाल ही में इनका तापमान सामान्य से चार से पांच डिग्री अधिक बढ़ने से मई माह में दो भीषण चक्रवात आए। अरब सागर में टाक्टे चक्रवात व बंगाल की खाड़ी में यास चक्रवात के कारण समुद्री तटों पर भीषण तबाही देखने काे मिली है।

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तापमान बढ़ने से समुद्री जीव जंतुओं और मछलियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही इनके कारण तेज हवा चलने व भारी बारिश के कारण तटीय क्षेत्रों में पेड़ पौधों व फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है। यहां तक कि इनके प्रभाव से हवाएं हरियाणा पंजाब तक भी पहुंचकर मौसम चक्र को बदल रहीं हैं। मौसम चक्र के इस बदलाव का प्रभाव सीधे-सीधे कृषि पर पड़ रहा है। इसके कारण नए-नए कीट व रोग फसलों में देखने को मिलते हैं। इस प्रभाव को कम करने के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ऐसी तकनीकों पर जोर दे रहा है जो पर्यावरण को संरक्षित रखें। इसके साथ ही फसल उत्पादन को भी बढ़ाएं जिससे खाद्य सुरक्षा मजबूत बने। इस संबंध में हाल ही में कृषि मौसम विज्ञान विभाग और विस्तार शिक्षा निदेशालय द्वारा संयुक्त रूप से इस पर मंथन किया।

तीन विशेषज्ञों से समझिए पर्यावरण संरक्षण और कृषि के बीच का रिश्ता

पर्यावरण परिवर्तन नए कीटों का आक्रमण की वजह ः डा. कांबोज

एचएयू के कुलपति प्रो बीआर कांबोज बताते हैं कि मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन से शुद्ध हवा की मात्रा में गिरावट, जल स्तर में बदलाव, हिम पिघलना, नये-नये कीटों का आक्रमण, वनों के क्षेत्रफल में कमी तथा वन्यजीवों की जनसंख्या धीरे धीरे कम होना इत्यादि प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। कृषि से जुड़ी आधुनिक तकनीकों में पर्यावरण संरक्षण का मूलमंत्र छिपा हुआ है। विभिन्न कृषि तकनीकों जैसे जीरो टिलेज, फसल अवशेष प्रबंधन, कृषि वानिकी, जल प्रबंधन आदि को अपनाकर पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है। इसके साथ ही फसलों का उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है।

गेहूं के जीवनचक्र में आया बदलावः डा. राठौड़

पूर्व महानिदेशक भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) डा. लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने बताया कि स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध हवा, पानी व भोजन आवश्यक होते हैं। तापमान में अत्यधिक वृद्धि होने से गेहूं की फसल के जीवनचक्र में बदलाव देखने को मिला है। तापमान व वर्षा की प्रवृत्ति में बदलाव के चलते न सिर्फ खेती प्रभावित होगी बल्कि इसका राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव भी देखने को मिल सकता है। जलवायु परिवर्तन से हाल ही में यास व टाक्टे जैसे भीषण तूफानों का सामना करना पड़ा क्योंकि समुद्र का तापमान सामान्य से लगातार अधिक हो रहा है और भविष्य में भी ऐसी समस्याएं आने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।

एक तिहाई मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदारः डा. सतीश

हिमाचल प्रदेश के उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय से पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. सतीश भारद्वाज ने बताया कि हृदयघात, श्वसन संबंधी बीमारियों, फेफड़ों के कैंसर के कारण होने वाली कुल मौतों में से एक तिहाई के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। कार्यक्रम के समापन अवसर पर विभागाध्यक्ष डा. एमएल खिचड़ ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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