पराली नहीं बनेगी किसानों के जी का जंजाल, एचएयू गांव गोद लेकर करेगा ये प्रयोग
एचएयू ने किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक करने का अभियान चलाने की सोची है, मगर किसान पराली को जलाए हीं नहीं बल्कि उसकी खाद बनाकर उपयोग में लाएं इसके लिए विधि तैयार की है।
संदीप बिश्नोई, हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों को पराली प्रबंधन के लिए जागरूक करने के लिए पहल की है। विश्वविद्यालय के विभिन्न जिलों में स्थित 12 कृषि विज्ञान केंद्रों ने पराली प्रबंधन के लिए दो-दो गांवों को गोद लिया है। ये विज्ञान केंद्र इन गांवों में पराली व अन्य फसल अवशेष के प्रबंधन को लेकर सभी तरह की जरूरी मशीनें व उपकरण वीरवार से मुहैया करवाएगी। ताकि पराली व अन्य अवशेषों को जमीन में मिलाकर जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाया जा सके। यही नहीं, केंद्रों के वैज्ञानिकों की टीम गांवों में जाकर किसानों को जागरूक करते हुए उन पर निगरानी भी रखेगी और फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर हर तरह से उनकी सहायता करेगी।
मशीनों से फ्री में देंगे डेमो
एचएयू के शिक्षा विस्तार निदेशक डा. आरएस हुड्डा ने बताया कि सभी 12 केवीके उनके द्वारा गोद लिए गांवों में फ्री में मशीनों के डेमो देंगे। फसल प्रबंधन के लिए किसानों को ये मशीनें देने के बाद वैज्ञानिक किसानों को तकनीकी मदद करेंगे। शिक्षा विस्तार निदेशालय के सहायक निदेशक डा. कृष्ण यादव के अनुसार विश्वविद्यालय के आइसीएआर से संबंधित भिवानी, फतेहाबाद, सिरसा, सदलपुर हिसार, झज्जर, कैथल, सोनीपत, पानीपत, कुरुक्षेत्र, करनाल, यमुनानगर और रोहतक के केवीके में मशीनें वीरवार से उपलब्ध करवाई जाएगी।
ये मशीनें करवाईं उपलब्ध
रोटावेटर विश्वविद्यालय के एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग कालेज के वैज्ञानिक डा. अनिल सरोहा ने बताया कि रोटावेटर मशीन खेत की जमीन को कम समय में तैयार करती है। यह मशीन पिछली फसल कटने के बाद जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उन्हें जड़ से खोद कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देती है। हैप्पी सीडर काटी गई फसल के बाद बचे अवशेषों में साथ-साथ कतारों में गेहूं की बुआई करती है। इससे धान के अवशेषों से खेत ढका होने से नमी बनी रहती है एवं अंकुरण अच्छा होता है। सीड ड्रिल खेत तैयार करने के बाद बिजाई के लिए यह उपकरण प्रयोग में लाया जाता है। इस उपकरण से बीजों को मिट्टी में रखने और उन्हें एक निश्चित औसत गहराई तक कवर करके फसलों के लिए बीज बोता है। यह मशीन सुनिश्चित करती है कि बीज समान रूप से रखा जाएगा। हाथ से कटे धान में इसका अधिक इस्तेमाल किया जाता है। चौपर कंबाइन द्वारा फसल काटे जाने के बाद बचे अवशेषों को बारीक काटकर तुड़ा बना खेत में फैला देता है। फिर रोटावेटर, हैप्पीसीडर या रिवर्स मोल्ड बोल्ड फ्लो आदि के माध्यम से बीजाई कर देते हैं। रिवर्स मोल्ड बोलड फलो यह पराली से बनाए गए तुड़े को एक फिट नीचे दबा देता है। इसका उपयोग अधिकांश खेत में होता है। स्लाइशर यह मशीन भी लगभर चौपर की तरह ही कार्य करती है। लेकिन फसल अवशेष की कटाई कर चौपर की तुलना में मोटा तुड़ा बनाती है।
एचएयू में दो दिवसीय कृषि मेला आज
एचएयू में वीरवार से रबी कृषि मेला आरंभ हो हुआ है। इस दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे। इस मेले में हरियाणा सहित पड़ोसी राज्यों पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश से हजारों किसान भाग लेते हैं। इस वर्ष मेले का मुख्य विषय खेत में फसल अवशेषों के प्रबंधन हेतु कृषि मशीनीकरण प्रोत्साहन रखा गया है। विश्वविद्यालय के सभी विभागों द्वारा कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए ईजाद की गई नई तकनीकें व उत्पाद प्रदर्शित किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त प्रदर्शनी में बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी हिस्सा लेंगी।
--हम चाहते हैं कि किसान तकनीकों का अधिक से अधिक उपयोग करें, चाहे वो किसी भी क्षेत्र की क्यों न हो। इससे किसानों को फायदा होगा। विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों में हम मशीनें मुहैया करवा रहे हैं। ये किसानों को फ्री में इस्तेमाल के लिए दी जाएंगी, ताकि वे फसल अवशेष प्रबंधन के लिए बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल करने को प्रेरित हों।
- प्रो. केपी सिंह, कुलपति, एचएयू हिसार।