रोगों की पहचान व शोध के लिए पशुओं और जीवों की नहीं चढ़ेगी बलि
लुवास वैज्ञानिक ने इजाद की स्वदेशी फेज डिस्प्ले टेक्नोलॉजी। ऊंट के खून से पांच करोड़ मोनो क्नोलन की लाइब्रेरी की तैयार। इंसानों और पशुओं की बीमारियों में उपचार के लिए होगी प्रयोग
हिसार [वैभव शर्मा] शोध कार्य हों या रोगों की पहचान करना, प्राय: वैज्ञानिकों को लैब में चूहों, खरगोशों या अन्य जानवरों के शरीर से पूरा खून निकालना पड़ता है। मगर अब भारत में स्वदेशी फेज डिस्प्ले टेक्नोलॉजी विकसित की गई है। इसकी मदद से बिना पशुओं को हानि पहुंचाए शोध, डाइग्नोज या उपचार तीनों चीजें की जा सकती हैं। इस शोध को केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी की मदद से लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय(लुवास) में पशु चिकित्सा सूक्ष्म विज्ञान विभाग में वैज्ञानिक डा. अजीत ङ्क्षसह, डा. जगबीर रावत और बॉयोटेक्नोलॉजी से डा. सुशीला मान ने किया। टीम ने भारतीय ऊंट के खून से एंटी बॉडी तैयार कर पांच करोड़ मोनो क्लोनल की एक लाइब्रेरी तैयार की है, जिसकी मदद से पशुओं से लेकर मनुष्यों तक की बीमारियों की पहचान व उपचार किया जा सकता है।
शोध में अपनाया हिंसा का रास्ता
सबसे पहले 1985 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने हाईब्रिडओमा तकनीक विकसित की। इसमें एक चूहे से 15 मोनो क्लोनल एंटीबॉडी मिलती थी। इसके बाद और सुधार करते हुए 1990 में यूएसए में फेज डिस्प्ले टेक्नॉलॉजी तैयार की गई। इसमें कई करोड़ मोनो क्लोनल एंटीबॉडी तैयार होने लगी। हर एंटीबॉडी अलग-अलग रिसर्च व उपचार में काम आती है। इन दोनों तकनीकों को बनाने वाले विज्ञानियों को नोबेल पुरस्कार भी मिले। फेज डिस्प्ले टेक्नोलॉजी पर बेल्जियम में विज्ञानी डा. मुर्डर मैन ने काम किया था। इस विधि पर हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वेटरनरी साइंस कॉलेज (अब लुवास) के वैज्ञानिकों ने भी वर्ष 2005 में काम शुरू किया। इसके बाद स्वदेशी टेक्नोलॉजी तैयार की गई है। इसमें भारतीय ऊंट का 50 एमएल खून लेकर उस पर प्रयोग कर टीम ने पांच करोड़ मोनो क्लोनल एंटीबॉडी लाइब्रेरी बनाने में सफलता प्राप्त की।
यह होता है एंटीबॉडी
इस प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ अजीत बताते हैं कि वैज्ञानिक हमेशा रिसर्च में जानवरों का प्रयोग करते हैं। इसमें उन्हें दर्दनाक मौत का सामना करना पड़ता है। विज्ञान की भाषा में इसे कल्याण के लिए समझौता कहते हैं। हम पशुओं के खून से सीरम निकालकर अक्सर एंटीबॉडी तैयार करते हैं। यह रोगों से प्रतिरक्षा का काम करती हैं। अभी तक जानवरों के शरीर से एंटीबॉडी निकालकर इंसानों व जानवरों का उपचार किया जाता रहा है।