कृषि भूमि पर पहले किया निर्माण, फिर तहसील में जमीन दिखाई गैर मुमकिन
यह बात के सामने आने के बाद सवाल उठ रहा है कि कृषि भूमि पर जिस समय निर्माण हो रहा था तब नगर योजनागार विभाग ने उसे क्यों नहीं रोका। साथ ही जमाबंदी के समय तहसील ने जमीन को गैर मुमकिन बता दिया जबकि इसका कारण भी बताना जरूरी थी। ऐसा नहीं किया गया।
वैभव शर्मा, हिसार : जमीन की रजिस्ट्रियों के खेल में अभी तक की जांच में एक बड़ा मामला सामने आया है। रजिस्ट्रियों में कृषि भूमि को सबसे अधिक गैर मुमकिन जमीन के रूप में दिखाया गया है। गैर मुमकिन यानि वह भूमि जिस पर फसल नहीं होती और उस पर कोई निर्माण किया जा चुका है। इस निर्माण में रास्ता या किसी प्रकार का भवन भी हो सकता है। जमाबंदी में गैर मुमकिन भूमि जमीन दिखाने के बाद भूमि की रजिस्ट्री कराते समय नगर योजनाकार विभाग से किसी प्रकार का अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता नहीं होती। इसी बात का फायदा उठाकर हजारों एकड़ भूमि की रजिस्ट्रियां कर ली गई।
यह बात के सामने आने के बाद सवाल उठ रहा है कि कृषि भूमि पर जिस समय निर्माण हो रहा था, तब नगर योजनागार विभाग ने उसे क्यों नहीं रोका। साथ ही जमाबंदी के समय तहसील ने जमीन को गैर मुमकिन बता दिया, जबकि इसका कारण भी बताना जरूरी थी। ऐसा नहीं किया गया।
रजिस्ट्रियों का पंजीकरण कराने में कई कॉलोनाइजर भी शामिल हैं। कॉलोनाइजर कृषि भूमि पर रास्ता, प्लॉट काटते रहे। बिजली निगम खंभे लगाकर कनेक्शन देता रहा और पब्लिक हेल्थ ने पेयजल की सप्लाई शुरू कर दी। इस मामले में विभिन्न सरकारी महकमों ने नियमों को पूरी तरह से अनदेखा किया है। अब जांच करने पर बात एक-दूसरे पर डाली जा रही है। वर्ष 1989 के बाद जमाबंदी में दिखीं कई गैर मुमकिन जमीनें
इस मामले की जांच जब आगे बढ़ी तो मंडलायुक्त कार्यालय के अधिकारियों ने पाया कि गैर मुमकिन जमीनों की संख्या अधिक है। 1989 के बाद कोई ऐसी स्थिति बनी नहीं, जिससे अच्छी खासी कृषि भूमि अचानक से गैर मुमकिन यानि बिना किसी काम की बन जाए। इसके साथ ही किसी गैर मुमकिन जमीन की रजिस्ट्री करते समय यह भी बताना होता है कि यह किस कारण से गैर मुमकिन हुई है। अधिकारियों को जांच में गैर मुमकिन जमीन होने का कोई कारण दिखाई नहीं दिया।
खेला गया यह खेल
पिछले पांच वर्ष में हिसार में जमकर जमीनों की खरीद फरोख्त हुई है। इसके साथ ही इसी समय में अवैध कॉलोनियां भी विकसित की गई हैं। इनमें से अधिकांश की जमीन को इसी प्रकार से गैर मुमकिन दिखाकर पंजीकृत कराया गया है। पहले जमीन की जमाबंदी में भूमि को गैर मुमकिन दिखाया गया, फिर कुछ समय बाद उसकी रजिस्ट्री करा ली गई। जमाबंदी का काम पटवारी, कानूनगो से होता हुआ तहसीलदार तक जाता है। ऐसे में इस मामले में अभी तक बड़े स्तर पर नियमों को न मानने वाली लापरवाही नजर आ रही है। हालांकि तीन वर्ष में हुई रजिस्ट्रियों की जांच अपने आप में ही बड़ा टास्क है। अभी जांच के शुरुआती दौर में गैर-मुमकिन जमीनों को देखा जा रहा है, इसके बाद धीमे-धीमे नियम 7ए में हुई रजिस्ट्रियों को भी जांचा जाएगा।