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परिवारों में बढ़ रही है संवादहीनता

उन्होंने कहा कि दलित व गैर दलित जातियों के टकराव संयुक्त परिवारों का टूटना पीढि़यों में बढ़ती संवादहीनता नशे और दिखावे का चलन कन्या भ्रूण हत्या झूठे सम्मान के लिए प्रेमी जोड़ों की हत्या लोकसंगीत में अश्लीलता और हिसक आंदोलन बढ़ते सामाजिक तनाव के उदाहरण हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Nov 2020 07:57 AM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 07:57 AM (IST)
परिवारों में बढ़ रही है संवादहीनता
परिवारों में बढ़ रही है संवादहीनता

जागरण संवाददाता, हिसार : प्रदेश में आर्थिक विकास के अनुरूप काम न होने के कारण अनेक सामाजिक तनाव उभर कर सामने आ रहे हैं। इन्हें सही स्वरूप में समझने और फिर एक बहु आयामी सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन चलाए जाने की आवश्यकता है। यह बातें हरियाणा में उभरते सामाजिक तनाव विषय पर चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा में इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो महेंद्र सिंह ने कही।

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वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब द्वारा आयोजित वेब गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने कहा कि दलित व गैर दलित जातियों के टकराव, संयुक्त परिवारों का टूटना, पीढि़यों में बढ़ती संवादहीनता, नशे और दिखावे का चलन, कन्या भ्रूण हत्या, झूठे सम्मान के लिए प्रेमी जोड़ों की हत्या, लोकसंगीत में अश्लीलता और हिसक आंदोलन बढ़ते सामाजिक तनाव के उदाहरण हैं।

परिवारों में बढ़ती संवादहीनता को लेकर अपने एक सर्वेक्षण का उल्लेख करते हुए प्रो. महेंद्र सिंह ने कहा कि 42 फीसद विद्यार्थियों का कहना था कि उनकी छह-छह महीने तक अपने पिता से कोई बात नहीं होती। 47 फीसद ने कहा कि वे पैसे की जरूरत को लेकर कभी कभार ही पिता से बात करते हैं। अन्य 11 प्रतिशत ने माना कि उनकी पिता से दुख-सुख की बात होती रहती है। अब संस्कार और ज्ञान चाचा, ताऊ और परिवार से नहीं, स्मार्टफोन से मिलता है। युवा के सामने अब कोई रोल मॉडल नहीं रहे, जो उसे प्रेरित कर सकें। आजकल तो पिता पुत्र से और अध्यापक विद्यार्थी से डरता है।

समाज के लिए यह संकट की घड़ी

महेंद्र सिंह ने कहा कि प्रदेश में अभी तक ऐसा कोई सांस्कृतिक केंद्र भी नहीं बना, जो यहां के लोकसंगीत और संस्कृति को संभाल कर उसका विकास करे। साथ ही युवाओं को इस धरोहर की तरफ मोड़ सके। हरियाणा के समाज के लिए यह संकट की घड़ी है, जिस पर सभी का ध्यान जाना चाहिए। गोष्ठी में भाग लेते हुए दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह ने कहा कि प्रजातंत्र में चुनाव जरूरी हैं, पर द्वंद के कारण सामाजिक समरसता को नुकसान भी पहुंचता है। हालांकि राजनीतिक दल जाति विशेष की राजनीति भी करते हैं, लेकिन कोई भी जाति अन्य जातियों के सहयोग के बिना सत्ता में नहीं आ सकती। प्रो. जे के डांग, प्रो. सतीश कालरा व प्रो. स्वराज कुमारी ने भी चर्चा में भाग लिया।


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