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चारा खाने वाले पशुओं के होते हैं चार पेट, दवा बनाने और रिसर्च में प्रयोग होते हैं इनके माइक्रोब्‍स

एनआरसीई में देश का सबसे बड़ा माइक्रोब्स यानि जीवाणुओं विषाणुओं व रोगाणुओं का बैंक। यहां के बेक्टीरिया देशभर में दवा बनाने से लेकर रिसर्च में करते हैं मदद।

By Manoj KumarEdited By: Published: Mon, 13 Jan 2020 01:19 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 01:19 PM (IST)
चारा खाने वाले पशुओं के होते हैं चार पेट, दवा बनाने और रिसर्च में प्रयोग होते हैं इनके माइक्रोब्‍स
चारा खाने वाले पशुओं के होते हैं चार पेट, दवा बनाने और रिसर्च में प्रयोग होते हैं इनके माइक्रोब्‍स

हिसार [वैभव शर्मा] आपको यह जानकर हैरानी होगी कि चारा खाने वाले पशुओं के पेट के भीतर चार पेट होते हैं। इसमें सबसे पहले पेट में मौजूद माइक्रोब्स उनके चारे को पचाने में मदद करते हैं। सिर्फ पशुओं के पेट में ही नहीं बल्कि डेयरी प्रोडक्ट सहित पशुओं की बीमारियों में भी यह माइक्रोब्स पाए जाते हैं। ऐसे 4 हजार से अधिक माइक्रोब्स का बैंक (वेटरनरी टाइप कल्चर्स) बनाकर इसको संभालने का काम हिसार का राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीई) कर रहा है। शनिवार को माइक्रोब्स बैंक की सालाना रिव्यू बैठक व सेमिनार आयोजित हुआ, जिसमें माइक्रोब्स को संभालने और आगामी रिसर्च या अन्य रिसर्च प्रोजेक्टों में देश में माइक्रोब्स की उपलब्धता बढ़ोतरी को लेकर अधिकारियों ने मंत्रणा की।

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उन्होंने बताया कि एनआरसीई में देश का सबसे बड़ा डेयरी, रयूमन व डिजीज करने वाले माइक्रोब्स का बैंक मौजूद है। यहां पशुओं की बीमारियों के उपचार के लिए टीका बनाने, डाइग्नोस्टि करने जैसे बड़े काम किए जाते हैं। इस रिव्यू में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) से डिप्टी डायरेक्टर जनरल डा. जेके जैना, सहायक महानिदेशक पशु स्वास्थ्य डा. अशोक कुमार, प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर व एनआरसीई के निदेशक डा. बीएन त्रिपाठी, प्रधान वैज्ञानिक डा. ज्योति मैसरी सहित कई वैज्ञानिक उपस्थित रहे।

माइक्रोब्स बैंक में तीन प्रकार के जीवाणुओं, विषाणुओं व रोगाणुओं का होता है संवर्धन

1. पशुओं में बीमारी करने वाले विषाणु व रोगाणु- इसमें गल घोटू, ब्रूसेला एवं अन्य पशुओं की बीमारियों के जीवाणुओं को बैंक में रखा गया है। वहीं इनमें कई प्रकार के विषाणुओं का भी संवर्धन किया जाता है।

2. डेयरी प्रोडक्टों में पाए जाने वाले बेक्टीरिया- दही बनाने वाले, पनीर आदि में अच्छे स्वाद व महक के लिए यह काम करने वाले बेक्टीरिया, जैसे लैक्टोवेसिलस बेक्टीरिया हैं।

3- रूमन जीवाणु- जुगाली करने वाले पशुओं के पेट में पाए जाते हैं। इस श्रेणी में भैंस, बकरी, गाय, भेड़ व ऊंट आते हैं। इनके भीतर चार पेट होते हैं, जिसमें किटाणुओं व फफूंद से पाचन होता है। 

माइनस 80 डिग्री तापमान पर किया जाता है रक्षित

एनआरसीई में देश भर के 14 सेंटरों से बेक्टीरिया, माइक्रोब्स आदि को लेता है। फिर इनको प्रिजर्व यानि रक्षित कर माइक्रोब्स बैंक में स्टोर करता है। देश में रिसर्च के लिए छात्रों, कंपनियों या अन्य संस्थाओं को यह बेक्टीरिया या माइक्रोब्स दिए जाते हैं। इसके साथ ही एनआरसीई के छात्र भी समय-समय पर इन बेक्टीरिया, रोगाणुओं पर काम करते हुए वैक्सीन तैयार करते हैं। इन्हें रक्षित करने के लिए माइनस 80 डिग्री सेल्सियस के तापमान में रखा जाता है। इनका प्रयोग भी बहुत सावधानी से करना होता है। नेशनल सेंटर फॉर वेटरनरी टाइप कल्चर से प्रधान वैज्ञानिक डा. आरके वेद, डा. नवीन कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. तरुणा आनंद, वैज्ञानिक रियेश कुमार भी उपस्थित रहे।


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