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Azadi Amrit Mahotasav: 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने धोखे से हराया था झज्‍जर का नवाब

जिन नवाबों ने क्रांति में हिस्सा लिया उनके साथ अंतिम समय का किस तरह का व्यवहार करते थे। 1857 की क्रांति के दौरान झज्जर हरियाणा की सबसे बड़ी रियासत थी। उस समय रियासत का नवाब अब्दुर्र रहमान खान था।

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 12 Aug 2022 02:29 PM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2022 02:29 PM (IST)
Azadi Amrit Mahotasav: 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने धोखे से हराया था झज्‍जर का नवाब
झज्‍जर के नवाब को हराने के लिए अंग्रेजों ने छल का सहारा लिया था

जागरण संवाददाता, हिसार। 1928 में प्रकाशित चांद पत्रिका के फांसी अंक में लिखा है कि जब झज्जर, बल्लभगढ़ व फरूखनगर के रईसों को फांसियां दी जाती थीं तो दिल्ली शहर के दरवाजे बंद हो जाते थे। तीसरे पहर के वक्त फौज बाजा बजाती हुई आती और फांसी घर के सामने आकर ठहर जाती। फिर लालकिले से फांसी पाने वाले क्रांतिकारियों करोची (बैलगाड़ी) में लाया जाता। इनके हाथ पीठ की तरफ बंधे होते थे। कोतवाली में चारों तरफ अंग्रेज तमाशा देखने के लिए जमा होते थे। जब फांसी का तख्त खींचा जाता तो तमाशाई लोग हंसते थे। इसके बाद शव को औंधे मुंह करोची में डाल दिया जाता था तथा शहर के बाहर किसी अनजान जगह पर दफनाने के लिए भेज दिया जाता था।

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डा. महेंद्र सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार ने बताया कि उक्त विवरण से स्पष्ट है कि जिन नवाबों ने क्रांति में हिस्सा लिया, उनके साथ अंतिम समय का किस तरह का व्यवहार करते थे। 1857 की क्रांति के दौरान झज्जर हरियाणा की सबसे बड़ी रियासत थी। उस समय रियासत का नवाब अब्दुर्र रहमान खान था। 11 मई को दिल्ली में बहादुर शाह जफर का शासन स्थापित होने के बाद अंग्रेज यहां से निरंतर भाग रहे थे। इस दौरान जान मैटकाफ व किचनर अपने परिवार सहित शरण लेने झज्जर पहुंचे। नवाब ने उन्हें शरण देने से मना कर दिया।

इस कारण से उन्हें रात में ही भागना पड़ा। इसके बाद नवाब व इस क्षेत्र की जनता ने खुली बगावत कर रोहतक व दिल्ली के विद्रोह में हिस्सेदारी की। नवाब ने रोहतक के डिप्टी कमिश्नर को शरण व सहायता नहीं दी। 23 मई को नवाब ने 300 घुड़सवार व पैदल सैनिक दिल्ली में मुगल बादशाह के पास भेज दिए। उसने दिल्ली में शासन को पांच लाख रुपये देने का वायदा भी किया। इस तरह नवाब अपनी जनता के साथ अंग्रेजों से स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था।

20 सितंबर 1857 को दिल्ली पतन के बाद स्थितियां बदल गईं। 4 अक्टूबर को कैप्टन हडसन ने झज्जर पर आक्रमण कर दिया। 13 दिन चले युद्ध के बाद भी हडसन सफल नहीं हुआ तो 17 अक्टूबर को लारेंस की सेना भी आ गई। 18 अक्टूबर को हडसन व लारेंस ने नवाब को छुकछुकवास में वार्ता के लिए बुलाया और बंदी बना लिया। इसके बाद झज्जर, छुकछुकवास, कोनौड़ (वर्तमान में महेंद्रगढ़) में अंग्रेजों ने लूटपाट की। उन्हें यहां 21 तोपें, 21 तोपें, सोने की मोहरों के पांच थैले मिले। इनका मूल्य 1,39,000 रुपये लगाया गया।

विभिन्न तरह के दस्तावेज व पत्रचार कागज मिले। जिनको नवाब के खिलाफ मुकदमे का आधार बनाया गया। 26 नवंबर को उनके विरुद्ध आरोपपत्र बनाकर लालकिले में उसी अदालत के सामने पेश किया, जिसमें बहादुर शाह जफर का मुकदमा चला था। आठ से 14 दिसंबर तक प्रतिदिन मुकदमे की औपचारिकता की गई। नवाब की चार बेगमों व परिवार को आवास से बेदखल कर दिया गया। महिलाओं को छोड़कर नवाब परिवार के 11 पुरुषों को तोप से बांधकर उड़ा दिया गया। झज्जर रियासत को समाप्त कर इसे रोहतक का हिस्सा बना दिया गया।


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