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11 अगस्‍त की रात खत्म होगा भद्रा काल, 12 को मनाएं रक्षाबंधन, भद्रा काल नहीं बांधी जाती राखी

पंडित देव शर्मा ने बताया कि 11 तारीख गुरुवार को पूर्णिमा तिथि सुबह 1039 से लगेगी। इससे पूर्व चतुर्दशी है चतुर्दशी में रक्षा बंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता। इसके साथ ही इस रक्षाबंधन पर पूर्णिमा के प्रारंभ समय 1039 से रात्रि 851 तक पाताल की भद्रा व्याप्त रहेगी।

By Manoj KumarEdited By: Published: Sun, 07 Aug 2022 10:32 AM (IST)Updated: Sun, 07 Aug 2022 11:49 PM (IST)
11 अगस्‍त की रात खत्म होगा भद्रा काल, 12 को मनाएं रक्षाबंधन, भद्रा काल नहीं बांधी जाती राखी
कैलाश पंचांग के ज्योतिर्विद देव शर्मा के अनुसार 12 अगस्‍त को दोपहर के बाद रक्षाबंधन पर्व को मनाना उपयुक्त होगा

जागरण संवाददाता, हिसार : रक्षाबंधन का त्योहार 11 अगस्त को है अथवा 12 अगस्त को। इस बारे भ्रांति का निवारण करते हुए व सनातन संस्कृति का ह्रास न हो इस बारे विद्वानों के विचार विमर्श के बाद कैलाश पंचांग के ज्योतिर्विद् व धर्मगुरु पंडित देव शर्मा ने बताया कि 11 तारीख गुरुवार को पूर्णिमा तिथि सुबह 10:39 से लगेगी। इससे पूर्व चतुर्दशी है, चतुर्दशी में रक्षा बंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता। इसके साथ ही इस रक्षाबंधन पर पूर्णिमा के प्रारंभ समय 10:39 से रात्रि 8:51 तक पाताल की भद्रा व्याप्त रहेगी।

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भद्रा समाप्त होने के बाद ही रक्षाबंधन किया जाना चाहिए। क्योंकि भद्रा रहित समय में रक्षाबंधन मनाने की शास्त्रज्ञा है और दूसरे दिन 12 अगस्त शुक्रवार को सुबह 7:06 तक पूर्णिमा रहेगी। भद्रा काल में रक्षाबंधन के कार्य नहीं होते हैं इसलिए दूसरे दिन 12 अगस्त शुक्रवार को ही रक्षाबंधन का त्योहार मनाना श्रेष्ठ रहेगा। यदि कोई व्यक्ति 11 अगस्त को रात्रि 8:51 पर भद्रा समाप्त होने के उपरांत प्रदोष काल में रात्रि 9:14 तक रक्षाबंधन करता है तो कर सकता है।

शुक्रवार, 12 अगस्त को उदय-व्यापिनी पूर्णिमा भले ही सुबह 7:06 बजे तक ही है लेकिन शुक्रवार, 12 अगस्त को उद्या तिथि के हिसाब से दिनभर रक्षाबंधन का कार्य हो सकता है क्योंकि शास्त्रों में यही कहा गया है कि जो उद्या तिथि है उसी का मान दिनभर रहता है। इसलिए रक्षाबंधन का त्यौहार शुक्रवार, 12 तारीख को ही मनाएं जोकि पूरा दिन शुद्ध रहेगा।

भद्राकाल में क्यों नहीं बांधी जाती राखी

रक्षाबंधन पर भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके पीछे एक पौराणिक कथा बारे बताते हुए पंडित देव शर्मा ने कहा कि लंकापति रावण की बहन ने भद्राकाल में ही उनकी कलाई पर राखी बांधी थी और एक वर्ष के अंदर उसका विनाश हो गया था। भद्रा शनिदेव की बहन है। भद्रा को ब्रह्मा जी से यह श्रप मिला था कि जो भी भद्राकाल में रक्षाबंधन करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा इसलिए रक्षाबंधन-पर्व शुक्रवार, 12 अगस्त को उद्यकालीक त्रिमुहूर्त-न्यून पूर्णिमा के दिन ही मनाएं।

उत्तरभारत के अधिकतर परिवारों में सुबह के समय रक्षाबंधन किया जाता है। जो कि भद्रा व्याप्त होने के कारण अशुभ समय भी हो सकता है। इसलिए जब प्रात:काल भद्रा व्याप्त हो तब रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए। रक्षाबंधन के लिए अपराह्न (दोपहर बाद का) समय उपयुक्त माना गया है।

किंतु इस वर्ष मध्याह्न काल भद्रा से व्याप्त होने के कारण रात्रि 8:51 पर भद्रा समाप्त होने के उपरांत प्रदोष काल में रात्रि 9:14 तक रक्षाबंधन करना शुभ होगा। किंतु अति आवश्यक परिस्थितिवश परिहार स्वरूप भद्रामुख सायं 6:18 से रात्रि 8:20 तक का समय विशेष रूप से त्याग कर भद्रा पुच्छकाल शाम 5:17 से 6:18 के दौरान भगवान शिव का पूजन करके रक्षाबंधन करना शुभ होगा।


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