देश के अभिनंदन: सेना के जवान ने मांद में घुस मार गिराए थे 11 आतंकी, जानें अनोखी शौर्यगाथा
सैनिक राजेंद्र की कीर्ति सम्मान के साथ भारतीय सेना के शौर्य इतिहास में दर्ज हो गई। उन्होंने बिस्किट और टॉफियां के रैपर पर मेड इन पाकिस्तान लिखा देख दुश्मनों का पता लगा लिया था
फतेहाबाद [विनोद कुमार] सेना में बस आगे बढ़ने सिखाया जाता है। बस टूट पड़ों और फतह हासिल करो। इसी बात को हरियाणा के फतेहाबाद जिले के धांगड़ गांव के जांबाज बेटे राजेंद्र ने भति भांति समझा और साबित भी कर दिखाया। विंग कमांडर अभिनंदन की तरह ही इन्होंने भी साहस का परिचय देते आतंकियों की पूरी टीम को मार गिराया था। आतंकियों पर कहर बनकर टूटने वाले टू-राजपूताना के आंखों के तारे प्रतिमान राजेंद्र की यह कीर्ति सम्मान के साथ भारतीय सेना के शौर्य इतिहास में दर्ज हो गया।
जीते-जी कम ही सैनिकों को मिलने वाले कीर्ति चक्र विजेताओं में शामिल इंडियन आर्मी के हवलदार राजेंद्र का शौर्य जितना चमकदार है उतना ही रोमांचक भी। भारतीय सेना के इस चमकते सितारे के सीने पर कीर्ति चक्र देख न केवल गांव वाले बल्कि पूरा देश फख्र करता है।
बात अगस्त, 2010 की है। राजेंद्र सिंह उन दिनों बारामुला में नायब पद पर थे। भारतीय सेना को जानकारी मिली कि पाकिस्तानी इस इलाके में सैटेलाइट फोन के जरिये रणनीतिक बातें कर रहे हैं। भारतीय सेना के तत्कालीन कमांडेंट ने छह सदस्यों वाली करीब 15 टीम बनाई। इनमें से एक टीम की अगुवाई कर रहे थे कैप्टन प्रदीप सांगवान।
इसी टीम में शामिल थे इंडियन आर्मी के जांबाज राजेंद्र सिंह। शुरू हो गया सर्च ऑपरेशन। राजेंद्र बताते हैं कि आतंकियों की टोह में निकले तो रास्ते में बिस्किट के साथ कुछ टॉफियां मिलीं। इनके रैपर पर लिखे थे मेड इन पाकिस्तान ...। विश्वास हो गया कि आतंकी यहीं कहीं हैं। राजेंद्र सिंह व उनके पांच साथियों ने दो दिन और दो रात की सर्च थकान को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। तीसरे दिन अभी चंद कदम चले ही होंगे कि पगडंडियों में एक एके-47 व 300-400 कारतूस मिले। वहां राजेंद्र की टीम के साथ दूसरी टीम भी आ मिली। अभी वे 500 मीटर चले ही होंगे कि रास्ते में एक बड़ा-सा पत्थर मिला। वहां एक गुफा थी और उसी गुफा में हलचल की आवाज सुनाई दी।
राजेंद्र सिंह बताते हैं कि जैसे वह गुफा के पास गए, उनपर फायरिंग हुई। आतंकियों का निशाना चूक गया था। राजेंद्र अब तक एक पत्थर की आड़ ले चुके थे। इतने में आतंकियों ने एक ग्रेनेड फेंक दिया। इस बार भी वार खाली गया। फिर तो राजेंद्र ने गोलियों की बौछार ही कर दी। दो आतंकी मरे। अब अंधेरा हो चुका था। लाइट थी नहीं। लेकिन गुफा के अंदर जाना था। सवाल था कि अंधेरे में जाए कौन? सिंह की तरह दहाड़ते हुए राजेंद्र ने कहा, वह जाएगा।
पहुंच गए गुफा की गेट पर। एक आतंकी ने उन्हें देख लिया और गोलियां चला दी। दोनों तरफ से गोलियां चलीं। राजेंद्र सिंह के पास मात्र 3 गोलियां थीं। उन्हें फायर करने के बाद वह लौटकर खेमे में आए और अपने अफसर से बोले-एकबार फिर जाने दो। अफसर ने पहले तो मना किया। फिर राजेंद्र के जुनून को
देखते हुए इजाजत दे दी।
गोलियां लेकर आए राजेंद्र ने फिर ताबउ़तोड़ गोलियां चलाईं। इतने में एक और आतंकी ने उनपर ग्रेनेड से हमला कर दिया। वह गेट के साथ लेट गए। लेटते हुए ही गोली मार दी। अचूक। दो घंटे की जद्दोजहद के बाद आखिरी अर्थात ग्यारहवां आतंकी भी मारा गया। इस तरह घाटी में गूंज उठी राजेंद्र सिंह का पराक्रम ...। तत्कालीन राष्ट्रपति ने उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया।
कारगिल युद्ध से एक साल पहले की ज्वाइनिंग
पशु चिकित्सक रहे प्रताप सिंह के पुत्र राजेंद्र सिंह ने कारगिल की लड़ाई से एक साल पहले वर्ष 1998 में इंडियन आर्मी की टू-राजपूताना राइफल्स में बतौर नायब ज्वाइन किया। कारगिल की लड़ाई भी लड़ी। अब वह हवलदार हैं।